मंदिर के सेवक व डुमरथर गांव निवासी धीरजु दास कहते हैं कि चोपामोड़ से डुमरथर के बीच पहले कई बड़ी सड़क दुर्घटना होती थी. अक्सर सड़क दुर्घटना में लोगों की जान चली जाती थी. कई घर उजड़ गये थे. तभी गांव वालों ने संकट मोचन हनुमान जी की मंदिर की स्थापना का निर्णय लिया.
उसके बाद डुमरथर चौक पर हनुमानजी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई. सेवक श्री दास के अनुसार देवघर- दुमका रोड से गुजरने वाले छोटी-बड़ी वाहन इस मंदिर के पास रुककर हनुमानजी का आशीर्वाद लेते हैं व स्वेच्छा से खुदरा पैसा दान पत्र में डालते हैं. उसके बाद ही वाहन सवार निरापद यात्र के लिए निकलते हैं. मान्यता है कि हनुमानजी को प्रणाम करने के बाद मार्ग में कोई संकट नहीं आता है. दान की राशि से धर्मशाला का निर्माण व श्रद्धालुओं के लिए अन्य सुविधा दी जा रही है. इससे बासुकीनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा मिलती है, लेकिन फिर भी इस रोड पर दुर्घटनाएं हो जाती है.