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शरद पूर्णिमा पर मां लक्खी व चंद्रदेव की आराधना आज

शरद पूर्णिमा, जो आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, इस वर्ष 6 अक्टूबर को पड़ रही है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत वर्षा करता है। पारंपरिक मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों में दिव्य ऊर्जा होती है, इसलिए खीर बनाकर चांदनी में रखने की परंपरा है, जिससे खीर अमृत तत्व ग्रहण कर शरीर को स्वस्थ और मन को शांत बनाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी रात महारास रचा था और मां लक्ष्मी का जन्म भी इसी दिन माना जाता है। इस दिन उपवास, पूजा और खीर का भोग शुभ माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी चांदनी की ठंडी किरणें स्वास्थ्य व मानसिक शांति प्रदान करती हैं।

संवाददाता, जामताड़ा. आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली शरद पूर्णिमा इस वर्ष 6 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी. इस तिथि पर चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत वर्षा करता है, इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. पं. विनोद राजहंस के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में दिव्य ऊर्जा और अमृत तत्व होते हैं, इसलिए इस रात खीर बनाकर चांदनी में रखने की परंपरा है. माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में अमृत तत्व आ जाते हैं, जो शरीर को शुद्ध और मन को शांत करते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में महारास रचाया था और चंद्रदेव ने अपनी शीतल किरणों से आनंद का वातावरण बनाया था. यह भी माना जाता है कि मां लक्ष्मी का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन, खीर का भोग और चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है. इस रात उपवास रखना, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करना और सुबह खीर का प्रसाद ग्रहण करना शुभ माना जाता है. धार्मिक आस्था के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप से भी इस रात का महत्व है. चांदनी की ठंडी किरणें शरीर को शीतलता, मानसिक शांति और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं. इसलिए शरद पूर्णिमा को स्वास्थ्य और समृद्धि की पूर्णिमा भी कहा जाता है.

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