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मुहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं

हजारीबाग : कोनार महोत्सव की पूर्व संध्या पर विनोबा भावे विवि परिसर में मुशायरा सह कवि सम्मलेन का अायोजन किया गया. यहां हिंदी-उर्दू के मुस्तरका मंच पर गंगा जमुनी तहजीब की धार बही़ खुले मंच श्रोता आधी रात तक शायरी व कविता का लुत्फ लेते रह़े मशहूर शायर वसीम बरेलवी, राहत इंदौरी, नूसरत मेहंदी, हास्य […]

हजारीबाग : कोनार महोत्सव की पूर्व संध्या पर विनोबा भावे विवि परिसर में मुशायरा सह कवि सम्मलेन का अायोजन किया गया. यहां हिंदी-उर्दू के मुस्तरका मंच पर गंगा जमुनी तहजीब की धार बही़
खुले मंच श्रोता आधी रात तक शायरी व कविता का लुत्फ लेते रह़े मशहूर शायर वसीम बरेलवी, राहत इंदौरी, नूसरत मेहंदी, हास्य कवि अशोक चक्रधर व सर्वेश अस्थाना की रचनाओं पर श्रोता तालियां बजाते रहे. मुशायरे की शुरुआत नुसरत मेहंदी की गजल आप शायद भूल रहे हैं.. यहां मैं भी तो हूं..से हुई. उन्होंने लगातार गंभीर होते माहौल को थोड़ा रूमानी बनाते हुए श्रोताओं को बैठने को विवश कर दिया.
मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब ने शायरी की शुरआत इश्क और जंग के भरपूर करने से किया. फैसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए… जंग हो इश्क भरपूर होना चाहिए..पर श्रोताओं ने खूब तालियां बजायी. इसके बाद हास्य कवि अशोक चक्रधर ने अपनी कविता से लोगों को लोटपोट कर दिया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शायर वसीम बरेलवी ने हिंदुस्तान की मिट्टी को मोहब्बत करने वाला बताते हुए कहा कि ये कवि सम्मेलन और मुशायरे जैसी गंगा-जमुनी गतिविधियां ही आपसी भाईचारे को निभाने की प्रेरणा देती है. मौके पर बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे.
Prabhat Khabar Digital Desk
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