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चुनावी गप शप- कानाफूसी (कॉलम)

कानी गाय केर भिने बथान, ताके छो सरेंगदेवघर :कनकनी की रात. स्थान डंडा चौक देवघर. चौक पर देर रात तक खुली रहने वाली टी स्टॉल है. लोग टी स्टॉल के मालिक को जीजुड़ावन काका के नाम से दुलार से पुकारते हैं. देर रात तक जीजुड़ावन काका के दुकान पर जमघट लगी रहती है. दूर से […]

कानी गाय केर भिने बथान, ताके छो सरेंगदेवघर :कनकनी की रात. स्थान डंडा चौक देवघर. चौक पर देर रात तक खुली रहने वाली टी स्टॉल है. लोग टी स्टॉल के मालिक को जीजुड़ावन काका के नाम से दुलार से पुकारते हैं. देर रात तक जीजुड़ावन काका के दुकान पर जमघट लगी रहती है. दूर से अगर कोई एकाएक देख ले तो प्रतीत होता है कि युद्ध के मैदान के योद्धा डटे हैं. लंबे कुरते वालों के साथ कई टकले किस्म के नेता भी डटे हैं. चाय की चुस्की के दौरान चुनावी जीत हार का गणित बन रहा था. देह से दुबले एक नेता बके जा रहा था, अरे देघरें ते गजबे खेल होवी रहल छो. बथाने सब गाय-बरद संगे बैठीक पगुरावे हो मतुर एकटाक देखेन भिने हांक दे छो. लागे हो कानी गाय केर भिने बथान इ भोट बनी गेल छो. इसी बीच तपाक से बरदानंद बाबा बोल उठे- हमनी जमीने घोलटे छों, तेय झपटामार दादा सरेंगें मंड़रावे हो. बिनु चाहक चाकरी करेल झपटामार दादा आवी गेलो देघरें. एक छुटभैया नेता बीच में टपका..का तोरनी बिन लैस गेनक बात बकी रहल छीं. भितियोक कान होवे छे. योंदि सुनी लेतो तेय रोजगारे खत्म होवी जातो. सर..एक बार मलाई मार चाय चलेगा. जीजुड़ावन काका ने होले स्वर से पूछा. आहिस्ते आहिस्ते नेताओं का जमघट सन्नाटे में तब्दील हो जाता है.

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