बरही. होली रंगों के साथ एक शालीन त्योहार है, लेकिन इस त्योहार में अश्लील व फूहड़ गानों ने रंग में भंग कर रखा है. जिधर देखिये फूहड़ गीतों की बौछार है, जबकि समाज के पास एक से बढ़ कर एक परंपरागत होली के गीतों का कलेक्शन है. जिन्हे सुन कर मन मस्ती और उमंग से भर जाता है. बरही में होरी, झुमटा, फागुवा, चौपदी, चैता, चैतरी, जोगिड़ा गाने वाले ग्रामीण कलाकार हैं, जिन्हें सड़क पर बजते अश्लील होली गाने सुन कर शर्मिंदगी महसूस हाेती है. ग्रामीण होली गायक विजय साहू, राजेंद्र साव, राजदेव यादव, दिनेश पांडेय, रघु यादव, बसंत माली, संतोष पंडित, राजेंद्र शाह अपील कर रहे हैं कि सभी होली में परंपरागत शालीन गानों को अपनायें व अशील गानों का खुल कर विरोध करें.
गायक विजय साहू कहते हैं समाज को अश्लील गानों से बचाना हर गायक की जिम्मेवारी है. प्रेम और भाईचारे का पावन त्योहार हाेली है.गायक राजदेव यादव कहते हैं कि गायक समाज का मार्गदर्शक होता है. हम गीतों से समाज का मार्गदर्शन करते हैं. गायक अच्छा गाना देगा, तो समाज में अच्छाई आयेगी.
गायक राजेंद्र साव कहते हैं होली के परंपरागत गीत को लोग नहीं सुनेंगे, तो गाने वाले कलाकार गांव में नहीं मिलेंगे. गायक नहीं बचेंगे, तो होली का यह अमूल्य धरोहर लुप्त हो जायेगा, इसलिए अच्छे गानों को प्रोत्साहित कीजिए.इन ग्रामीण गायकों ने होली के कुछ बेहतरीन गाने गाकर भी सुनाये
आज बिरज में होली रे रसिया, गोरिया घोरा न अबीर, द्वारे पे ठाड़ है कन्हैया, हे उधो पाती लें जा जहवा बसे नंदलाल, घरही कोसिला माता करथी सगुणवा कौने वन रामजी के बिना हे व फागुनवा, तोरी मीठी बोलिया हे रामा तोरी मीठी बोलिया, वृंदावन उड़े रे ग़ुलाल कहियो राधा रानी से…डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है