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गढ़वा में 20 घंटे बाद खत्म हुआ तनाव, ट्रक से नहीं निकला प्रतिबंधित मांस

मनोज दुबे मझिआंव : झारखंड के गढ़वा जिला के मझिआंव में 20 घंटे बाद जाकर ट्रक में कथित प्रतिबंधित मांस को लेकर उत्पन्न तनाव खत्म हुआ. गढ़वा से आये पशु चिकित्सकों ने जांच के बाद स्पष्ट किया कि ट्रक में रखा मांस प्रतिबंधित मांस नहीं है, यह चिकन वेस्ट (मुर्गा काटने के बाद बचे बेकार […]

मनोज दुबे

मझिआंव : झारखंड के गढ़वा जिला के मझिआंव में 20 घंटे बाद जाकर ट्रक में कथित प्रतिबंधित मांस को लेकर उत्पन्न तनाव खत्म हुआ. गढ़वा से आये पशु चिकित्सकों ने जांच के बाद स्पष्ट किया कि ट्रक में रखा मांस प्रतिबंधित मांस नहीं है, यह चिकन वेस्ट (मुर्गा काटने के बाद बचे बेकार चीजें) है. विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने खुद ट्रक के अंदर जाकर तसल्ली की और इसके बाद मामला शांत हुआ.

दरअसल, शनिवार की रात से ही मझिआंव थाना क्षेत्र के पुरहे गांव में एक ट्रक की वजह से लोग परेशान थे. एक ट्रक एक स्कूल के पास खड़ा था. लोगों ने देखा कि इस ट्रक से खून की धारा बह रही है. लोग जब ट्रक के करीब पहुंचे, तो देखा कि ट्रक पर मुर्गे के पंख आदि पड़े हैं. लेकिन, खून की धारा देख उन्हें शक हुआ कि ट्रक में प्रतिबंधित मांस भरा है.

ग्रामीणों ने ट्रक को चारों ओर से घेर लिया और सुबह तक वहीं डटे रहे. सुबह में पुलिस पुरहे गांव पहुंची और ड्राइवर राजेश कुमार ठाकुर को हिरासत में लेकर हाजत में बंद कर दिया. दोपहर बाद गढ़वा से पशु चिकित्सकों का दल जांच के लिए आया. जांच दल में शामिल पशु चिकित्सक मनमोहन प्रसाद सिंह ने ट्रक (HR55 V7795) की पूरी जांच की. जांच के बाद टीम ने कहा कि यह प्रतिबंधित मांस नहीं है, यह चिकन वेस्ट है.

पशु चिकित्सक के कहने के बाद थाना प्रभारी की अनुमति से कई लोगों ने बारी-बारी से ट्रक में जाकर देखा. सबको जब इस बात की तसल्ली हो गयी कि ट्रक में प्रतिबंधित मांस नहीं है, तो जाकर माहौल शांत हुआ. विश्व हिंदू परिषद के नेता समेत अन्य लोगों ने वहां मौजूद भीड़ को समझाया कि ट्रक में कोई प्रतिबंधित मांस नहीं है. इसके बाद धीरे-धीरे लोगों की भीड़ वहां से छंट गयी और अंतत: 20 घंटे बाद अंजाना तनाव खत्म हुआ.

ट्रक के चालक राजेश कुमार ठाकुर ने बताया कि वह दिल्ली के गाजीपुर मंडी से ट्रक में चिकन वेस्ट लेकर पश्चिम बंगाल जा रहा था. उसे इस खेप को कोलकाता के बसीरहाट पहुंचाना था. राजेश ने यह भी बताया कि इस वेस्ट का इस्तेमाल तालाबों में बंगुरी मछली के चारा के रूप में किया जाता है.

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