आचार्य विद्यासागर सभागार में लोगों को संबोधित करते समता सागर जी महाराज व अन्य.
Giridih News : जैन मुनि के आगमन पर निकली शोभा यात्राGiridih News : जीवन में कोई तीर्थ हो पाये या ना हो पाये, एक बार सम्मेद शिखर की वंदना कर लेना जरूरी है. उक्त बातें श्रवण मुनि समता सागर महाराज ने गुणायतन परिसर के आचार्य विद्यासागर सभागृह में कही. राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं स्थानीय मीडिया प्रभारी राजेश जैन (सरिया) ने बताया कि सुबह में सीआरपी कैंप से मुनिसंघ का भव्य मंगल प्रवेश शुरू हुआ. सिद्धायतन पर श्री सम्मेद शिखर में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के शिष्य मुनि श्री पूज्य सागर जी मुनि श्री अतुल सागर जी, ज्येष्ठ आर्यिकारत्न गुरुमति माताजी, आर्यिकारत्न दृणमति माताजी सहित समस्त 42 माताजी एवं क्षेत्र पर विराजमान समस्त मुनिसंघ एवं आर्यिका संघ तथा त्यागी वृतिओं ने मुनि श्री को नमोस्तु कर त्रयवार परिक्रमा की. इसके बाद यहां से शोभा यात्रा निकाली गयी. इसमें शिखरजी जैन समाज तथा हजारीबाग, गिरिडीह व मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र से आये श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव के साथ मुनि संघ की भव्य मंगल आगवानी की. इस अवसर पर शिखर जी महिला मंडल अपनी विशेष पोषाक में उपस्थित थे. वहीं आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक आवास में नृत्य करते हुए मुनिसंघ की भव्य मंगल अगवानी कर रही थीं. जगह-जगह श्रद्धालुओं ने रंगोली चौक पूरा व मुनिसंघ का पाद प्रछालन कर मंगल आरती उतारी. शोभायात्रा कार्यक्रम स्थल गुणायतन परिसर में पहुंची और धर्मसभा में परिवर्तित हो गयी.
42 वर्षों की अनुभूति की ताजा
मुनि श्री समता सागर महाराज ने अपनी 42 वर्ष पूर्व की स्मृतियों को ताजा करते हुए कहा कि इस सिद्धभूमि पर गुरुवर आचार्य श्री के साथ में एक छोटे से साधक के रूप में जनवरी 1983 में उपस्थित हुआ था. 10 फरवरी को उनकी ऐलक दीक्षा गुरुवर के कर कमलों से संपन्न हो गयी थी. ग्रीष्मकालीन बाचना के लिए आचार्य गुरुदेव इसरी गये और वहां पर सिद्धांत सागर महाराज की समाधि हुई. गुरुवर के साथ संघ का चातुर्मास हुआ. 25 सितंवर 1983 को पांच मुनि दीक्षा संपन्न हुई.इसमें मुनि श्री सुधा सागर, मुनि समता सागर, मुनि स्वभाव सागर, मुनि सरल सागर व मुनि समाधि सागर महाराज थे. मुनि श्री ने कहा कि वह इसरी को श्री सम्मेद शिखर का अलग हिस्सा नहीं मानते. भगवान अजितनाथ और संभवनाथ स्वामी के समय का विस्तार बाला यह क्षेत्र इसरी तक फैला हुआ था. इसलिए यह भी सम्मेदशिखर जी का ही एक हिस्सा है. मुनि श्री ने उस समय की यादों को ताजा करते हुए कहा कि आज जो आर्यिका गुरुमति के रुप में आर्यिकाओं की प्रधान है, वह भी उस समय एक बहन के रूप में साधना कर रही थीं. आज विशाल आर्यिका संघ को साथ लेकर के सभी को पुण्यार्जन करा रही हैं. मुनि श्री ने कहा कि सम्मेदशिखर यात्रा की भावना का श्रेय ऐलक श्री निश्चय सागर महाराज को भी है. उनके मन में इस यात्रा को करने का बहुत भाव था. उन्होंने गुणायतन तीर्थ और मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज की प्रशंसा करते हुए कहा कि गुरुदेव के आशीर्वाद से हम सभी का मन कटनी चातुर्मास के उपरांत ही बन गया था. लेकिन उनका स्वास्थ्य प्रतिकूल होने से हम लोगों ने जीवंत शिखर तीर्थ वंदना अर्थात आचार्य गुरुदेव के पास डोंगरगढ़ पहुंच गये थे. मुनि श्री ने कहा कि भले शिखर जी की वंदना में देर हो गयी, लेकिन जीवंत तीर्थ गुरुदेव वंदना का अवसर इन्हें मिल गया. इस अवसर पर गुणायतन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद काला कोलकाता, गुणायतन के सीइओ सुभाष जैन, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र जैन, शैलेंद्र जैन, कपूर चंद्र जैन कोटा, सुरेंद्र कुमार जैन आदि मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है