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विधिक सेवा आंदोलन को और अधिक ऊर्जा और संकल्प के साथ आगे बढ़ाना होगा : मुख्य न्यायाधीश

न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने उपायुक्त से कहा, आपके पास साठ वर्ष तक अवसर, जरूरतमंदों के लिए इसका भरपूर उपयोग करें.

दुमका कोर्ट. स्टेट लेवल लीगल सर्विसेज कम एंपावरमेंट कैंप और पूरे राज्य में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत का दुमका से उदघाटन करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने कहा कि न्याय को किसी जटिल प्रक्रिया या अमूर्त सिद्धांत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह लोगों के संघर्ष, चुनौतियों, आकांक्षाओं और अनिश्चितताओं के बीच एक सजीव और सुलभ उपस्थिति के रूप में प्रकट होना चाहिए. ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से न्यायपालिका अपने औपचारिक ढांचे से बाहर निकलकर समाज के बीच जाती है और संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिए गए समानता, गरिमा और न्याय तक पहुंच के वचन को सुदृढ़ करती है. उन्होंने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकार केवल विवाद निपटारे की एक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह संवाद, सुलह और शांति की भारत की गहन सभ्यतागत परंपरा को प्रतिबिंबित करती है. ऐसे मंच विवादों को केवल निपटाते नहीं हैं, बल्कि करुणा, संयम और पारस्परिक सम्मान के साथ उनका समाधान करते हैं. इससे न केवल तनाव कम होता है, बल्कि ऐसे समाधान सामने आते हैं जो थोपे हुए नहीं, बल्कि स्वेच्छा से स्वीकार किए गए होते हैं. यही वह स्थिति है, जहां न्याय सबसे अधिक सार्थक बनता है—जब वह संघर्षपूर्ण नहीं, बल्कि सहयोगात्मक हों. उन्होंने कहा कि विधिक सेवा आंदोलन को और अधिक ऊर्जा और संकल्प के साथ आगे बढ़ाना होगा. कहा कि विधिक सेवाओं में तकनीक का अधिक प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि राज्य के दूरदराज़ क्षेत्रों तक भी पहुंच बनाई जा सके. पैरा लीगल स्वयंसेवकों की क्षमता को सुदृढ़ करना होगा और विभिन्न विभागों के साथ सहयोग को और गहरा करना होगा. उन्होंने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा इस सशक्तिकरण शिविर के सफल आयोजन, उनके समर्पण और प्रयासों की सराहना की. कहर कि न्यायिक पदाधिकारियों का समन्वय, कर्मचारियों का परिश्रम, पैरा लीगल स्वयंसेवकों का योगदान, पैनल अधिवक्ताओं की प्रतिबद्धता और विभिन्न विभागों का प्रशासनिक सहयोग, ये सभी सामूहिक सेवा की भावना को दर्शाते हैं. उन्होंने जिला प्रशासन की पहल,योजनाओं-कार्यक्रमों के क्रियान्वयन व नवाचारों को भी सराहा. लोगों को आश्वस्त किया कि न्याय प्रणाली आपके साथ खड़ी है. आपकी गरिमा, आपके अधिकार और आपका कल्याण हमारे कार्यों का केंद्र हैं. न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि समाज में अभी भी पॉक्सो-बाल विवाह के काफी अपराध हो रहे हैं, जिसमें अभियोजन को आरोपियों को सजा दिलाने की पुरजोर कोशिश की जानी चाहिए, ताकि समाज में ताकत आये कि उसे मदद करने वाला कोई तो है. उन्होंने उपायुक्त अभिजीत सिन्हा से कहा कि वे ऐसे पद पर हैं, जहां उनके पास समाज को सहायता देने की व्यवस्था है. इसके लिए उनके पास भी मात्र 60 वर्ष की उम्र तक ही अवसर है. इसलिए वे इसका भरपूर उपयोग करें. लाभुकों से भी न्यायमूर्ति सुजीत नारायण ने कहा कि सरकार की जिस स्कीम के बारे में आपको आज मालूम हो रहा है, उसे गांव में आस पड़ोस और अन्य लोगों को भी बताएं, ताकि वंचित को भी लाभ प्राप्त हो पाए. क्योंकि समाज में एक डर का माहौल रहता है, जिसे दलमा में उन्होंने देखा. वहां लोग खाना तो नीचे बनाते हैं लेकिन सोते पेड़ पर हैं क्योंकि हाथी का डर बना रहता है कि कहीं जान नहीं ले ले. वहीं, अपने पुराने संस्मरण को साझा कर न्यायमूर्ति प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि दुमका में 2008 में जब वे पीडीजे थे. उस समय न्याय आपके द्वार कार्यक्रम चल रहा था, तब वे लोग एक बार जरमुंडी प्रखंड गए थे. वहां एक बुजुर्ग महिला आवेदन लेकर आयी कि उसे वृद्धा पेंशन नहीं मिल रहा. जब इसकी वजह उन्होंने जानने की कोशिश की, तो मालूम हुआ उनके उम्र का कोई प्रमाणपत्र नहीं है. कहा कि उनके बेटा के उम्र के आधार पर या जो मापदंड हो उस आधार पर पेंशन उनका चालू किया जाए और फिर बाद में पेंशन चालू किया गया. उन्होंने ऐसे मामलों में प्रशासन को संवेदनशील बनने को कहा.

ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर लघु फिल्म देख भावुक हुए मुख्य न्यायाधीश :

ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर एक लघु फिल्म देख मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और सुजीत नारायण की आंखों में आंसू छलक गये. इस ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर लघु फिल्म को झालसा की पारा लीगल टीम द्वारा बनाया गया था. फिल्म में यह दिखाया गया कि कैसे गांव से एक गरीब परिवार की लड़की को शहर ले जाकर उससे साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, बाद में डीएलएसए द्वारा उसे मुक्त कराकर वापस घर लाया गया और फिर उसे वापस शिक्षा से जोड़ा गया. इस लघु फिल्म को देखकर दोनों न्यायमूर्ति काफी भावुक हो गए. दोनों की आंखों में आंसू छलक पड़े.

22575 लाभुक हुए लाभान्वित, 13.86 करोड़ की परिसंपत्ति वितरित :

कार्यक्रम के दौरान मुख्य न्यायाधीश एवं विशिष्ट अतिथियों के द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत लाभुकों को लाभान्वित किया गया. दो लाभुकों के बीच क्षतिपूर्ति राशि का वितरण किया गया, वहीं एक लाभुक को मोटर दुर्घटना दावा के तहत निर्धारित मुआवज़ा प्रदान किया गया. मत्स्य विभाग द्वारा एक लाभुक को टैंक निर्माण हेतु राशि उपलब्ध करायी गयी. इसके अलावा दो लाभुकों को अबुआ स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किया गया. दीदी की दुकान योजना के अंतर्गत एक लाभुक को तीन लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी गयी, जबकि जेंडर रिसोर्स सेंटर के लिए एक लाभुक को तीन लाख रुपये की राशि प्रदान की गयी. दो लाभुकों के बीच सामुदायिक वन अधिकार पट्टा का वितरण किया गया. पशुधन विकास योजना के तहत दो लाभुकों को प्रति लाभुक 67,294 रुपये की सहायता राशि प्रदान की गयी. कुक्कुट पालन योजना के अंतर्गत दो लाभुकों को चेक प्रदान किए गए. सर्वजन पेंशन योजना के तहत एक लाभुक को स्वीकृति पत्र सौंपा गया, जबकि पारिवारिक हित लाभ योजना के अंतर्गत एक लाभुक को निर्धारित लाभ प्रदान किया गया. कार्यक्रम में दो लाभुकों को श्रवण यंत्र वितरित किए गए. अबुआ आवास योजना के अंतर्गत एक लाभुक को आवास की चाबी सौंपी गयी. इसके साथ ही सब्जी उत्पादन योजना के तहत तीन लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की गयी. इसके अतिरिक्त एक लाभुक को धोती-साड़ी तथा एक अन्य लाभुक को ग्रीन राशन कार्ड प्रदान किया गया. कार्यक्रम में दुमका के सभी न्यायिक पदाधिकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, जिला के प्रशासनिक पदाधिकारी आदि मौजूद थे. इस अवसर पर दर्जन भर विभागों द्वारा स्टॉल भी लगाये गये थे, जिसका अतिथियों ने अवलोकन किया.

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