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भाजपा के लिए अच्छा रहा वर्ष 2014

गढ़वा : गढ़वा जिले की राजनीति के लिए वर्ष 2014 काफी महत्वपूर्ण रहा. विशेष कर यह वर्ष भाजपा के लिए शुभ रहा है. क्योंकि इस वर्ष जिले की राजनीति में जो बदलाव की बयार चली, उसका अधिक लाभ भाजपा को मिला है. भाजपा के लिए शुभ घड़ी वर्ष 2014 के आरंभ से ही शुरू हो […]

गढ़वा : गढ़वा जिले की राजनीति के लिए वर्ष 2014 काफी महत्वपूर्ण रहा. विशेष कर यह वर्ष भाजपा के लिए शुभ रहा है. क्योंकि इस वर्ष जिले की राजनीति में जो बदलाव की बयार चली, उसका अधिक लाभ भाजपा को मिला है.
भाजपा के लिए शुभ घड़ी वर्ष 2014 के आरंभ से ही शुरू हो चुकी थी, जब विभिन्न दलों के नेता और कार्यकर्ताओं का भाजपा की ओर झुकाव बढ़ना शुरू हुआ.
इससे भाजपा का संगठन लगातार बढ़ता गया. विशेष कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद शहर से लेकर देहात तक लोगों का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ गया. इसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिला, जिसमें वीडी राम बाहर के प्रत्याशी होने के बावजूद दो लाख से ऊपर मतों से विजयी हुए. भाजपा को यह सीट एक दशक के बाद मिली है. इसके पूर्व वर्ष 2004 तक भाजपा का पलामू सीट पर कब्जा था.
लेकिन इसके बाद वह लगातार वर्ष 2004, वर्ष 2007 का उप चुनाव एवं वर्ष 2009 का आम चुनाव भाजपा हार गयी. लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की ओर नेताओं, कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों का आकर्षण बढ़ता गया. इस दौरान विधानसभा चुनाव के ठीक पूर्व गढ़वा से झाविमो के विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी, भवनाथपुर से कांग्रेस विधायक अनंत प्रताप देव एवं विश्रमपुर से पूर्व विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गये.
विधानसभा चुनाव में गढ़वा सीट ढाई दशक के बाद तथा विश्रमपुर-मङिाआंव सीट आजादी के बाद पहली बार भाजपा को मिली. साथ ही भवनाथपुर सीट पर भी भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ा. भाजपा पहली बार दूसरे नंबर तक पहुंची. एक ओर जहां भाजपा को यह वर्ष इस प्रकार से शुभ साबित हुआ, वहीं कांग्रेस, राजद, आजसू, जदयू, झाविमो, भाकपा माले जैसे दलों को काफी नुकसान हुआ. कांग्रेस की पूर्व जिलाध्यक्ष व एआइसीसी सदस्य कमर सफदर पार्टी छोड़ कर झामुमो में चली गयीं. वहीं जदयू के राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य व पूर्व मंत्री रहे रामचंद्र केसरी पार्टी छोड़ कर झाविमो में चले गये. भाकपा माले के ताहिर अंसारी दल छोड़ कर बसपा में चले गये. जदयू जिलाध्यक्ष सूरज गुप्ता दल छोड़ कर आजसू में चले गये. इसी तरह अन्य दलों को नुकसान उठना पड़ा है. जबकि भाजपा के साल की शुरुआत से लेकर अंतिम समय तक फील गुड ही फील गुड रहा.

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