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प्रवचन::::: हिंदू पूजा में बाह्य प्रतीक रखते हैं

यदि हिंदू धर्म तथा उसके कर्मकांडों का गहराई से विश्लेषण करें तो यह तथ्य सामने आयेगा कि हिंदुओं के धार्मिक विश्वास बड़े अर्थपूर्ण हैं. उनमें उच्च कोटि की श्रद्धा तथा सहिष्णुता है तथा उनके विश्वास चेतना के रूपांतरण के सशक्त उपादान हैं. यह सत्य है कि हिंदू अपनी पूजा में बाह्य प्रतीक रखते हैं, इसे […]

यदि हिंदू धर्म तथा उसके कर्मकांडों का गहराई से विश्लेषण करें तो यह तथ्य सामने आयेगा कि हिंदुओं के धार्मिक विश्वास बड़े अर्थपूर्ण हैं. उनमें उच्च कोटि की श्रद्धा तथा सहिष्णुता है तथा उनके विश्वास चेतना के रूपांतरण के सशक्त उपादान हैं. यह सत्य है कि हिंदू अपनी पूजा में बाह्य प्रतीक रखते हैं, इसे मूर्ति कह सकते हैं. इसका प्रयोजन अपने मन को जिसकी स्तुति की जाती है, उस पर केंद्रित करना है. जब हिंदुओं की बहु-देववादी प्रथा का विश्लेषण करते हैं, तब उसमें त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश प्रमुख है. ये तीनों मात्र एक ईश्वर की त्रि-आयामी अभिव्यक्ति हैं. इस तरह राम और कृष्ण दोनों विष्णु के अवतार हैं, जो सृष्टि के पोषक हैं तथा काली, दुर्गा, सरस्वती आदि अनेक शक्ति के स्वरूप हैं जो कि शिव की पत्नी व प्रेयसी हैं तथा शिव के साथ एकरूप हैं. हिंदू धर्म के महान ब्रह्मज्ञानी संत मनु के शब्दों में- ‘तीन उद्देश्यों- सृजन, पोषण तथा विनाश के लिए एक ईश्वर अलग-अलग तीन रूप धारण करता है. उसके ये तीन रूप सत्व, रज तथा तम के प्रतीक हैं.’

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