गालूडीह . घाटशिला की हेंदलजुड़ी पंचायत के कालाझोर गांव में पारंपरिक गोट पूजा हुई. इस पूजा का उद्देश्य खेती-बाड़ी में पशुओं विशेषकर बैलों के योगदान का सम्मान करना है. सोमवार की शाम गांव में पूरे रीतिरिवाज के साथ गोट पूजा मनायी गयी. ग्रामीणों ने बैलों को नहलाकर, सजाकर और उन्हें गुड़ पीठा खिलाकर पूजा की. यह पर्व न केवल पशुप्रेम का प्रतीक है, बल्कि आगामी फसल की समृद्धि की प्रार्थना से भी जुड़ा है. गोट पूजा के बाद सोहराय पर्व की शुरुआत होती है, जो आदिवासी समाज का एक प्रमुख त्योहार है. इसके क्रम में अगले दिन गोहाल पूजा और फिर बांदना पर्व के दौरान गोरू खूटांव (गाय-बैलों को बांधने की पूजा) की जाती है. इस अवसर पर झामुमो प्रत्याशी सोमेश चंद्र सोरेन पूजा में शामिल हुए. उन्होंने ग्रामवासियों से संवाद करते हुए कहा कि गोट पूजा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सामुदायिक एकजुटता का प्रतीक है. उन्होंने इस सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी सबको लेने की बात कही. पूजा स्थल पर पारंपरिक सोहराय नृत्य और झारखंडी संगीत की सुंदर झलक भी देखने को मिली. सोमेश सोरेन ने स्पष्ट किया कि ऐसे लोक पर्वों को राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से संरक्षित करना ही सच्ची जनसेवा है.
ग्रामीणों ने क्षेत्र की खुशहाली मांगी
घाटशिला. घाटशिला के शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण इलाकों तक सोमवार को गोट पूजा के साथ सोहराय पर्व की शुरुआत हर्षोल्लास के साथ हुई. काशिदा पंचायत के बनटोला गोट पूजा थान में यह पूजा मांझी राम किशोर मुर्मू के नेतृत्व में संपन्न हुई. नायके बाबा गोपीनाथ मुर्मू ने पूजा कर ग्रामीणों के सुख, शांति और समृद्धि की कामना की. सोहराय पर्व के दौरान पारंपरिक सोहराय गीत गाए जाते हैं और पशुधन की पूजा की जाती है. तीसरे और अंतिम दिन पशुओं का खूंटाव किया जाता है. 22 अक्तूबर को देश बांदना कार्यक्रम होगा, जिसमें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले बैल मालिकों को सम्मानित किया जायेगा. आसना, काडाडूबा, कालचिती, बाकी, बराजुड़ी और काशिदा पंचायत के कई गांवों में भी पूजा का आयोजन हुआ. मौके पर शांखो मुर्मू, मंगल मुर्मू, फागु सोरेन, बिशू टुडू, ईश्वर हांसदा, रामसाई सोरेन, दुलाल मुर्मू, भादो मांडी, लखन मुर्मू, सुदाम मुर्मू, जुझार सोरेन, श्याम मुर्मू और फागु मुर्मू इस अवसर पर उपस्थित थे.आने वाली पीढ़ियों के लिए जल जंगल व जमीन की रक्षा जरूरी
गालूडीह के गांवों में गोट पूजा के साथ सोहराय पर्व की शुरुआत हो गयी. बांदना पर्व आज मनाया जा रहा है, जिसके अंत में गोलाह पूजा और बैलों को चुमाने की परंपरा निभायी जायेगी. बड़ाखुर्शी पंचायत के छोटाखुर्शी गांव के बनडीह टोला में स्थित जाहेरगाढ़ (देवस्थान) पर सोमवार को ग्रामीणों ने गोट पूजा की. नायके बाबा भादो हांसदा ने मंत्रोच्चारण के बीच पूजा कराई और ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से सोड़े (प्रसाद) बनाकर ग्रहण किया. नायके भादो हांसदा के अनुसार, सोहराय पर्व में पशुधन की पूजा की जाती है और पर्व के अंतिम दिन मवेशियों को नचाया जाता है. पूजा के अवसर पर माझी बाबा शास्त्री हेंब्रम और अन्य ग्रामीण उपस्थित थे.हेंदलजुड़ी आदिवासी समाज के लोगों ने की गोट पूजा:
हेंदलजुड़ी पंचायत के डूंगरीडीह टोला स्थित डांगाटाड़ जाहेरगाढ़ में पारंपरिक गोट पूजा आयोजित हुई. गांव के नायके बाबा रामचंद्र हांसदा ने आदिवासी परंपरा के मुताबिक पूजा संपन्न कराई. पूजा के बाद ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से बैठक की और प्रसाद ग्रहण किया. इस अवसर पर किसानों ने अपने बैलों की भी पूजा की, जो आदिवासी संस्कृति में कृषि और जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है. बाबा रामचंद्र हांसदा ने कहा कि डांगाटाड़ जाहेरगाढ़ में पूर्वजों के समय से गोट पूजा और मांघ सिंह बोंगा पूजा होती आ रही है, इसलिए आने वाली पीढ़ियों के लिए जल, जंगल, जमीन और धार्मिक स्थलों की रक्षा करना सबका कर्तव्य है. मौके पर रामचंद्र हांसदा, सोबेन माझी, जोक माझी, विनोद मुर्मू, नरेश हांसदा, जोगेन मार्डी, भीम मार्डी, सूरज मार्डी, आनंद मुर्मू, हरि मुर्मू, लक्ष्मी मुर्मू, लक्ष्मण सोरेन, तुशीलदार मार्डी, कृष्णा टुडू सहित कई ग्रामीण मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

