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Durga Puja 2021 : गुमला के असुर जनजाति के लोग करते हैं महिषासुर की पूजा, जानें क्या है इसके पीछे की कहानी

दशहारा में लोग मां दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन गुमला में एक समदाय ऐसा भी है जहां लोग महिषासुर की पूजा करते हैं. ये जनजाति हैं असुर. इनका मानना है कि वे महिषासुर के ही पूर्वज हैं

गुमला में असुर जनजाति के लोग महिषासुर की पूजा करते हैं. महिषासुर को अपना पूर्वज माननेवाले असुर जनजाति जंगल व पहाड़ों में निवास करते हैं. मां दुर्गा की पूजा के बाद इस जनजाति के लोग अपनी प्राचीन परंपराओं के आधार पर महिषासुर की पूजा करते हैं. श्रीदुर्गा पूजा में जहां हम, मां दुर्गा की पूजा करते हैं. ठीक इसके विपरीत एक समुदाय आज भी महिषासुर की पूजा करते हैं. हम बात कर रहे हैं, असुर जनजाति की.

आज भी असुर जनजाति के लोग अपने प्रिय आराध्य देव महिषासुर की पूजा ठीक उसी प्रकार करते हैं. जिस प्रकार हर धर्म व जाति के लोग अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं. झारखंड राज्य के गुमला जिला ही नहीं, अन्य जिले जहां असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं. वे आज भी महिषासुर की पूजा करते हैं.

दुर्गा पूजा के बाद दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. ऐसे इस जाति में महिषासुर की मूर्ति बनाने की परंपरा नहीं है. लेकिन जंगलों व पहाड़ों में निवास करने वाले असुर जनजाति के लोग श्रीदुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं. दीपावली पर्व की रात महिषासुर का मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर पूजा करते हैं. इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को भी याद करते हैं.

लक्ष्मी, गणेश की पूजा करते हैं. इसके बाद देर शाम को दीया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है. दीपावली में गौशाला की पूजा असुर जनजाति के लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. जिस कमरे में पशुओं को बांधकर रखा जाता है.

उस कमरे की असुर लोग पूजा करते हैं. वहीं हर 12 वर्ष में एक बार महिषासुर के सवारी भैंसा (काड़ा) की भी पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. गुमला जिले के बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर, लातेहार जिला के महुआडाड़ प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है. बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र में भव्य रूप से पूजा होती है. इस दौरान मेला भी लगता है.

असुर जनजाति मूर्ति पूजक नहीं हैं. इसलिए महिषासुर की मूर्तियां नहीं बनायी जाती है. पर पूर्वजों के समय से पूजा करने की जो परंपरा चली आ रही है. आज भी वह परंपरा कायम है.

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