मधुपुर : लोहा हमारे जीवन का एक बड़ा हिस्सा है. यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरत भी है. लेकिन जीवन के औजार को ढालने वाले लोहार आज बदहाली के कगार पर हैं. पाथरोल स्थित राउतडीह गांव में करीब 300 विश्वकर्मा परिवार लोहे से कई तरह की सामग्री बनाकर गुजर बसर करते हैं.
लेकिन, उपेक्षा के कारण ये तंगहाली भरी जिंदगी जीने को विवश हैं. सरकार से मदद नहीं मिलने के कारण अब इनका हुनर भी जवाब देने लगा है. यहां के बनाये हुए लोहे की कढ़ाई, कुदाली, छनोटा, चापर, छुरी, हंसुवा, पिंजरा, तावा आदि लौह सामग्री बिहार, बंगाल व दूसरे राज्य भेजे जाते हैं.
नहीं मिल पा रहा बाजार
कारीगर कहते हैं कि लौह सामग्री के लिए अच्छा बाजार भी नहीं मिलने से सामानों की बिक्री में परेशानी होती है. स्वयं सामान लेकर हाट में बेचना पड़ता है. जिससे मेहनत के अनुसार आमदनी नहीं होती है.
कहते हैं कारीगर
लौह सामग्री बनाने वाले कारीगर रवि शर्मा, नरेश, रीतेश शर्मा, अजय शर्मा, पांडव शर्मा, गुलझारी शर्मा, पंचु मढैया, बंकु शर्मा आदि ने बताया कि सरकार द्वारा किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिलती है. दिन-रात कड़ी मेहनत कर मुश्किल से 200-250 रूपये तक की आमदनी होती है. जिससे परिवार का भरण पोषण के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाने में काफी परेशानी होती है. लौह गृह शेड शोभा बनकर रह गया है. बताया कि इसके अलावे अन्य कोई व्यवसाय नहीं है. जिस कारण मजबूरन बच्चों को भी इस कार्य में लगा कर काम कराना पड़ता है.
बंद पड़ा है लौह शेड गृह, सुविधाएं भी नहीं
काफी साल पहले उनके लिए लौह शेड का निर्माण कराया गया था. शेड निर्माण के बाद मजदूरों में उम्मीद जगी थी कि उन्हें मशीन समेत कच्चा माल भी उपब्लध कराया जायेगा. जिससे अधिक से अधिक लौह सामग्री का निर्माण कर आय बढ़ा सकेंगे. लेकिन, लौह गृह वस्तु का निर्माण किया जा सकेगा. लेकिन लौह गृह शेड में न तो मशीन और न ही उपकरण उपलब्ध कराया गया. जिस कारण लौह गृह शेड बंद पड़ा है.