घाटशिला.
””””भजन बिना चैन न आये राम”””” यह पंक्ति घाटशिला रेलवे स्टेशन और चलती ट्रेनों में अक्सर सुनायी देती है. इसे गा रहे होते हैं घाटशिला के राजस्टेट निवासी कान्हू कालिंदी, जो दोनों आंखों से दिव्यांग हैं. उनकी आवाज में एक गहराई है. एक दर्द है जो सीधे दिल को छू जाता है. करीब 45 वर्षीय कान्हू कालिंदी आठ साल की उम्र से ही भजन गाकर जीवन का रास्ता ढूंढने लगे. बीते 15 वर्षों से वे ट्रेनों में सफर कर लोगों के सामने अपनी कला प्रस्तुत करते हैं. कहते हैं नींद भी भजन बिना नहीं आती. यही मेरी जिंदगी का सहारा है. पर उनकी जिंदगी में संघर्षों की कोई कमी नहीं है. पेंशन तीन महीनों से बंद है. पहले की तरह ट्रेन में कमाई भी नहीं हो रही. पहले 35 किलो चावल मिलता था, फिर 25 किलो हुआ और अब 20 किलो पर आ गया. मैं तो देख भी नहीं सकता, मेरे जैसे पर कौन ध्यान देता. यह कहते हुए अपनी पीड़ा छुपा नहीं सके. सरकारी योजनाओं में कटौती और व्यवस्थाओं की अनदेखी ऐसे लोगों के लिए दोहरी मार है. बावजूद कालिंदी की आवाज में शिकायत कम, आत्मविश्वास अधिक है. वे कहते हैं जिंदगी कट रही है, जैसे-तैसे सही, लेकिन उम्मीद अब भी बाकी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है