महागामा प्रखंड के सुदूरवर्ती संग्रामपुर गांव में स्थित दुर्गा मंदिर आज न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बन चुका है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का अद्वितीय प्रतीक भी बन गया है. वर्ष 2005 से यहां लगातार शारदीय नवरात्र के अवसर पर मां दुर्गा की पूजा वैष्णवी परंपरा के अनुसार श्रद्धा और भक्ति भाव से की जा रही है. श्रद्धालु फल, पुष्प और भोग अर्पित कर मां से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं. भक्तों का विश्वास है कि मां दुर्गा के दरबार में की गयी प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जातीं, इसी कारण दूर-दराज से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. गांव के वरिष्ठ नागरिक बोधनारायण राम बताते हैं कि लगभग दो दशक पूर्व गांव के बुद्धिजीवियों व समिति के निर्णय के बाद यहां पूजा की शुरुआत वैष्णवी परंपरा में की गयी थी, जो आज तक निर्विघ्न रूप से चली आ रही है. नवरात्र के दौरान मंदिर परिसर और आसपास का इलाका आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है. मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती हैं. मंत्रोच्चारण, सामूहिक आरती, भजन-कीर्तन और भक्ति गीतों से वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो उठता है. विद्युत सजावट और आकर्षक पंडालों से मंदिर परिसर रोशनी में नहाया रहता है. साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन इस धार्मिक उत्सव को और भी विशेष बना देता है. संग्रामपुर का दुर्गा मंदिर अब नवरात्रि में पूरे क्षेत्र का प्रमुख आस्था केंद्र बन चुका है.
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