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मिनी मुंबई’ अब खामोश, उद्योगों के उजड़ने से टूटा सपनों का शहर

मिनी मुंबई’ अब खामोश, उद्योगों के उजड़ने से टूटा सपनों का शहर

विजय सिंह, भवनाथपुर कभी पलामू प्रमंडल की औद्योगिक पहचान रहा भवनाथपुर आज खंडहरों में तब्दील हो चुका है. जिसे लोग मिनी मुंबई कहा करते थे, वहीं इलाका अब बेरोजगारी और पलायन की मार झेल रहा है. एक दशक पहले तक केंद्र और राज्य सरकार को अरबों रुपये का राजस्व देने वाला यह औद्योगिक क्षेत्र आज अपनी पुरानी चमक खो चुका है. उद्योग बंद हो गये, कर्मचारी बिखर गये और कभी समृद्ध रहा यह शहर अब बदहाली की मिसाल बन गया है. भवनाथपुर, जिसने कभी क्षेत्र को रोजगार, समृद्धि और पहचान दी थी, अब वीरानी का प्रतीक बन गया है. उद्योगों के बंद होने से जहां हजारों परिवार प्रभावित हुए, वहीं पलायन ने इलाके की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया है. लोग अब भी उम्मीद लगाये बैठे हैं कि सरकार एक बार फिर इस औद्योगिक नगरी की रौनक लौटाने की दिशा में ठोस कदम उठायेगी. 1969 में हुई थी माइंस की स्थापना स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने 1969 में गढ़वा जिले के भवनाथपुर के घाघरा में चूना पत्थर खदान और तुलसीदामर में डोलोमाइट खदान की स्थापना की थी. उसी वर्ष घाघरा में एशिया का सबसे बड़ा क्रशिंग प्लांट लगाया गया था, जिसने 23 अक्टूबर 1972 से उत्पादन शुरू किया. उस समय करीब 1200 कर्मचारी तीन शिफ्टों में कार्यरत थे. इस प्लांट की वार्षिक उत्पादन क्षमता 28 लाख टन थी. प्रारंभ में घाघरा खदान से प्रतिमाह 60 हजार टन चूना पत्थर और तुलसीदामर खदान से 15 हजार टन डोलोमाइट का उत्पादन किया जाता था. राजनीतिक खींचतान ने छीनी औद्योगिक पहचान भवनाथपुर का क्रशिंग प्लांट शुरू से ही राजनीति का शिकार रहा. बार-बार खदानें बंद और खुलती रहीं. 1990 के दशक में भवनाथपुर को बोकारो स्टील प्लांट से अलग कर आरएमडी में मिला दिया गया. इसी के साथ भवनाथपुर के बुरे दिनों की शुरुआत हो गयी. कर्मचारियों का स्थानांतरण शुरू हुआ और धीरे-धीरे उत्पादन घटता चला गया. 2013 में घाघरा चूना पत्थर खदान को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया, जबकि 20 फरवरी 2020 को तुलसीदामर डोलोमाइट खदान पर भी ताला लग गया. अब जहां कभी 1200 कर्मचारी काम करते थे, वहां सिर्फ 9 कर्मचारी और 3 अधिकारी बचे हैं. 2025 में पूरी तरह उजड़ गया क्रशिंग प्लांट भवनाथपुर के लिए वर्ष 2025 बेहद निराशाजनक रहा. सेल प्रबंधन ने अरबों रुपये की लागत से बने क्रशिंग प्लांट को मात्र 2.80 करोड़ रुपये में नीलाम कर दिया. अब यह प्लांट सिर्फ यादों में बचा है. भवनाथपुर डोलोमाइट खदान समूह कभी भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों को अरबों रुपये का राजस्व देता था, लेकिन सरकारों ने इस क्षेत्र को बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की. राजस्व में था बड़ा योगदान वर्ष 2013 में भवनाथपुर सेल प्रबंधन ने रेलवे विभाग को करीब 2.25 अरब रुपये, सीआईएसएफ मद में 3.40 लाख रुपये और राज्य सरकार को खनन रॉयल्टी के रूप में करीब 2 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष टैक्स दिया था. उस वर्ष लगभग 75 रैक चूना पत्थर और डोलोमाइट का डिस्पैच हुआ था, जिससे रेलवे को प्रति रैक लगभग 25 लाख रुपये की आमदनी होती थी. बिजली विभाग को भी प्रतिमाह 17–18 लाख रुपये यानी करीब 3 करोड़ रुपये वार्षिक राजस्व मिलता था. हालांकि अब सेल ने अपना बिजली कनेक्शन वाणिज्यिक श्रेणी से हटाकर घरेलू श्रेणी में करवा लिया है.

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