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देवघर : मूर्त्ति कला में माहिर मार्कंडेय जेजवाड़े को मिला फेलोशिप
भारत सरकार से मूर्ति कला के क्षेत्र में बेहतर काम का मिला सम्मान देवघर : भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की अोर से देवघर के जाने-माने कलाकार मार्कंडेय जेजवाड़े उर्फ पुटरू का चयन सीनियर फेलोशिप के लिए किया गया है. झारखंड राज्य के एकमात्र कलाकार पुटरूजी के अलावा देश के तीन अन्य कलाकार दिल्ली के […]
भारत सरकार से मूर्ति कला के क्षेत्र में बेहतर काम का मिला सम्मान
देवघर : भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की अोर से देवघर के जाने-माने कलाकार मार्कंडेय जेजवाड़े उर्फ पुटरू का चयन सीनियर फेलोशिप के लिए किया गया है. झारखंड राज्य के एकमात्र कलाकार पुटरूजी के अलावा देश के तीन अन्य कलाकार दिल्ली के अरुण पंडित, तेलगांना आंध्रप्रदेश की रहनेवाली अर्चना राजगुरु तथा राजस्थान के राहुल सेन के नाम भी फेलोशिप पाने वालों की सूची में शामिल है. सरकार इन कलाकारों को दो वर्षों तक प्रोत्साहित कर उनके कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए अवार्ड के तौर पर प्रत्येक माह खाते में 20 हजार रुपये के साथ-साथ कई अन्य सुविधाएं देगी. यह अवार्ड वर्ष 2017-18 के लिए कला के विभिन्न क्षेत्रों में कलाकारों को चुना गया है. झारखंड के कलाकार मार्कंडेय जेजवाड़े को सूखे कद्दू से मूर्ति बनाने की विशेषता को देखते हुए चुना गया है. फेलोशिप के लिए विभाग ने ई-मेल करने के जरिये कलाकारों को चयनित किये जाने की सूचना दी है.
देवघर . संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने देवघर के मार्केंडेय जेजवाड़े उर्फ पुटरूजी को फेलोशिप अवार्ड के लिए चयनित किया है. इस घोषणा से पुटरूजी काफी उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि विभाग की अोर से हर वर्ष वैसे कलाकारों को फेलोशिप दिया जाता है, जिनके कला में कुछ विशेषताएं होती है. सामान्यत: वे मूर्तिकला के कलाकार हैं. सूखे कद्दू के जरिये वो अपनी कला को प्रदर्शित करते हैं. ममत्व (मां की गोद में बालक), बंधन, समर्पण को दिखाने का प्रयास करते हैं.
उनकी कला को देश के साथ-साथ विदेशों से भी प्रशंसा मिलती रही है. दिल्ली का ललित कला मंडी हो या रांची का आड्रे हाउस. रांची में राष्ट्रपति ने अष्टभुजी भगवान गणेश की मूर्ति को देख काफी तारीफ की थी. दिल्ली से एक प्रशंसक ने उनकी एक कलाकृति को इंग्लैंड भी ले गये. अपनी कला को सम्मान मिलने से काफी खुशी की अनुभूति होती है. पुटरूजी ने बताया कि इस अवार्ड के लिए उन्होंने लंबे समय से मेहनत की. देवघर के अलावा उन्होंने दिल्ली के ललित कला मंडी हाउस में लगाये गये शो में दूरदर्शन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी पहुंचे अौर उन्होंने सहयोग कर डॉक्यूमेंट्री बनायी. जो भारत सहित अन्य कई देशों में प्रदर्शित की गयी.
बाबा मंदिर परिसर ही था उनका स्कूल
वो भी साधारण इंसान ही होते, अगर पिता विनायक जेजवाड़े ने हाथों में कुची नहीं पकड़ायी होती. वे एक बांसुरी वादक थे. रंग भरने के लिए उन्होंने कहीं से शिक्षा प्राप्त नहीं ली, बल्कि बाबा मंदिर परिसर ही उनका स्कूल व यूनिवर्सिटी रहा है.
कला निकेतन के बहुत से छात्र हैं स्थापित
वर्तमान में श्री जजेवाड़े कला निकेतन नामक एक संस्था चलाते हैं. जहां से दर्जनों छात्र-छात्राअों ने रंग व कुची की बारिकियां सीखी है. इनमें से चार-पांच कलाकार मुंबई, कोलकाता, दिल्ली व रामपुर आदि शहरों में स्थापित हैं. पिछले कई वर्षों तक कला निकेतन की अोर से प्रदर्शनी लगती थी, मगर दो-तीन वर्षों से यह बंद है. इस वर्ष दशहरा के बाद पुन: प्रदर्शनी आयोजित करेंगे, जिसमें भाग लेने के लिए स्थानीय व बाहर के कलाकारों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जायेगा.
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