रमजान में नाजिल हुआ है कुरान
रमजानुल मुबारक महीने का हर लम्हा रहमतों वाला है. इसी महीने कुरआन पाक नाजिल हुआ. माहे रमजान इसीलिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. बताया जाता है कि अल्लाह का इरशाद है कि माहे रमजान में रोजा का मतलब गरीबी और तंगदस्ती में मुब्तला और भूख-प्यास से बिलखते इंसानों के दर्द व गम का एहसास, दिल व दिमाग में जरूरतमंद की मदद का जज्बा पैदा हो.अल्लाह त आला के करीब होने का अहसास
कहा जाता है कि मुसलमान रमजान की इबादत की बदौलत अपने आप को पहले से ज्यादा अल्लाह त आला के करीब महसूस करता है, ताकि मुसलमान साल भर अल्लाह त आला से डरते हुए जिंदगी गुजारे. जिक्र व फिक्र, इबादत व रियाजत, कुरआन की तिलावत और याद-ए- इलाही में खुद को व्यस्त रखे. यह वह महीना है जिस का अव्वल हिस्सा (असरा) रहमत, बीच का असरा मगफिरत और आखिरी असरा निजात यानी जहन्नुम से आजादी का है.हर दिन और हर वक्त इबादत का माह
विदित हो कि रमजान शरीफ का रोजा दस शव्वाल दो हिजरी में फर्ज हुआ. सबसे पहले यौमे आशूरा का रोजा फर्ज हुआ था. रमजान के महीने में हर दिन और हर वक्त इबादत होती है. माहे रमजान में रोजा, नमाज, सेहरी, इफ्तार, तरावीह की नमाज का जज्बा होता है. कहा कि रमजान में शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है और जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं. इनमें से अल्लाह त आला की खास रहमतें जमीन पर उतरती हैं.चांद दिखा, रमजानुल मुबारक महीने का पहला रोजा आज
शनिवार की शाम चांद दिखने के साथ ही रमजानुल मुबारक महीना शुरू हो गया. मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा-नमाज की तैयारी में जुट गये. कई मस्जिदों में शनिवार की रात से ही तरावीह ही शुरू हो गयी. लोग सेहरी-इफ्तार व नमाज को ले उत्साहित हैं. घर से लेकर मस्जिद तक माहे रमजान की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. बाजार में भी सेहरी व इफ्तार से जुड़ी सामग्री यथा खजूर, तरबूज, सेव,अंगूर, केला, खीरा, अनार समेत दूध-दही, ब्रेड आदि की बिक्री में इजाफा हो गया है.(समशुल अंसारी, गिरिडीह)
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है