Prabhat Khabar Online legal Counseling: धनबाद-भूमि, संपत्ति, दुर्घटनाओं के लिए बीमा कंपनियों से क्लेम और पारिवारिक विवादों में कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद कोर्ट के अधिवक्ता विनीत कुमार ने दिये. लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली. किसी रिश्तेदार के बरगलाने के कारण पत्नी आपसे अलग रहती है और इसका साक्ष्य आपके पास है तो रिश्तेदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.
संजय शर्मा ने पूछा ये सवाल
धनबाद से संजय शर्मा का सवाल : मैं दोस्त की कार चला रहा था. दुर्घटना में कार क्षतिग्रस्त हो गयी. बीमा कंपनी ने क्लेम अस्वीकार कर दिया.
अधिवक्ता की सलाह : कार का बीमा पॉलिसी में नामित चालक तक सीमित है, तो कंपनी क्लेम अस्वीकार कर सकती है. ऐसे में पहले पॉलिसी की शर्तें देखें. क्या इसमें अन्य अनुमत चालक का प्रावधान है. यदि आप मित्र की अनुमति से वाहन चला रहे थे, तो कंटिजेंट कवरेज का हवाला देकर अपील करें. इसके बाद भी बीमा कंपनी इनकार करे, तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करें.
बोकारो से सरोज सिंह का सवाल : मेरे पास एक्सीडेंटल बीमा है. सड़क हादसे में सिर में गंभीर आंतरिक चोट लगी, पर हड्डी नहीं टूटी. बीमा कंपनी ने इसी आधार पर क्लेम अस्वीकार किया.
अधिवक्ता की सलाह : बीमा कंपनी केवल हड्डी टूटने पर ही क्लेम मानने का आधार नहीं बना सकती. यदि पॉलिसी में गंभीर चोट या अस्थायी/स्थायी अपंगता का कवरेज शामिल है, तो आंतरिक चोट पर भी क्लेम बनता है. इसलिए अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट और डॉक्टर की राय लेकर बीमा कंपनी को पुनः लिखित अपील करें. इसके बाद उपभोक्ता फोरम में अपील करें.
बोकारो से गणेश सिंह का सवाल : 1982 में 3.5 बीघा जमीन के एवज में सेंट्रल बैंक से 25 हजार रुपये का ऋण लिया था, जो चुका दिया है. इसके बावजूद बैंक जमीन के कागजात नहीं लौटा रहा. उपभोक्ता फोरम में शिकायत की, पर कोई राहत नहीं मिली.
अधिवक्ता की सलाह : ऋण चुकाने पर बैंक मूल दस्तावेज लौटाने को बाध्य है. आपके पास अभी तीन विकल्प हैं. आप उपभोक्ता फोरम में फिर शिकायत करें. देरी के लिए बैंक से मुआवजे का भी दावा करें. आप साथ ही सिविल कोर्ट में “रिकवरी ऑफ डॉक्यूमेंट्स” का मुकदमा दायर कर सकते हैं. साथ ही आरबीआइ के बैकिंग लोकपाल के पास स्पोर्टिंग कागजात के साथ शिकायत कर सकते हैं.
पत्नी को मेरे रिश्तेदार ही बरगला रहे हैं, क्या करें?
बाघमारा से साधु शरण केसरी का सवाल : मेरी पत्नी मुझसे अलग रहती है. उसे मेरे ही रिश्तेदार बरगला रहे हैं. इसका साक्ष्य भी है. क्या, मैं उस रिश्तेदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता हूं?
अधिवक्ता की सलाह : हां, आप कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं, यदि यह साबित हो कि रिश्तेदार ने आपकी वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप किया, धोखा दिया या पत्नी को भड़काकर आपके साथ संबंध तुड़वाने की कोशिश कर रहा है. आप इसके आधार पर न्यायालय में पुनर्मिलन या विवाह विच्छेद का मामला दायर कर सकते हैं.
बोकारो से सुबोध महतो का सवाल : मेरी पत्नी मुझसे अलग रह रही है. उसके भरण-पोषण के लिए बोकारो कोर्ट में केस किया था, जिसमें वह हाजिर हुई. लौटकर उसने अपने शहर में मेरे खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपनी सुरक्षा को खतरे का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया. फिर भी मैं उसे साथ रखना चाहता हूं.
अधिवक्ता की सलाह : सबसे पहले आप सुनिश्चित करें कि आप उस कोर्ट में भी हर तारीख पर हाजिर हों, जहां पत्नी ने केस कर रखा है. इसके साथ वहां की कोर्ट में अंडरटेकिंग देकर न्यायालय को यह आश्वस्त करें कि आपके साथ रहने पर आपकी पत्नी को कोई खतरा नहीं है. इसके साथ ही दांपत्य अधिकार पुनर्स्थापन का आवेदन देकर अदालत से आदेश मांग सकते हैं कि पत्नी को साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाये.
भूली से गुड्डू कुमार सवाल : पिताजी ने घर से निकाल दिया है. परिवार की पुश्तैनी संपत्ति है. क्या मैं अभी अपने हिस्से का दावा कर सकता हूं?
अधिवक्ता की सलाह : हां, आप पुश्तैनी संपत्ति में अपना वैधानिक हिस्सा मांग सकते हैं. इसके लिए आपको सिविल कोर्ट में बंटवारे के लिए सूट फाइल करना होगा.
बाघमारा से महेन्द्र कुमार का सवाल : हमारे परिवार ने 70 साल से किराये की दुकान में व्यवसाय किया है. किराया समय पर दिया है और रजिस्टर पर उसकी रिसिविंग हैं. अब मकान मालिक दुकान खाली करने को कह रहा है.
अधिवक्ता की सलाह : बिना उचित कारण या न्यायालय के आदेश के मकान मालिक आपको दुकान खाली कराने का अधिकार नहीं रखता है. आप कानूनी नोटिस देकर किरायेदारी संरक्षण का दावा कर सकते हैं. इसके साथ ही आपके पास कब्जे का लंबा इतिहास है, तो आप स्थायी किरायेदारी या नवीनीकरण का दावा कर सकते हैं, सिविल कोर्ट में यह मामला दायर कर सकते हैं.
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प्रदीप सिंह ने किया ये सवाल
बोकारो से प्रदीप सिंह का सवाल : मेरे परिवार को 80 साल पहले हुकुमनामे से एक बड़ा प्लॉट मिला था, रसीद भी परिवार के नाम पर कट रही है. अब एक दलित दावेदार सामने आया है, जबकि उसके परिवार ने इस्तीफानामा देकर जमीन छोड़ दी थी.
अधिवक्ता की सलाह : आपके पास वैध दस्तावेजों (हुकुमनामा, रसीद और इस्तीफानामा) आदि के साथ सिविल कोर्ट में टाइटल सूट दायर करें. उस दावेदार को नोटिस देकर बताएं कि जमीन आपके परिवार के नाम है और उसका दावा असत्य है. आवश्यक हो तो सिविल कोर्ट में वाद (सिविल सूट) दायर कर भूमि पर अधिकार का दावा करें.
बलियापुर से मनोज राय का सवाल : मैंने अपनी पत्नी के नाम पर जमीन खरीदी थी. पत्नी के निधन के बाद पता चला कि किसी और ने उस जमीन पर दावा कर सिविल कोर्ट में केस किया और फैसला उसके पक्ष में आया. क्या इस मामले में मेरी गिरफ्तारी हो सकती है?
अधिवक्ता की सलाह : सिविल कोर्ट संपत्ति का मालिकाना तय करता है, दंडात्मक कार्रवाई तभी होती है, जब धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज या आपराधिक कृत्य सिद्ध हो. इस मामले में पहले यह पता करें कि किस आधार पक केस हारे हैं. फिर सारे दस्तावेज के साथ बेहतर वकील की मदद से यदि फैसला के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील या पुनरीक्षण दायर करें.

