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समाज में प्रेमपूर्वक रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल : अमृता त्रिपाठी

कथा व्यास अमृता त्रिपाठी ने बाल्यकाल में धर्म संस्कारों के बीजारोपण की आवश्यकता पर बल दिया. अभिभावकों से अपने बच्चों में प्रारंभ से ही धार्मिक और नैतिक मूल्यों का संचार करने की अपील की.

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रामगढ़. प्रखंड के सिलठा बी गांव स्थित लक्खी मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन रविवार को कथा व्यास अमृता त्रिपाठी ने बाल्यकाल में धर्म संस्कारों के बीजारोपण की आवश्यकता पर बल दिया. अयोध्या निवासी कथावाचिका ने अभिभावकों से अपने बच्चों में प्रारंभ से ही धार्मिक और नैतिक मूल्यों का संचार करने की अपील की. उन्होंने कहा कि बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं, जिन्हें जैसा ढाला जाए, वे वैसा ही रूप ले लेते हैं. यही समय है जब अच्छे संस्कार जीवन में आरोपित किए जा सकते हैं. कथा व्यास ने भक्त प्रह्लाद, बालक ध्रुव और छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चरित्रों का उल्लेख करते हुए बताया कि बचपन में मिले संस्कार जीवनभर साथ निभाते हैं. उन्होंने बताया कि भक्त प्रह्लाद ने अपनी मां कयाधु के गर्भ में ही ‘नारायण’ नाम का श्रवण किया था, जिससे उनके जीवन के कई कष्ट दूर हो गए. कथा के क्रम में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का भी भावपूर्ण वर्णन किया गया. उन्होंने बताया कि पांच वर्ष की अवस्था में ही ध्रुव को भगवान के दर्शन और 36,000 वर्षों तक राज्य करने का वर प्राप्त हुआ, जो उनके बाल्यकालीन संस्कारों का ही परिणाम था. कहा कि ऐसे पावन प्रसंगों से हमें प्रेरणा लेकर जीवन में धर्म, सेवा और प्रेम के मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए. कथा के दौरान संकीर्तन मंडली द्वारा प्रस्तुत मधुर भजनों ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.

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