20.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

प्रखंड की खासियत हजारीबाग की विरासत- फोटो महिलाओं के हाथों सजी दीवारें बनीं पहचान की मिसाल, यूरोप-अमेरिका तक पहुंची लोककला की गूंज

झारखंड की मिट्टी से उपजी कला अब सीमाओं को लांघकर विदेशों में अपनी पहचान बना रही है

हजारीबाग की सोहराय और कोहबर पेंटिंग ने दी अंतरराष्ट्रीय पहचान 7हैज5में- सोहराय पेटिंग दिखाते मालो देवी व रूदन देवी 7हैज6में- सोहराय व कोहबर की पेटिंग दिखाते कलाकार 7हैज7में- सिमरन द्वारा तैयार किया गया सोहराय पेटिंग 7हैज8में- राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा दिये गये पुरस्कार के साथ महिलाएं. जयनारायण हजारीबाग. झारखंड की मिट्टी से उपजी कला अब सीमाओं को लांघकर विदेशों में अपनी पहचान बना रही है. हजारीबाग की पारंपरिक सोहराय और कोहबर पेंटिंग आज न सिर्फ गांव की दीवारों पर, बल्कि राष्ट्रपति भवन, हजारीबाग रेलवे स्टेशन, टाटा, रांची, ओडिसा के भुवनेश्वर, महाराष्ट्र के मुंबई और दिल्ली तक के भवनों की शोभा बढ़ा रही हैं. यही नहीं, रूस के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोहराय पेंटिंग भेंट की थी, जिससे यह लोक कला वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बनी. यह वही कला है, जिसे हजारीबाग की ग्रामीण महिलाएं अपनी उंगलियों और मिट्टी से सृजित करती हैं. इस कला को जोराकाट गांव के दर्जनों महिलाएं इस कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभायी हैं. कभी यह परंपरा सिर्फ फसल कटाई और विवाह के अवसरों तक सीमित थी, लेकिन आज यह इस गांव के आर्थिक आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पहचान का माध्यम बन चुकी है. महिलाओं की मेहनत से मिट्टी में खिला रंग बड़कागांव, बरही, कटकमदाग और पेलावल प्रखंड के गांवों में जब दीवारों पर लाल, काले, सफेद और पीले रंगों की आकृतियां उभरती हैं, तो लगता है जैसे मिट्टी बोल उठी हो. यह रंग किसी केमिकल से नहीं, बल्कि प्राकृतिक स्रोतों से तैयार किये जाते हैं. लाल मिट्टी, चूना, कोयला और गोबर का मिश्रण. मालो देवी, जो पिछले तीन दशकों से यह कला कर रही हैं. कहती हैं पहले हम यह पेंटिंग सिर्फ त्योहारों में बनाते थे, लेकिन अब देश के कई हिस्सों से लोग ऑर्डर देते हैं. हमें गर्व है कि हमारी कला दुनिया देख रही है. मैं यह काम दस साल की उम्र से कर रही हूं. रुदन देवी, जो कोहबर पेंटिंग की अनुभवी कलाकार हैं. बताती हैं कि मैंने अपनी मां से यह कला सीखी. घर की कच्ची दीवारों पर उंगलियों से आकृतियां बनाती थी. स्कूल नहीं जा सकी, लेकिन इस कला ने मुझे देश के कई राज्यों में पहुंचाया. अब हमारी बहुएं और बेटियां कैनवास पर नये डिजाइन बना रही है. 10 साल की सिमरन अपने छोटे हाथों से जब मिट्टी में रंग मिलाती है, तो उसकी आंखों में भविष्य की चमक दिखाई देती है. वह मुस्कराते हुए कहती है मैंने यह पेंटिंग अपनी दादी से सीखी है. मैं बड़ी होकर इसे सबको सिखाऊंगी. कला से आत्मनिर्भरता की राह मानिकचंद बताते हैं, मेरी मां सजुआ देवी सोहराय पेंटिंग करती हैं. मैंने उनके बनाये चित्रों की प्रदर्शनी पुणे के दस्तकारी हाट समिति में लगायी. वहां इन पेंटिंग की काफी मांग रही है. इस प्रदशनी में 60 से 70 हजार रुपये तक का पेंटिंग बिके हैं. दूधी मिट्टी और गोबर से शुरू हुई यह कला अब कैनवास, कपड़ा, लकड़ी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक पहुंच गयी- गांव के शिव कुमार ने बताया कि सोहराय पेंटिंग पशुधन और फसल के पर्व से जुड़ी है, जिसमें धरती माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है. पशुओं, पक्षियों और प्राकृतिक तत्वों की आकृतियां इसमें प्रमुख होती हैं. उन्होंने बताया कि कोहबर पेंटिंग विवाह और उर्वरता का प्रतीक है. यह नवविवाहित जोड़े के कमरे की दीवारों पर बनायी जाती है, जिसमें बांस, मछली, पक्षी और कमल के फूल समृद्धि और शुभता का संकेत देते हैं. सरकार और संस्थाओं की पहल इन लोककलाओं के संरक्षण और विस्तार के लिए अब प्रशासन और विभिन्न संगठनों ने भी कदम बढ़ाये हैं. उद्योग विभाग द्वारा जोराकाठ गांव में पेंटिंग केंद्र भवन की स्वीकृति दी गई है, जहां कलाकारों को प्रशिक्षण और विपणन सहायता दी जायेगी. हजारीबाग डीसी शशि प्रकाश ने कहा कि हमारा प्रयास है कि हजारीबाग की पारंपरिक कला को स्वयं सहायता से जोड़ने का प्रयास करेंगे. कलाकारों को आर्थिक तकनीकी वह अन्य मदद की जायेगी. जिससे स्थानीय कलाकारों को बेहतर प्लेटफॉर्म तैयार किया जा सके.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel