इसके कारण वे नगर परिषद से निराश हो गये हैं. लेकिन बात इसकी नहीं करनी है, बल्कि बात इसकी करनी है कि क्या सचमुच में गढ़वा शहर खुले में शौच से मुक्त हो चुका है. इसका आधार नगर परिषद द्वारा दिया गया कि उन्होंने नगर परिषद क्षेत्र में घर के हिसाब से सबको शौचालय(कुल 2978 व्यक्तिगत शौचालय) का निर्माण करा दिया है. साथ ही बेघरवालों अथवा अन्य के लिये पांच सामुदायिक शौचालय बनवा दिये हैं और नौ इसी तरह के सामुदायिक शौचालय बनाये जा रहे हैं.
इसी आधार पर इस घोषणा में कोई संशय नहीं है कि गढ़वा शहरी क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त कर लिया गया है. लेकिन धरातल पर जाने पर स्थिति कुछ और दिख रही है. प्रशासन का यह दावा सही हो सकता है कि उन्होंने सभी परिवारों के लिये शौचालय बनवा दिये हैं. लेकिन शहर के लोग अब शौच के लिये घर से बाहर नहीं जा रहे हैं, यह बात सही साबित नहीं हो रही है.
इसका उदाहरण है सरस्वतिया और दानरो नदी का किनारा, रामासाहू उवि के पीछे का पथ सहित नगवां, सोनपुरवा, पालिका परिवहन पड़ाव में रामबांध तालाब सहित आसपास के क्षेत्र में ओडीएफ की धज्जियां उड़ती देखी जा सकती है. बचपन से ही खुले में शौच जाने के अभ्यस्त लोगों में अधिकांश अभी भी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. वे इस बात से न सिर्फ अनभिज्ञ हैं कि उनका शहर खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुका है, बल्कि उनको अपने शहर के स्वाभिमान का भी ख्याल नहीं दिखता है. यद्यपि नगर परिषद की ओर से इसके लिये जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही साथ कभी गुलाब का फूल देकर, तो कभी सीटी बजाकर उन्हें ऐसा करने से रोकने का लगातार प्रयास किया गया, लेकिन इसके बाद भी लोग हैं कि मानते ही नहीं. ऐसी बात नहीं है कि अभियान का असर नहीं पड़ा है. शहर में खुले में शौच जाने की संख्या में जरूर कमी आयी है, लेकिन अभी भी काफी संख्या में लोग खुले में शौच जा रहे हैं और शहर के वातावरण को गंदा कर रहे हैं. गढ़वा शहर को ओडीएफ करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्थाओं द्वारा नैतिक जिम्मेवारी नहीं ली जाती है, तबतक इसमें सफलता मिलना मुश्किल होगा. क्योंकि व्यक्ति की मानसिकता और उसकी आदत को बदलना इतना आसान भी नहीं है. इसके लिये सतत जागरूगता अभियान चलाने के साथ ही साथ प्रशासनिक स्तर से कुछ कानूनी कार्रवाई का भी सहारा लेना पड़ सकता है.