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गुमला से भगवान परशुराम का जुड़ाव है, टांगीनाथ धाम में परशुराम का त्रिशूल साक्षात है

गुमला जिले से भगवान परशुराम का जुड़ाव है. टांगीनाथ धाम, जो गुमला जिले के डुमरी प्रखंड स्थित मझगांव में है

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: कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने यहां अपना त्रिशूल रूपी फरसा जमीन में गाड़ा था. : डुमरी प्रखंड के मझगांव स्थित टांगीनाथ धाम में त्रिशूल गड़ा हुआ है. आज भी साक्षात है. 30 गुम 60 में टांगीनाथ धाम स्थित त्रिशूल दुर्जय पासवान, गुमला गुमला जिले से भगवान परशुराम का जुड़ाव है. टांगीनाथ धाम, जो गुमला जिले के डुमरी प्रखंड स्थित मझगांव में है. यह एक प्राचीन धार्मिक स्थल है. जहां परशुराम ने अपना फरसा (त्रिशूल) गाड़ा था. यह फरसा आज भी साक्षात है. भगवान टांगीनाथ मंदिर के ठीक सामने यह फरसा खुले आसमान के नीचे पेड़ के समीप गड़ा हुआ है. जमीन के अंदर यह फरसा कितना है. आज तक कोई अनुमान नहीं लगा सका है. कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने यहां अपना त्रिशूल रूपी फरसा जमीन में गाड़ा था. यह फरसा आज भी उसी स्थान पर मौजूद है, जो लोगों के लिए श्रद्धा और रहस्य का विषय बना हुआ है. कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम ने यहां तपस्या की थी और जब भगवान राम ने सीता स्वयंवर में शिव का धनुष तोड़ा था, तो परशुराम क्रोधित हो गये थे. लेकिन बाद में उन्हें पश्चाताप हुआ और वे यहां आकर तपस्या करने लगे. परशुराम ने टांगीनाथ में शिव की स्थापना की थी झारखंड के गुमला जिला से भगवान परशुराम का खास रिश्ता है. क्योंकि यहीं पर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी. आज ये स्थान टांगीनाथ धाम से प्रसिद्ध है. दूर दूर से लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं. टांगीनाथ धाम के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने सीता को जीतने के लिए जनकपुर में धनुष तोड़े, तो वहां पर मौजूद भगवान परशुराम धनुष टूटने से काफी क्रोधित हो गये थे. उनका आक्रोश चरम पर था. इस दौरान लक्ष्मण से उनकी लंबी बहस हुई थी. लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि भगवान श्रीराम ही स्वयं नारायण हैं और नारायण ने ही धनुष तोड़ा है. इसके बाद परशुराम को अपने ऊपर आत्मग्लानि हुई. वे वहां से निकल गये और पश्चताप करने के लिए झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्य के सीमा पर स्थित पर्वत श्रृंखला गुमला जिला अंतर्गत डुमरी प्रखंड के मझगांव में पहुंचे. यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करने लगे. जिस स्थान पर वे आराधना कर रहे थे. उसी के बगल में उन्होंने अपना परशु अर्थात फरसा को गाड़ दिया. इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ा. झारखंड प्रदेश में फरसा का अर्थ टांगी होता है. आज भी भगवान परशुराम के पदचिन्ह यहां मौजूद है. कहा जाता है कि लंबे समय तक भगवान परशुराम यहां पर रहे. वहीं, यहां पर मौजूद त्रिशूल के बारे में कहा जाता है कि यह 17 फीट नीचे जमीन में धंसा होने की संभावना है. सबसे आश्चर्य की बात कि इसमें कभी जंग नहीं लगता है. खुले आसमान के नीचे है त्रिशूल खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, ठंड का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है. आज भी यहां से लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है. टांगीनाथ धाम की ख्याति केवल राज्य में ही नहीं बल्कि पूरे देश में है. टांगीनाथ धाम में छिपे रहस्य से अभी तक पूरी तरह पर्दा नहीं उठ पाया है. यहां यत्र तत्र शिवलिंग बिखरे हुए हैं. टांगीनाथ में स्थित प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर व गौरी केदार में प्राप्त प्रतिमाओं से मेल खाती है. ऐसे में अभी तक टांगीनाथ धाम के निर्माण की तिथि का पता नहीं चल पाया है. टांगीनाथ के बगल में ही नेतरहाट की तराई है. डुमरी थाना के मालखाना में है खुदाई से मिले आभूषण टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर है, जो आज भी साक्षात है. यहां की कलाकृतियां व नक्कासी, देवकाल की कहानी बयां करती है. 1989 ई. में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए अध्ययन किया था. यहां जमीन की भी खुदाई की गयी थी. उस समय भारी मात्रा में सोना व चांदी के आभूषण सहित कई बहुमूल्य सामान मिले थे. लेकिन किसी कारणों से खुदाई पर रोक लगा दी गयी. टांगीनाथ धाम की खुदाई से हीरा जड़ा मुकूट, चांदी का सिक्का (अर्ध गोलाकार), सोना का कड़ा, कान की बाली सोना का, तांबा का टिफिन जिसमें काला तिल व चावल मिला था, जो आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखा हुआ है.

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