पुलिस दिखाती सक्रियता तो बच सकती थी बच्ची की जान, सन्नाटे में बदली सिसकियां
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मां का दर्द: पढ़ना चाहती थी मेरी बेटी
पुलिस दिखाती सक्रियता तो बच सकती थी बच्ची की जान, सन्नाटे में बदली सिसकियां साते साल के छलै हमर बेटिया…, ओकरा पढ़ेक मन छलै, ओकर जिंदगिये बेकार कर फेर मारी दलकौ…यह उस मां का दर्द छलक रहा था जो अपनी मासूम बेटी की मौत के बाद सदमे में दहाड़ मार-मार कर रोते वक्त बोल रही […]
साते साल के छलै हमर बेटिया…, ओकरा पढ़ेक मन छलै, ओकर जिंदगिये बेकार कर फेर मारी दलकौ…यह उस मां का दर्द छलक रहा था जो अपनी मासूम बेटी की मौत के बाद सदमे में दहाड़ मार-मार कर रोते वक्त बोल रही थी.
सारठ : पहले तो बेटी के साथ दुष्कर्म की घटना ने झकझोर दिया और उसके बाद भी जब तक वह संभल पाती बेटी की सिसकियां सन्नाटे में बदल गयी. सामूहिक दुष्कर्म के बाद बच्ची की मौत के बाद उसकी मां का रो-रोकर बुरा हाल था. मां का आरोप था कि जब से बेटी का दुराचार करने वाले आरोपित जेल तो चले गये, लेकिन उनके परिजन लगातार केस उठाने का दबाव बना रहे थे. केस नहीं उठाने पर बेटी को जान से भी मारने की धमकी मिल रही थी. मां का कहना है कि परिवार पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाता रह गया,
लेकिन उनकी मिन्नतों को अनसुना कर दिया गया. सुरक्षा नहीं मिलने की वजह से एक महीने बाद अंत में उस मासूम की हत्या कर दी गयी. परिवार वाले जांच की मांग कर रहे थे.
पीड़ित परिवार को 13 सितंबर को भी अंतिम बार धमकी मिली थी. परिवार ने इसकी सूचना पुलिस को भी दी, लेकिन पुलिस ने सक्रियता नहीं दिखायी. अगर पुलिस जरा भी सक्रिय रहती व पीड़ित परिवार को सुरक्षा मिलती तो शायद आज वह बच्ची जिंदा होती. घटना के दिन भी पुलिस काफी देर से पहुंची. दूसरे दिन तो स्थानीय थाना से लेकर जिले भर के आला पुलिस पदाधिकारी कैंप करते दिखे.
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