नवरात्र के अवसर पर प्रखंड क्षेत्र के सभी दुर्गा मंदिरों में भक्ति और श्रद्धा का माहौल है, लेकिन बारकोप का प्राचीन दुर्गा मंदिर इस बार भी विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. 1102 ई. से चली आ रही परंपरा के तहत यहां दुर्गा पूजा का आयोजन लगातार हो रहा है. मंगलवार को नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा श्रद्धापूर्वक की गयी. पूरे बारकोप गांव में ध्वनि विस्तारक यंत्रों से दुर्गा पाठ की गूंज सुनाई दे रही है, जिससे वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया है. इतिहास के अनुसार, राजा देव ब्रह्म ने नट राजा को पराजित कर बारकोप स्टेट की सत्ता संभाली थी और उसी वर्ष से मां दुर्गा की तांत्रिक विधि से पूजा शुरू की गयी. उनके द्वारा मंदिर संचालन के लिए पंडित, नाई, सफाईकर्मी, कुंभकार व ढोल नगाड़ा बजाने वालों को नियुक्त कर जमीन दी गयी थी.
राज परिवार की कुल देवी हैं मां दुर्गा
पूजा कमेटी के अध्यक्ष सुमन कुमार सिंह ने बताया कि यहां की पूजा किसी चंदा या सार्वजनिक सहयोग से नहीं, बल्कि राज परिवार के वंशजों द्वारा संपन्न होती है. मां दुर्गा को खेताैरी राज परिवार की कुल देवी के रूप में पूजा जाता है. जिउतिया से पूजा शुरू होती है. इस दिन से मां दुर्गा के मस्तक की पूजा प्रारंभ होती है. सप्तमी को छारा देने की परंपरा है, जिसमें हजारों महिलाएं मिट्टी के कुल्हड़ में दूध और सिंदूर से छारा देती हैं. अष्टमी को डाला चढ़ाने और नवमी को छाग बलि की परंपरा निभायी जाती है. दशमी को भव्य आरती के साथ मां दुर्गा का पूजन संपन्न होता है. प्रतिमा विसर्जन रानी पोखर में किया जाता है.बंगला पद्धति से होती है प्रतिमा निर्माण
बारकोप में मां दुर्गा की प्रतिमा बंगला पद्धति से बनायी जाती है. जन्माष्टमी के दिन से प्रतिमा के मस्तक का निर्माण विधिवत रूप से शुरू हो जाता है. राज परिवार की महिलाएं प्रतिदिन आरती करती हैं. गोड्डा जिले सहित आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालु पूजा और दर्शन के लिए बारकोप पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गयी मन्नत जरूर पूरी होती है. दुर्गा पूजा को लेकर बारकोप में भव्य मेला का आयोजन होता है. वहीं, पथरगामा बाजार में रेडीमेड वस्त्रों की दुकानों पर भारी भीड़ देखी जा रही है. लोग अपनी पसंद के नये कपड़े खरीदने में व्यस्त हैं. इस बार प्रशासन के निर्देश पर पूरे पूजा स्थल की निगरानी सीसीटीवी कैमरों से की जाएगी, ताकि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
दुर्गा मंदिरों में सादगी और भक्ति के साथ हुई मां के दूसरे स्वरूप की पूजा
बोआरीजोर प्रखंड के ललमटिया पुरानी दुर्गा मंदिर, श्रीपुर बाजार दुर्गा मंदिर, लौंहांडिया दुर्गा मंदिर, बोआरीजोर दुर्गा मंदिर एवं ललमटिया स्कूल परिसर स्थित दुर्गा मंदिरों में मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी का विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की गयी. पूजा में श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और भक्ति की भावना से पूरे माहौल को भक्तिमय बना दिया. पंडित उदयकांत मिश्रा ने बताया कि मां दुर्गा का यह रूप सादगी और तपस्या का प्रतीक है. ब्रह्मचारिणी माता एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल धारण किए रहती हैं. इस रूप में मां ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया. पंडित मिश्रा ने कहा कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है. पूजा समिति के सदस्यों द्वारा पूजा पंडाल तथा मुख्य द्वार के निर्माण का अंतिम रूप दिया जा रहा है, ताकि आगामी दुर्गा पूजा समारोह भव्य और सफलतापूर्वक संपन्न हो सके. पूजा स्थल पर साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था भी सुनिश्चित की जा रही है, जिससे श्रद्धालुओं को सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण वातावरण मिल सके. इस अवसर पर क्षेत्रवासियों में आध्यात्मिक उत्साह व्याप्त है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

