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धीमी गति से हो रहा बाइपास सड़क का काम

वर्ष 2002 में नगर पंचायत ने सड़क का काम शुरू किया था. नपं के बाद एनएच विभाग के जिम्मे सड़क का काम है. सड़क की लागत 33 करोड़ से बढ़ कर 66.89 करोड़ रुपये हो गयी, फिर भी समस्या जस की तस है. सड़क के अभाव में लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता […]

वर्ष 2002 में नगर पंचायत ने सड़क का काम शुरू किया था. नपं के बाद एनएच विभाग के जिम्मे सड़क का काम है. सड़क की लागत 33 करोड़ से बढ़ कर 66.89 करोड़ रुपये हो गयी, फिर भी समस्या जस की तस है. सड़क के अभाव में लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है.

दुर्जय पासवान

गुमला : गुमला में बाइपास सड़क का काम कछुए की गति से हो रहा है, जिसका खमियाजा गुमला शहर की 52 हजार आबादी भुगत रही है. उन्हें आये दिन जाम झेलना पड़ रहा है. सड़क हादसे भी आये दिन हो रहे हैं.

आठ अप्रैल 2016 को सीएम रघुवर दास ने 66 करोड़ 89 लाख रुपये की लागत से बनने वाली बाइपास सड़क का सिसई प्रखंड में ऑन-लाइन शिलान्यास किया था. शिलान्यास हुए 12 माह का समय बीत गया, लेकिन काम की जो गति होनी चाहिए, वह नहीं दिख रही है. संवेदक की लापरवाही से सड़क का काम नहीं हो रहा है. कुछ स्थानों पर गड्ढा खोद कर छोड़ दिया गया है. हालांकि सड़क निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ के संवेदक मेसर्स संजय अग्रवाल द्वारा सिलम घाटी के समीप प्लांट की स्थापना की गयी है.

संवेदक के पीआरओ नटवर अग्रवाल हैं. जब भी अधिकारी पूछते हैं, इनका एक ही जवाब रहता है, काम तेजी से चल रहा है. लेकिन अभी तक जितने भी अधिकारी सड़क निर्माण की गति देखने पहुंचे हैं, सभी अधिकारी काम की गति से नाराज हैं. संवेदक द्वारा जिस प्रकार काम कराया जा रहा है, उससे नहीं लगता है कि संवेदक काम पूरा करा सकेगा. ऐसे भी संवेदक ने पीसीसी सड़क बनाने वाले छोटे ठेकेदारों के बीच पेटी कॉन्ट्रैक्ट में काम बांट दिया है, जिससे काम की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़ा होने लगा है. अभी तक संवेदक ने काम के एवज में सरकार से एक करोड़ 80 लाख रुपया प्राप्त भी कर चुका है. लेकिन जितनी राशि की निकासी हुई है, उतना काम भी नहीं हुआ है.

सीएम के आदेश का असर नहीं: ज्ञात हो कि गुमला में बाइपास सड़क अधूरा होने से जनता जाम से त्रस्त है.

वर्ष 2002 से सड़क बन रही है, लेकिन तकनीकी कारणों के कारण काम बीच में रूक गया था. अब जब काम शुरू हुआ और लागत दुगुनी की गयी है, तो संवेदक काम में बाधा बने हुए हैं. जब सीएम ने 18 अप्रैल को शिलान्यास किया था, तो उन्होंने काम में तेजी लाने के लिए कहा था, लेकिन इंजीनियर व संवेदक कछुए की गति से काम करा रहे हैं. सीएम के आदेश का कोई असर नहीं पड़ा है. जानकारी के अनुसार, वर्ष 2002 में 33 करोड़ रुपये से सड़क बननी थी. आज के डेट में सड़क की लागत 66 करोड़ 89 लाख रुपये हो गयी है.

पार्किंग की व्यवस्था नहीं : शहर में पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि महत्वपूर्ण दुकानें एनएच के किनारे हैं. ग्राहक दुकान जाने से पहले सड़क के किनारे वाहन खड़ा कर देते हैं. छोटे वाहन खड़ा होने के बाद मुख्य सड़क कई जगह जाम हो जाती है. यहां तक कि टेंपो स्टैंड भी नहीं है, नतीजा सड़कों पर टेंपो खड़ा रहता है. बड़े वाहन शहर में घुसते ही सड़क जाम हो जाती है.

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