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नीरज सिंह हत्याकांड, संजीव, कुलघात कईले बाड़े…समाज माफ ना करी : बच्चा
21 मार्च, 2017 की शाम नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या के बाद धनबाद सेंट्रल हॉस्पिटल पहुंची नीरज सिंह की मां सरोजनी देवी व मौसी पुष्पा सिंह ने चीख-चीख कर झरिया विधायक संजीव सिंह पर हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप लगाया. नीरज सिंह के दोनों छोटे भाइयों अभिषेक सिंह (गुड्डू) व डिप्टी मेयर […]
21 मार्च, 2017 की शाम नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या के बाद धनबाद सेंट्रल हॉस्पिटल पहुंची नीरज सिंह की मां सरोजनी देवी व मौसी पुष्पा सिंह ने चीख-चीख कर झरिया विधायक संजीव सिंह पर हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप लगाया. नीरज सिंह के दोनों छोटे भाइयों अभिषेक सिंह (गुड्डू) व डिप्टी मेयर एकलव्य सिंह (छोटे सिंह) ने भी एक स्वर में संजीव सिंह को हत्यारा ठहराया. अभिषेक सिंह की ओर से दर्ज प्राथमिकी में भी संजीव सिंह को नामजद आरोपी बनाया गया. बावजूद इसके आम जनता यह मानने को तैयार नहीं थी कि ऐसी घटना को संजीव सिंह अंजाम दे सकते हैं. पहला कारण यह कि संजीव सिंह अब तक हत्या तो दूर मारपीट की राजनीति से भी गंभीर रूप से परहेज करते रहे हैं. दूसरा कारण संजय सिंह की हत्या के बाद से संजीव सिंह और नीरज सिंह के परिवार के बीच बनी खाई साल-दर-साल गहरी होती गयी थी. बीते एक-डेढ़ दशक के दौरान नीरज सिंह के रघुकुल परिवार और संजीव सिंह के सिंह मैंशन परिवार के बीच राजनीतिक और व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता भी चरम पर रही है. ऐसे में पहली नजर में सरोजनी देवी, पुष्पा सिंह, अभिषेक सिंह, एकलव्य सिंह के आरोप को गुस्से में और भावना में बहकर लगाया गया आरोप माना गया. लेकिन जब पूर्व मंत्री बच्चा सिंह ने संजीव सिंह पर हत्या का आरोप लगाया, तो लोग सोचने को मजबूर हुए. कारण श्री सिंह के लिए जैसे नीरज सिंह भतीजा हैं, वैसे ही संजीव सिंह भी. श्री सिंह लगातार अपने स्टैंड पर कायम रहे हैं. हत्या के पीछे संजीव के नहीं होने और किसी तीसरी शक्ति का हाथ होने की बात से लगातार कड़ाई से इनकार करनेवाले श्री सिंह ने मंगलवार को संजीव सिंह के सरेंडर करने के बाद प्रभात खबर से बातचीत की.
धनबाद. “संजीव, कुलघात कईले बाड़े…कुलघात से बड़का पाप औरी कुछू ना हो सकेला…समाज कहियो संजीव के माफ ना करी…संजीव के मन में बहुत पहिले से पाप घर कर गईल रहे. ऊ पिछला छौ महीना से ई हत्या करावे के प्लानिंग में रहले…आ खाली संजीवे ना, उनकर परिवार के औरी लोग भी येईमे शामिल बा…” कंपकंपाती रूंधी आवाज में यह कहना है पूर्व मंत्री बच्चा सिंह का.
कुंती, किरण को थी जानकारी
श्री सिंह ने कहा कि “नीरज के हत्या की साजिश विधायक संजीव सिंह ने रची थी. लेकिन, इस घटना की पूरी जानकारी संजीव की मां व झरिया की पूर्व विधायक कुंती देवी को थी. साथ ही संजीव की बड़ी बहन किरण सिंह एवं छोटे भाई मनीष सिंह उर्फ सिद्धार्थ गौतम भी इस साजिश में शामिल थे. पुलिस को इन लोगों की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए. कुंती देवी भी नीरज को नापसंद करती थी, घृणा करती थी. लेकिन वेलोग इस हद तक गिर जायेंगे, ये कभी सोचा नहीं था. नीरज, कुंती देवी का भतीजा था और भतीजा पुत्र समान होता है. कुंती देवी को एक बार सोचना चाहिए था कि उनका बेटा कितना गंदा काम करने जा रहा है.”
प्रतिशोध में हत्या की बात गलत
श्री सिंह ने कहा कि “पुलिस अगर कह रही है कि रंजय सिंह की हत्या के प्रतिशोध में नीरज सिंह की हत्या हुई है तो यह गलत है. नीरज की हत्या के लिए छह माह से योजना बन रही थी. संजीव का दिल-दिमाग गंदा हो चुका है. एक भी संजीव ने नहीं सोचा कि वह जो करने जा रहा है, वह कितना गलत है. रंजय की हत्या तो बहुत बाद में हुई. नीरज सिंह को भनक नहीं थी कि संजीव सिंह इस तरह की योजना बना रहा है. लेकिन, कई लोग इस तरह की चर्चा कर रहे थे. नीरज को मैंने कई बार सतर्क रहने को कहा था. मैंने कहा था कि शहर में बाहर से शूटरों के आने की बात है, वह सतर्क रहे. मैंने कई बार नीरज को सुरक्षा पुख्ता करने को कहा था. नीरज को दो-तीन गाड़ी लेकर चलने को कहा था. लेकिन, नीरज ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया. हमेशा कहता था कि मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है जो मेरी हत्या होगी? और बात भी सही थी. नीरज ने कभी हत्या की राजनीति नहीं की. नीरज ने हमेशा साफ-सुथरा काम किया. इस कारण नीरज समझ नहीं पाया कि परिवार में भी इतने गंदे लोग हो सकते हैं.”
रामधीर का खून गंदा नहीं
हत्या के पीछे जेल में बंद रामधीर सिंह का हाथ होने के सवाल पर श्री सिंह दो टूक कहते हैं-“रामधीर सिंह इतना गंदा काम कभी नहीं कर सकता है. रामधीर का खून गंदा नहीं है. यह ठीक है कि रामधीर, संजीव सिंह के साथ है, लेकिन रामधीर को तो इसकी भनक तक नहीं हुई होगी. रामधीर ने हमेशा परिवार को एकजुट रखने की सोची है. पुलिस बेवजह इस मामले में रामधीर या उनके बेटे शशि का नाम उछाल रही है. जबकि इसमें केवल एक ही शख्स का हाथ है और वह संजीव सिंह.”
सूर्यदेव बाबू के बाद सिंह मैंशन के मुखिया बने, छोड़ दी झरिया की जीती हुई सीट
वर्ष 1991 में सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद सिंह मैंशन के मुखिया बने बच्चा सिंह ने परिवार व राजनीति की बागडोर संभाली. श्री सिंह बड़े भाई सूर्यदेव सिंह की ओर से स्थापित जनता मजदूर संघ के महामंत्री बनाये गये. श्री सिंह ने सिंह मैंशन परिवार की ओर से झरिया विधान सभा क्षेत्र से तीन बार चुनाव लड़ा. वर्ष 2000 के चुनाव में श्री सिंह पहली बार चुनाव जीते. अलग झारखंड राज्य बनने के बाद मंत्री भी बने. इस दौरान सूर्यदेव सिंह के बड़े पुत्र राजीव रंजन सिंह भी सामने आये. रंजन ने कोयलांचल के युवाओं एवं मजदूरों को संगठित कर सिंह मैंशन परिवार का दबदबा बनाये रखने का प्रयास किया. राजीव रंजन के बाद उनके परिवार ने बच्चा सिंह को जनता मजदूर संघ से निकाल दिया. श्री सिंह ने अपने समर्थकों के साथ जनता मजदूर संघ नाम से ही एक अलग गुट बनाया. वर्तमान में इस गुट की कमान नीरज सिंह के हाथ में थी. वर्ष 2005 के चुनाव में जब बड़े भाई सूर्यदेव बाबू के परिवार ने झरिया सीट पर अपनी दावेदारी पेश की, तब श्री सिंह ने बिना किसी तरह का विवाद किये सीट छोड़ दी. श्री सिंह राजद की टिकट से बोकारो से चुनाव लड़े. झरिया की जीती हुई सीट छोड़कर श्री सिंह बोकारो गये, ताकि पारिवार का विवाद और उग्र नहीं हो, मगर ऐसा हो न सका. श्री सिंह के झरिया सीट छोड़ने के बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में कुंती देवी विधायक बनीं.
बच्चा सिंह की नजर में हत्या की
तीन वजहें
पूर्व मंत्री एवं दिवंगत डिप्टी मेयर नीरज सिंह के चाचा बच्चा सिंह की नजर में इस हत्याकांड की तीन बड़ी वजह.
नीरज का राजनीतिक कद बढ़ना
बच्चा सिंह कहते हैं-नीरज सिंह एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में उभर रहे थे. मजदूरों खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के बीच काफी लोकप्रिय हुए थे. आउटसोर्सिंग के मजदूरों की मजदूरी बढ़वाने में उनकी मुख्य भूमिका थी. इसके चलते झरिया विधायक संजीव सिंह उनसे (नीरज सिंह से) जलते थे. नीरज ने कभी आउटसोर्सिंग कंपनियों की दलाली नहीं की, जबकि संजीव सिंह ने हमेशा आउटसोर्सिंग कंपनियों के पक्ष में काम किया. इससे मजदूरों का संजीव सिंह पर से विश्वास उठ चुका था. पिछले विधानसभा चुनाव में झरिया से लड़ चुके नीरज इस बार निश्चित रूप से झरिया से चुनाव जीत जाते. इसलिए संजीव सिंह ने नीरज की हत्या की साजिश रची.
संपत्ति को लेकर संजीव से था विवाद
बच्चा सिंह कहते हैं-संपत्ति बंटवारा के लिए नीरज सिंह एवं संजीव सिंह के परिवार में विवाद चल रहा था. कोर्ट से फैसला आने वाला था. नीरज हमेशा कानून का सम्मान करते थे. वह कोर्ट के आदेश पर ही अपना हक लेना चाहते थे. धनबाद में कुंती निवास व सिंह मैंशन में हिस्सा को ले कर विवाद गहरा था. बलिया (यूपी) में भी संपत्ति बंटवारा का विवाद चल रहा था. बलिया में खेती लायक 25 फीसदी भूमि का ही बंटवारा हो पाया था. बलिया में नीरज के पिता स्व. राज नारायण सिंह को नि:संतान बता कर बलिया में जमीन व अन्य संपत्ति अपने नाम करवा लिया था. जिसे बाद में नीरज सिंह ने कोर्ट में केस कर वापस लिया था. संजीव की नजर पूरी संपत्ति पर है. वह अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता है.
रघुकुल को खत्म करने की साजिश
बच्चा सिंह कहते हैं-संजीव सिंह तथा उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने काफी सोच-समझ कर नीरज की हत्या की योजना बनायी. वे रघुकुल (नीरज के परिवार) को तहस-नहस करना चाहते थे. राजनीति में नीरज ही उनके (बच्चा सिंह का) राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में उभर रहा था. वे लोग इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहे थे. उन्हें लगता था कि नीरज की हत्या के बाद कोई विरोधी नहीं रह जायेगा. इसलिए इसे साफ करवा दो.
27 मई, 1996 से 21 मार्च, 2017
21 साल, 03 हत्याएं और बिखरता गया सिंह मैंशन परिवार
संजय सिंह…राजीव रंजन…नीरज सिंह
27 मई, 1996 : धनबाद की एसपी कोठी के सामने दिनदहाड़े कोयला व्यवसायी संजय सिंह की हत्या हो गयी. संजय सिंह, सिंह मैंशन परिवार के संस्थापक सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई राजन सिंह के साढ़ू थे. इस हत्याकांड में कोयला व्यवसायी सुरेश सिंह और पप्पू सिंह को अभियुक्त बनाया गया. कारण हत्या के समय संजय सिंह के साथ सुरेश सिंह और पप्पू सिंह भी उसी गाड़ी में मौजूद थे. अंधाधुंध गोली चलने पर संजय ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया, जबकि गाड़ी में बैठे सुरेश सिंह और पप्पू सिंह को खरोंच तक नहीं आयी. लिहाजा पुलिस ने सुरेश सिंह और पप्पू सिंह को ही हत्याकांड का अभियुक्त बनाया. सुरेश सिंह लगातार संजय सिंह हत्याकांड में अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इनकार करते रहे, मगर उन्हें जेल जाना पड़ा. बाद में जब सीआइडी ने संजय हत्याकांड में विधायकजी सूर्यदेव बाबू के परिजनों को अभियुक्त बनाया, तब पूरा कोयलांचल भौंचक रह गया. संजय सिंह हत्याकांड में विधायकजी सूर्यदेव बाबू के बड़े बेटे राजीव रंजन व भाई रामधीर सिंह का नाम आने के साथ ही “सिंह मैंशन” परिवार में पहली दरार पड़ी. राजन सिंह की पत्नी व नीरज सिंह की मां सरोजनी देवी को गहरा सदमा लगा कि उनकी छोटी बहन को उनके ससुराल पक्ष के लोगों ने विधवा बना दिया.
3 अक्तूबर, 2003 : बनारस से धनबाद लौटे कोयला व्यवसायी व उत्तर प्रदेश के कुख्यात डॉन ब्रजेश सिंह के रिश्तेदार प्रमोद सिंह की हत्या हो गयी. प्रमोद के कथित मृत्युपूर्व बयान के आधार पर सिंह मैंशन परिवार के रामधीर सिंह और राजीव रंजन को गोली दागने वाले शख्सों के रूप में आरोपित किया गया था. तब बच्चा सिंह झारखंड सरकार में मंत्री थे. हत्याकांड में नाम आने के बाद राजीव रंजन सिंह भागकर कोलकाता चले गये. कोलकाता में डॉन ब्रजेश सिंह के एक अन्य रिश्तेदार कृष्णा सिंह ने राजीव रंजन सिंह की हत्या करा दी. राजीव रंजन के “सिंह मैंशन” परिवार में दूसरा बिखराव हुआ. सूर्यदेव सिंह के पुत्र सिद्धार्थ गौतम ने सामने आकर जनता मजदूर संघ से अपने चाचा बच्चा सिंह को हटा दिया. सूर्यदेव बाबू की ओर से स्थापित मजदूर यूनियन दो भागों में बंट गया. यही नहीं झरिया विधानसभा से बच्चा सिंह विधायक थे. इस सीट पर भी सूर्यदेव बाबू के परिवार ने अपनी दावेदारी कर दी. बच्चा बाबू ने झरिया विधानसभा सीट से भी खुद को अलग कर लिया. सिंह मैंशन परिवार के करीबियों की माने, तो राजीव रंजन जिंदा रहते, तो यह हालात नहीं पैदा होते. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में अपने चाचा बच्चा सिंह को जीताने में राजीव रंजन की सक्रिय भूमिका रही थी.
21 मार्च, 2017 : नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या कर दी गयी. सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई राजन सिंह के पुत्र नीरज सिंह का कोयलांचल की राजनीति में तेजी से उभार हुआ था. राजन सिंह के परिवार ने “सिंह मैंशन” से अलग घराना ‘रघुकुल’ बनाया थी, जिसे कोयलांचल की राजनीति में नीरज सिंह काफी लोकप्रिय बनाया था. पिछले विधानसभा चुनाव में नीरज सिंह ने झरिया से संजीव सिंह के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था. नीरज सिंह अपने व्यवहार व व्यक्तित्व से रघुकुल को सिंह मैंशन के समानांतर खड़ा करने में कामयाब हुए थे. नीरज सिंह की हत्या और इस कांड में संजीव सिंह के आरोपी होने के बाद “सिंह मैंशन” के रूप में सूर्यदेव सिंह ने जिस संयुक्त परिवार का सपना संजोया था, वह पूरी तरह बिखर चुका है.
करीब 21 साल के इस काल खंड में हुई हत्या की तीन घटनाओं ने धनबाद कोयलांचल पर 40 वर्षों से अधिक समय तक राज करनेवाले सबसे ताकतवर राजनीतिक घराने “सिंह मैंशन” परिवार के साम्राज्य को तार-तार कर दिया, जिसकी स्थापना अपने दौर के कद्दावर व बाहुबली मजदूर नेता सूर्यदेव सिंह ने की थी. आज सिंह मैंशन परिवार का इतिहास ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां एक ओर स्वर्गीय सिंह के भतीजा नीरज सिंह की हत्या हुई है और हत्या के मामले में उनके पुत्र व झरिया विधायक संजीव सिंह आरोपी बनाये गये हैं.
70 के दशक में पड़ी थी नींव : उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के गोन्हिया छपरा गांव के एक साधारण किसान चंडी प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र सूर्यदेव सिंह रोजी-रोजगार की तलाश में धनबाद आये. तब धनबाद में निजी खान मालिकों की ओर से कोयला खनन किया जाता था. धनबाद में साधारण कोयला मजदूर के तौर पर करियर शुरू करनेवाले सूर्यदेव सिंह बाद में कोयला मजदूरों की ट्रेड यूनियन राजनीति में सक्रिय हुए. सूर्यदेव सिंह बीती सदी के 70 के दशक में कोयलांचल के सबसे बड़े पावर सेंटर मानेजाने वाले कांग्रेस से जुड़े कद्दावर व बाहुबली मजदूर नेता वीपी सिंह के करीबी हुए. 1971-1973 में कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद ट्रेड यूनियन राजनीति में सूर्यदेव सिंह की ताकत बढ़ी. बाद के वर्षों में वीपी सिन्हा और सूर्यदेव सिंह के रास्ते अलग हो गये. इधर, इंदिरा गांधी विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी की टिकट पर सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा से चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने. इसके बाद 29 मार्च, 1978 को वीपी सिन्हा की हत्या कर दी गयी. इस हत्या में सूर्यदेव सिंह का नाम आया था. विधायक बनने और वीपी सिन्हा की हत्या के बाद सूर्यदेव सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसी दौरान सूर्यदेव सिंह ने सिंह मैंशन परिवार की नींव रखी. हालात यह हो गये कि धनबाद कोयलांचल में सूर्यदेव बाबू की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था. सूर्यदेव सिंह के जीवनकाल में सिंह मैंशन से ही धनबाद की राजनीति और कोयला कारोबार की नीति तय होती थी. बाद के वर्षों में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी होने के बाद सूर्यदेव सिंह तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश की राजपूत राजनीति की धुरी भी बन गये. मजदूरों व आम लोगों के बीच जोरदार उपस्थिति व जनसंपर्क के कारण सूर्यदेव सिंह न सिर्फ “विधायकजी” नाम से लोकप्रिय हुए, बल्कि झरिया से उन्हें हराना केंद्र व अविभाजित बिहार में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए असंभव हो गया. वर्ष 1991 में दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत के पूर्व सूर्यदेव सिंह लगातार चार बार 1777, 1980, 1985, 1990 में झरिया से विधायक बने.
टूटता गया सिंह मैंशन परिवार : सूर्यदेव बाबू की ओर से स्थापित “सिंह मैंशन” की पहचान न सिर्फ मजबूत राजनीतिक घराना की बनी, बल्कि संयुक्त परिवार की भी बेजोड़ मिसाल बना था “सिंह मैंशन” परिवार. सूर्यदेव सिंह ने अपने जीवन काल में चारों भाइयों विक्रमा सिंह, बच्चा सिंह, राजन सिंह व रामधीर सिंह के परिवार को एक सूत्र में बांधे रखा. धनबाद से बलिया तक संपत्ति से लेकर चूल्हा तक सांझा रहा. एक भाई विक्रम सिंह बलिया स्थित पैतृक गांव में रहते थे, जबकि सूर्यदेव सिंह, राजन सिंह, बच्चा सिंह और रामधीर सिंह के परिवार एक साथ “सिंह मैंशन” में रहते थे. लेकिन “सिंह मैंशन” के रूप में सूर्यदेव सिंह ने जिस संयुक्त परिवार का सपना संजोया था, वह बीते डेढ़ दशक के दौरान पूरी तरह बिखरता गया.
पछिमहा समाज का राजनीतिक केंद्र कौन?
बीती सदी के 70 के दशक में कोयलांचल की राजनीति में जब सूर्यदेव सिंह काबिज हुए, वह दौर झारखंड आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में बाहरी-भीतरी की राजनीति का भी दौर रहा. झरिया समेत पूरे धनबाद कोयलांचल और पड़ोस के बोकारो, गिरिडीह से लेकर हजारीबाग तक बाहरी-भीतरी की राजनीति को लेकर उग्र माहौल था. लोटा-सोंटा-झोंटा मार भगाओ जैसे नारे का दौर था. उस दौर में गैर झारखंडी लोगों के लिए सूर्यदेव सिंह ‘गॉड फादर’ बन कर उभरे. सूर्यदेव सिंह को बिहार व यूपी के अलावा पंजाबी, मारवाड़ी, गुजराती समाज के लोगों का भी भरपूर समर्थन मिला. बाद के वर्षों में धनबाद, बोकारो व गिरिडीह जिलों में “पछिमहा समाज” की एकमात्र बड़ी ताकत के रूप में सिंह मैंशन परिवार स्थापित हो गया. सूर्यदेव बाबू ने नाम पर “पछिमहा समाज” के लोग मरने-मारने को तैयार रहते थे. झरिया विधानसभा क्षेत्र में तो बीते चार दशक से सूर्यदेव बाबू के नाम का ही सिक्का चलता रहा. सूर्यदेव बाबू के बाद उनके द्वारा तैयार जनाधार के बूते ही उनके भाई बच्चा सिंह, उनकी पत्नी कुंती देवी या फिर उनके पुत्र संजीव सिंह विधायक बनते रहे. इसमें एक बड़ा बदलाव तब आया, जब कोयलांचल की राजनीति में नीरज सिंह सक्रिय हुए. बेशक नीरज सिंह के साथ भी सूर्यदेव बाबू का नाम जुड़ा, लेकिन नीरज सिंह ने अपने व्यक्तित्व, अपने व्यवहार, अपनी सक्रियता से अपना अलग से भी मजबूत जनधार तैयार किया. इसका प्रमाण है वर्ष 2010 का नगर निगम चुनाव, जिसमें सिंह मैंशन से मेयर पद के लिए खड़ी इंदू देवी से कहीं अधिक मत लाकर नीरज सिंह डिप्टी मेयर चुने गये. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कोयलांचल की राजनीति में सिंह मैंशन के अलावा नीरज सिंह के नेतृत्व में रघुकुल भी बिहार व यूपी के “पछिमहा समाज” के लिए राजनीतिक केंद्र बना. सिंह मैंशन हो या रघुकुल, दोनों का जनाधार एक रहा है. नीरज सिंह की हत्या और संजीव सिंह के आरोपी होने के बाद अब “पछिमहा समाज” का राजनीतिक केंद्र कौन होगा, यह बड़ा सवाल खड़ा है.
खून के रिश्ते में खूनी जंग से पसोपेश में कई लोग
धनबाद. “भतरो मीठ, पुतवों मीठ, केकर क्रिया खाईं.” जी हां, सिंह मैंशन और रघुकुल के समर्थकों में कई चेहरे ऐसे भी हैं, जो दोनों तरफ अपना संबंध बैलेंस किये रहे हैं. धनबाद कोयलांचल में रह रहे बलिया स्थित पैतृक गांव गोन्हिया छपरा के लोगों समेत अन्य कई समर्थक ऐसे रहे हैं, जो दोनों परिवारों के साथ अपना मधुर संबंध बनाये रखने को अपनी चतुराई समझते रहे हैं. इस जमात के लोगों का प्रसिद्ध जुमला है-“दायां हाथ कटो या बायां हाथ कटो, दुख त बराबरे बा.” ऐसे लोगों के सामने बड़ी परेशानी पैदा हो गयी है, क्योंकि दोनों परिवारों के बीच चल रही तकरार पर अब खून के छींटे पड़ चुके हैं. सिंह मैंशन और रघुकुल के खून के रिश्ते में खूनी जंग के बाद संबंधियों-रिश्तेदारों के सामने भी यह परेशानी खड़ी दिख रही है कि किधर से संबंध निभायें? दोनों परिवारों के कई संबंधी व रिश्तेदार तो एक ही हैं. इस मामले का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि दोनों तरफ कई ऐसे लोग जुड़े हैं, जो मौकापरस्त हैं. यह जमात “वेट एंड वॉच” की स्थिति में है. जिसका पलड़ा भारी दिखेगा, जिससे फायदा होता दिखेगा, उसी के साथ हो लेंगे.
सूर्यदेव सिंह का कुनबा
चंडी प्रसाद सिंह (पिता)
1. सूर्यदेव सिंह
2. विक्रमा प्रसाद सिंह
3. बच्चा सिंह
4. राजनारायण सिंह
5. रामधीर सिंह
सूर्यदेव सिंह : पांच संतान
1. किरण सिंह : पुत्री
2. राजीव रंजन सिंह : पुत्र
3. संजीव सिंह : पुत्र
4. मनीष सिंह : पुत्र
5. ज्योति सिंह : पुत्री
विक्रमा सिंह : 12 संतान
1. मीरा सिंह : पुत्री
2. धर्मशीला : पुत्री
3. पुष्पा : पुत्री
4. विमल : पुत्री
5. मंजू : पुत्री
6. सत्येंद्र सिंह : पुत्र.
7. माधुरी : पुत्री
8. नूतन : पुत्री
9. राकेश सिंह : पुत्र
10. बलवंत : पुत्र
11. यशवंत : पुत्र
12. रवि : पुत्र
बच्चा सिंह : संतान नहीं
राजन सिंह : चार संतान
1. नीरज सिंह : पुत्र
2. अभिषेक सिंह उर्फ गुड्डू : पुत्र
3. मुकेश सिंह : पुत्र
4. एकलव्य सिंह उर्फ छोटे : पुत्र
रामधीर सिंह : चार संतान
1. शशि सिंह : पुत्र
2. संध्या : पुत्री
3. छाया : पुत्री
4. श्वेत शिखा : पुत्री
धनबाद से बलिया तक सिंह मैंशन परिवार का रसूख
सूर्यदेव सिंह : 1977, 1980, 1985,1990 लगातार चार बार झरिया के विधायक बने.
विक्रमा प्रसाद सिंह (भाई) : एक बार देउबा (बलिया) से विधायक.
बच्चा सिंह (भाई) : वर्ष 2000 में झरिया से विधायक बने. अलग झारखंड राज्य की पहली सरकार में मंत्री बने.
रामधीर सिंह (भाई) : बलिया जिला परिषद के एक बार अध्यक्ष रहे.
कुंती देवी (सूर्यदेव सिंह की पत्नी) : वर्ष 2005 व 2009 में लगातार दो बार झरिया की विधायक रहीं.
संजीव सिंह (पुत्र) : वर्ष 2014 में झरिया के विधायक बने.
इंदु देवी (भाई रामधीर सिंह की पत्नी) : वर्ष 2010 में धनबाद नगर निगम की पहली मेयर चुनी गयीं.
नीरज सिंह (भतीजा) : वर्ष 2010 में धनबाद नगर निगम के पहले डिप्टी मेयर बने.
एकलव्य सिंह (भतीजा) : वर्ष 2015 में धनबाद नगर निगम के डिप्टी मेयर बने.
राकेश सिंह (भतीजा) : बलिया में प्रखंड प्रमुख रहे.
सत्येंद्र सिंह (भतीजा) : बलिया में अभी गांव के प्रधान.
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