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हंसडीहा बना मजदूरों की मंडी, हर सप्ताह केरल भेजे जा रहे कामगार

हंसडीहा क्षेत्र से केरल सहित दक्षिण के राज्यों में पलायन करने वाले मजदूरों को दलालों द्वारा बिना निबंधन के गुरुवार को पैक बसों से भेजा जाता है। बुधवार को हर सप्ताह केरल की पांच-छह बसें हंसडीहा पहुंचती हैं, जिनमें असली क्षमता से ज्यादा मजदूर बिठाए जाते हैं। दलाल मजदूरों को गांव-गांव से लाकर ठेकेदारों को सौंपते हैं, जिससे वे मोटा कमीशन वसूलते हैं। ये बसें कोरोना काल से शुरू हुए इस कारोबार के तहत गैरकानूनी तरीके से परिवहन विभाग को परमिट दिखाकर चेकिंग से बचती हैं। प्रशासनिक समस्या रहते हुए, जरूरी है कि मजदूरों का पूरा ब्यौरा प्रशासन के पास हो, उन्हें उचित मजदूरी मिले और सुरक्षित व शोषण-मुक्त वातावरण में रोजगार प्रदान किया जाए।

कोरोना काल में शुरू हुआ पलायन अब बना मुनाफे का कारोबार – प्रत्येक बुधवार को खुलती है केरल की बसें, पर्यटन परमिट पर बस वाले मजदूरों को ले जाने का करता है कार्य – गांवों व आसपास के क्षेत्र से दलालों द्वारा मजदूर को मंगाकर केरल में ठेकेदारों को सौंपने का होता है काम – अधिकांश मजदूर बिना किसी निबंधन के ले जाए जाते हैं, लिहाजा शासन-प्रशासन के पास नहीं रहता ऐसे मजदूरों का ब्यौरा प्रतिनिधि, हंसडीहा हंसडीहा का क्षेत्र केरल सहित दक्षिण के राज्यों में पलायन करने वाले मजदूरों की मंडी बनता जा रहा है. यहां से हर सप्ताह बुधवार को पांच से छह बसें रवाना होती हैं. कई स्थानीय एजेंट ऐसे मजदूरों को तलाश कर पहले से तैयार रखते हैं और बस आते ही उन्हें चढ़ाकर मोटा कमीशन वसूलते हैं. हंसडीहा में मजदूरों को केरल ले जाने वाली प्राइवेट बसों का हब बनने की प्रक्रिया कोरोना काल में ही शुरू हो गई थी. अब यहां बड़े पैमाने पर केरल की बसें पहुंचने लगी हैं. जानकारी के अनुसार गांव-गांव में एजेंट नियुक्त किए गए हैं, जिन्हें प्रत्येक मजदूर लाने पर पांच सौ रुपये तक दिया जाता है. इन मजदूरों में अधिकतर महिलाएं शामिल होती हैं. पचास सीटों वाली बसों में अतिरिक्त पंद्रह सीटें लगायी जाती हैं. प्रत्येक मजदूर से तीन हजार रुपये भाड़े के रूप में लिए जाते हैं. इतना ही नहीं, केरल पहुंचने पर ठेकेदार से तय रकम लेकर मजदूरों को सौंप दिया जाता है. इसके बाद ठेकेदार उन्हें अलग-अलग स्थानों पर कारोबारियों और कंपनियों में कमीशन के साथ काम पर लगाता है. गौरतलब है कि कोरोना काल में वैश्विक मजबूरी के चलते आरंभ हुआ यह आवागमन अब एक बड़े कारोबार का रूप ले चुका है. परिवहन विभाग को परमिट के नाम पर गुमराह किया जा रहा है. इतनी लंबी दूरी और क्षमता से अधिक मजदूरों की यात्रा सुरक्षित नहीं मानी जा सकती. बीते महीने इन बसों के संचालन और प्रशासनिक प्रबंधन के नाम पर कमीशन को लेकर मामला थाना तक पहुंचा था. लेकिन इस कारोबार से जुड़े लोगों ने उसे शांत करा दिया. जिला परिवहन कार्यालय द्वारा कई बार वाहन चेकिंग अभियान चलाया गया, फिर भी ये बसें कार्रवाई से बची रहीं. ये बसें अक्सर आसपास के होटलों में खड़ी रहती हैं, जिससे चेकिंग से बच निकलती हैं. बहरहाल, यह आवश्यक है कि पलायन करने वाले मजदूरों को रोजगार अवश्य मिले, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि उनका पूरा विवरण श्रम विभाग के पास दर्ज हो, उनके परिजनों को इसकी जानकारी हो, और उन्हें उचित मजदूरी प्राप्त हो. उन्हें सुरक्षित वातावरण में कार्य करने का अवसर मिले और किसी भी प्रकार का शोषण न हो.

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