पथरगामा प्रखंड के बाराबांध में सोमवार को चड़क पूजा का आयोजन किया गया. पूजन में पुजहर मुंशी हेंब्रम, पाट भकता विनोद बंसरिआर, शाहिल हेंब्रम, हरिश्चंद्र महतो, प्रीतम महतो, आशा महतो समेत गांव के लोग मौजूद थे. पूजन को लेकर विनोद बंसरिआर ने बताया कि भगता गांजन (चड़क पूजा, पासा या मंडा परब के नामों से भी जाना जाता है) कुड़मालि बछरकि माड़ा के निरन माड़ा मास के चार निरन बेरा तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण नेगचार है. यह परब कुड़मि कबीले की पुरखा परंपरा, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक स्मृति का अभिन्न हिस्सा है. इस परब की भावना निहित है, जिसमें गांव बसाने वाले चारखुंट पुरखाओं और उनके वंशजों (खुंट) द्वारा अपने-अपने पुरखों को याद किया जाता है. गांव के सहयोगी चारि गड़ाइत, चारि बनिहार और चारि पहनइआ जो गांव की बुनियादी संरचना के स्तंभ माने जाते हैं. अपने-अपने पूर्वजों की स्मृति में मड़प थान या बुढ़ा थान पर एकत्र होते हैं. बताया कि पहनइआ ही गांव के सभी थानों के मूल पुजइर होते हैं. यह बुढ़ा थान गांव के बीचो बीच स्थापित होता है. चार दिवसीय नेगचार के पहला दिन फलाहार, दूसरा दिन निराहार रहना और संध्या को पोखर से स्नान कर दीप लेकर मड़पथान पहुंचा जाता है, जहां चारखुंट पुरखों की स्मृति में दीप प्रज्ज्वलित कर थान की परिक्रमा की जाती है. तीसरे दिन सामाजिक दोषियों को दंड स्वरूप भगता घुरा और चाटा गांव के मड़पथान पर सामूहिक रूप से संपन्न किया जाता है, जबकि चौथे दिन अदृश्य दूषित शक्तियों की बलि देकर अन्यत्र स्थानांतरित करने की विनती की जाती है. बताया कि बलि किसी धार्मिक अनुष्ठान से अधिक सामाजिक स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है, जिससे यह विश्वास जुड़ा है कि गांव की सामूहिक स्मृति स्थल पर कोई अवांछित प्रवृत्ति, दोष या दुविधा हो तो वह बलि परब के माध्यम से विदा हो जाती है. बताया कि पुरखों की स्मृति में उनके खुंट, जिन्हें भगता खूंटा कहा जाता है, वे ही भगतिआ कहलाते हैं. ये भगतिआ अपने-अपने पुरखों की स्मृति में घाट उठि छुइत नामक परंपरा निभाते हैं. यही परंपरा चैइत परब, भगता गांजन, चड़क पूजा, मंडा परब आदि नामों से पूरे झारखंड में हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है. श्री बंसरिआर ने कहा कि पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के तहत प्रत्येक वर्ष गांधीग्राम हाट के पास चड़क घुमाया जाता था लेकिन फोर लेन सड़क बनने की वजह से इस बार चड़क घुमाने की जगह नहीं मिल सकी. सरकार व प्रशासन से उन्होंने मांग की है कि चड़क घुमाने के लिए जगह दिया जाना चाहिए ताकि वर्षों से चली आ रही परंपरा को कायम रखा जा सके.
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