यह सब अंतत: पर्यावरण का संरक्षक है. ऊर्जा के अक्षय स्रोत सूर्य की उपासना, अप्रसंस्कृत वस्तुओं का भोग प्रकारांतर से पर्यावरण का संरक्षित करता है. छठ पूजा में स्वच्छता का खास ख्याल रखा जाता है. मिट्टी का चूल्हा और आम की सूखी लकड़ियों का उपयोग किया जाता है. बहते जल में अर्घ्य देने का मतलब ही यही है कि नदियों को साफ रखा जाये ताकि जलीय जीव का अस्तित्व कायम रहे और कम होती जैव-विविधता बनी रहे. गुड़, गन्ना, सिंघाड़ा, नारियल, केला, नींबू, हल्दी, अदरक, सेब आदि का इस्तेमाल, लुप्त होती वनस्पति को बचाने में मदद करती है.
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पर्व में पर्यावरण की परवाह
देवघर: देवघर की पवित्र भूमि हर साल करोड़ों लोगों की आस्था को तिरोहित करती है. यहां हर सुबह त्योहार लेकर आती है और बिना अनुष्ठान के कोई शाम नहीं गुजरती. लेकिन, हाल के वर्षों में शहराती संस्कृति ने परंपराओं में हस्तक्षेप किया है. पर्व से ही नहीं दैनिक जीवन से भी देसी सामान की उपयोगिता […]
देवघर: देवघर की पवित्र भूमि हर साल करोड़ों लोगों की आस्था को तिरोहित करती है. यहां हर सुबह त्योहार लेकर आती है और बिना अनुष्ठान के कोई शाम नहीं गुजरती. लेकिन, हाल के वर्षों में शहराती संस्कृति ने परंपराओं में हस्तक्षेप किया है. पर्व से ही नहीं दैनिक जीवन से भी देसी सामान की उपयोगिता व देशज परंपराएं गायब हुई हैं. लेकिन यह सुखद संतोष की बात है कि छठ महापर्व में रेडीमेड संस्कृति की घुसपैठ नहीं हुई है. यह बात लोक आस्था के इस महापर्व की प्रासंगिकता को चार चांद लगाती है. आज पूरा ग्लोब पर्यावरण असंतुलन की मार से घायल है. छठ पर्व नदी-तालाब समेत जल के तमाम स्रोत के अस्तित्व को पुनर्जीवन दे जाता है, जो पर्यावरण का प्राण वायु है.
आधुनिक उपभोक्तावादी भौतिक संस्कृति के कारण पर्यावरण रक्षक नदी-तालाब-जलाशय, झील, नम भूमि आदि लगातार अतिक्रमण व उपेक्षा की भेंट चढ़ रहे हैं. देवघर भी इससे अछूता नहीं है. देवघर में डढ़वा नदी, शिवगंगा, माथाबांध समेत तमाम तालाबों की सफाई में लोगों ने जो उत्साह दिखाया वह काबिले तारीफ है. कई जगह प्रशासन को सुस्त देखकर लोगों ने सामूहिक श्रमदान से तालाबों का साफ किया. इतना नहीं बैजनाथपुर में लोगों ने श्रमदान से अर्घ्य के लिए तालाब का निर्माण कर लिया. भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण छठ मनाने के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की. इसमें बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतनों, गन्ने के रस, गुड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद का इस्तेमाल होता है.
कहते हैं पर्यावरणविद
छठ पूजा में सबसे ज्यादा महत्व शुद्ध जल का है. आज पूरा विश्व जल संकट से गुजर रहा है. नदियां प्रदूषित हो रही हैं और सूख रही हैं. तालाब गायब हो रहे हैं. छठ पूजा बताती है कि अगर जल है तो जीवन है. इसके अलावा छठ पूजा में स्वच्छता का खास ख्याल रखा जाता है जिसमें मिट्टी का चूल्हा और आम की सूखी लकडि़यों का विशेष उपयोग पूजा के लिए किया जाता है और यह सब बिगड़ते पर्यावरण को प्राण-वायु दे जाता है.
डॉ नीतीश प्रियदर्शी, प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, रांची
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