18.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Giridih News: गिरिडीह सदर अस्पताल बना दलालों का अड्डा, इलाज से ज्यादा मुनाफाखोरी में दिलचस्पी

Giridih News: अस्पताल में प्रवेश करते ही सबसे पहले मरीजों और परिजनों की नजर जिन पर पड़ती है, वे हैं निजी एम्बुलेंस चालक. चाहे अस्पताल का मुख्य गेट हो, इमरजेंसी वार्ड का दरवाज़ा हो या फिर परिसर का कोई कोना हर जगह इन चालकों का जमावड़ा साफ देखा जा सकता है. दिनभर ये अस्पताल परिसर में मंडराते रहते हैं और मरीजों के परिजनों को टोहने का काम करते हैं. इनका पूरा खेल तब शुरू होता है, जब कोई मरीज गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचता है. जैसे ही चिकित्सक उसे रेफर करने की बात कहते हैं, वैसे ही एम्बुलेंस चालक सक्रिय हो जाते हैं. मरीज के परिजनों को यह समझाया जाता है कि सरकारी एम्बुलेंस देर से पहुंचेगी, जिसके कारण मरीज की जान को खतरा हो सकता है.

जिला मुख्यालय का सदर अस्पताल इन दिनों इलाज के नाम पर बाहरी लोगों, बिचौलियों, निजी एम्बुलेंस चालकों और अस्पताल कर्मियों के गठजोड़ का गढ़ बन गया है. यहां का नजारा ऐसा है कि अस्पताल में आने वाले गरीब और मध्यम वर्गीय मरीज न सिर्फ अपनी बीमारी से लड़ते हैं, बल्कि उन्हें अस्पताल परिसर में फैले इस मकड़ जाल का भी सामना करना पड़ता है. चाहे एक्सरे कराने का मामला हो या अल्ट्रासाउंड या एंबुलेंस लेने का मामला हो या ब्लड सभी में पीड़ितों को परेशान किया जाता है और फिर रकम की वसूली कर उन्हें अलग-अलग तरीके से सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं. अस्पताल में प्रवेश करते ही सबसे पहले मरीजों और परिजनों की नजर जिन पर पड़ती है, वे हैं निजी एम्बुलेंस चालक. चाहे अस्पताल का मुख्य गेट हो, इमरजेंसी वार्ड का दरवाज़ा हो या फिर परिसर का कोई कोना हर जगह इन चालकों का जमावड़ा साफ देखा जा सकता है. दिनभर ये अस्पताल परिसर में मंडराते रहते हैं और मरीजों के परिजनों को टोहने का काम करते हैं. इनका पूरा खेल तब शुरू होता है, जब कोई मरीज गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचता है. जैसे ही चिकित्सक उसे रेफर करने की बात कहते हैं, वैसे ही एम्बुलेंस चालक सक्रिय हो जाते हैं. मरीज के परिजनों को यह समझाया जाता है कि सरकारी एम्बुलेंस देर से पहुंचेगी, जिसके कारण मरीज की जान को खतरा हो सकता है. इस डर का फायदा उठाकर वे परिजनों को अपने निजी एम्बुलेंस की ओर धकेल देते हैं. मजबूरी में गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार इनके झांसे में आ जाते हैं. इलाज की चिंता में डूबे परिजनों के पास न तो जांच-पड़ताल का समय होता है और न ही बहस करने की गुंजाइश. आखिरकार उन्हें मनमानी रकम देकर मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाना पड़ता है. अक्सर इन मामलों में एम्बुलेंस चालक जितना चाहें उतना किराया वसूलते हैं. स्थिति यह है कि सदर अस्पताल के अंदर स्वास्थ्य सेवाओं से ज्यादा बाहरी लोगों का नेटवर्क सक्रिय है. मरीजों की परेशानी और उनकी मजबूरी यहां धंधे का जरिया बन चुकी है. अस्पताल प्रशासन की चुप्पी और कार्रवाई की कमी ने इन मुनाफाखोरों का मनोबल और बढ़ा दिया है.

रेफरल से लेकर भर्ती तक का खेल, स्वास्थ्यकर्मी भी बने दलाली का हिस्सा

अस्पताल में दलाली का जाल इतना गहरा है कि इसमें अस्पताल के ही कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल पाए जाते हैं. जैसे ही किसी मरीज को चिकित्सक के द्वारा रेफर किया जाता है, वैसे ही इसकी जानकारी चुपके से निजी एम्बुलेंस चालकों तक पहुंचा दी जाती है. बदले में इन स्वास्थ्यकर्मियों को मोटा कमीशन मिलता है. सूत्र बताते हैं कि इस पूरे खेल के लिए बाकायदा रेट फिक्स हैं. अगर किसी मरीज को लोकल रूट पर ले जाया जाता है, तो स्वास्थ्य कर्मी को 100 से 150 रुपये तक का कमीशन दिया जाता है. वहीं धनबाद भेजे जाने पर 200 रुपये और रांची रेफर होने पर 400 रुपये तक का कमीशन तय है. अलग-अलग दूरी और गंतव्य के अनुसार अलग-अलग दरें निर्धारित की गई हैं. यही नहीं, इनका तालमेल निजी अस्पतालों से भी गहरा है. जब किसी मरीज को सरकारी अस्पताल रेफर किया जाता है तो बिचौलिये और एम्बुलेंस चालक परिजनों को यह कहकर बरगलाते हैं कि सरकारी अस्पतालों में इलाज ढंग से नहीं होगा. इस दौरान स्वास्थ्य कर्मी भी चुप्पी साधे रहते हैं. मजबूर परिजन चालकों और बिचौलियों की बातों में आकर मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती करा देते हैं. इसके बाद मरीज के इलाज और बीमारी के हिसाब से निजी अस्पताल एम्बुलेंस चालकों को कमीशन देता है. जितना खर्च इलाज में लगता है, उसके अनुपात में परसेंटेज तय होता है. इस तरह से मरीज को सरकारी अस्पताल की जगह निजी अस्पताल में भर्ती कराने का पूरा खेल चलता है. हालात तब और बिगड़ जाते हैं, जब इलाज के नाम पर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने निजी अस्पताल का भारी-भरकम बिल थमा दिया जाता है. इस पूरे गठजोड़ का खामियाजा सबसे ज्यादा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जो आखिरी उम्मीद के सहारे सदर अस्पताल पहुंचते हैं.

सदर अस्पताल में खून की दलाली, मरीजों की मजबूरी पर मुनाफाखोरी

बिचौलिए सिर्फ एम्बुलेंस और निजी अस्पतालों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अब उनका हाथ खून की दलाली तक पहुंच चुका है. सदर अस्पताल के ब्लड बैंक में खून उपलब्ध होने के बावजूद जरूरतमंद मरीजों के परिजनों को यह कहकर टाल दिया जाता है कि स्टॉक खत्म है. परिजन जब परेशान होकर इधर-उधर भागते हैं, तभी बिचौलिए सामने आते हैं और उन्हें बाहर से खून उपलब्ध कराने का दावा करते हैं. बाद में वही खून, जो ब्लड बैंक में पहले से मौजूद रहता है, उन्हीं बिचौलियों के जरिए मरीजों को कई गुना कीमत पर बेचा जाता है. गरीब और मजबूर मरीजों के सामने कोई विकल्प नहीं बचता. बीमारी की गंभीर स्थिति में जब खून की तत्काल जरूरत होती है, तो वे चाहे जैसे भी पैसे जुटाकर उसे खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं. खून जैसी जरूरी चीज पर होने वाली यह खुली दलाली न सिर्फ मरीजों की जेब पर भारी पड़ती है, बल्कि उनके जीवन से सीधा खिलवाड़ भी करती है. अस्पताल में यह सब कुछ खुलेआम हो रहा है. सदर अस्पताल के हर कोने में बिचौलियों और बाहरी लोगों का जमावड़ा साफ देखा जा सकता है. ब्लड बैंक से लेकर इमरजेंसी वार्ड और मुख्य गेट तक, हर जगह ये लोग सक्रिय रहते हैं. इनकी गतिविधियों से मरीज और परिजन रोजाना परेशान होते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक किसी तरह की कड़ी कार्रवाई नहीं की गई है. अस्पताल में तैनात कर्मियों की मिलीभगत से ये बिचौलिए लगातार फल-फूल रहे हैं. नतीजा यह है कि जो गरीब मरीज अपने जीवन को बचाने की उम्मीद लेकर सदर अस्पताल आता है, वही यहां आकर शोषण का शिकार बन जाता है. इलाज कराने की जगह उसे अपनी गरीबी, मजबूरी और बेबसी से जूझना पड़ता है.

पहुंच वाले लोगों की आरामगाह बन गयी है आइसीयू

गिरिडीह सदर अस्पताल का आईसीयू पहुंच वाले लोगों और उनके परिजनों के लिए इन दिनों आरामगाह बन गया है. पैरवी और पहुंच वाले लोगों को नियमों को ताक पर रखकर आसानी से आईसीयू बेड उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जबकि ज़रूरतमंद और गंभीर मरीजों को दर-दर भटकना पड़ता है. सूत्रों के मुताबिक यह कोई नई बात नहीं है, लंबे समय से यह सिस्टम चल रहा है जहां गंभीर रूप से बीमार मरीजों के बजाय, उन लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है जिनके पास पहुंच है. हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया जब एक ऐसे व्यक्ति को आईसीयू में भर्ती कर लिया गया जिसे सिर्फ सामान्य निगरानी की जरूरत थी. इस मामले पर नाम न छापने की शर्त पर एक स्वास्थ्यकर्मी ने बताया कि अगर कोई प्रभावशाली व्यक्ति सिफारिश करता है तो चाहे मरीज कितना भी सामान्य क्यों न हो, उसे आईसीयू में रखना हमारी मजबूरी बन जाती है.

दोषियों पर होगी सख्त कार्रवाई : डीएस

सदर अस्पताल के डीएस डॉ प्रदीप बैठा ने बताया कि उन्हें भी इन गतिविधियों से संबंधित जानकारी मिली है. उन्होंने कहा कि इसपर नियंत्रण के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. अस्पताल के कई कर्मियों का इधर से उधर ट्रांसफर किया गया है. साथ ही अस्पताल परिसर में बाहरी लोगों की आवाजाही रोकने के लिए होम गार्ड के जवानों की संख्या बढ़ाई जाएगी. डॉ. बैठा ने स्पष्ट कहा कि जो भी लोग या अस्पताल के कर्मी इस खेल में शामिल पाए जाएंगे, उन्हें चिन्हित कर सख़्त कार्रवाई की जाएगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel