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जुबान होती तो पूछती, मां! मेरा क्या कसूर

देवघर: मासूम बच्ची अपनी मां की गोद में है. अभी वह दुधमुंहा ही है. उसकी उम्र यही कोई एक साल होगी. उसे यह भी पता नहीं है कि महज एक साल की उम्र में ही वह थाना आयी है. दरअसल, उसकी मां के साथ दो और महिला को मधुपुर रेल पुलिस ने पाॅकेटमारी के आरोप […]

देवघर: मासूम बच्ची अपनी मां की गोद में है. अभी वह दुधमुंहा ही है. उसकी उम्र यही कोई एक साल होगी. उसे यह भी पता नहीं है कि महज एक साल की उम्र में ही वह थाना आयी है. दरअसल, उसकी मां के साथ दो और महिला को मधुपुर रेल पुलिस ने पाॅकेटमारी के आरोप में पकड़ा. वह कुछ बोल तो नहीं पा रही. यदि उस बच्ची को जुबान होती तो अपनी मां से जरूर पूछती कि मां! आखिर मेरा क्या कसूर है. तुमने तो पाॅकेटमारी की इसलिए जेल जा रही है, तुम्हारे साथ मैं क्यूं जा रही हूं जेल. अब मां के सामने मजबूरी भी है.
मासूम को भला किसके सहारे बाहर छोड़ कर जेल जायेगी. लेकिन यह सोच मां की जेहन में अपराध करते वक्त नहीं आया कि उसके जेल जाने के बाद उसकी मासूम बच्ची का क्या होगा. वैसे यह कोई नयी बात नहीं है. अमूमन सभी जेलों में इस तरह की महिलाएं जब किसी न किसी अपराध में पकड़ाती हैं यदि उसके छोटे बच्चे हैं, बाहर उसका कोई देखने वाला नहीं है तो मां अपने बच्चे को भी जेल साथ ले जाती है. बाहर बच्चा बिलखने नहीं लगे इसलिए न्यायालय भी मानवीय आधार पर बच्चे को मां के साथ रहने की इजाजत दे देता है.
छोटी सी उम्र में देखेगी जेल का मुंह
मासूम जिसमें अभी सोचने-समझने की क्षमता विकसित नहीं हुई है. उसके लिए घर क्या और बाहर क्या? लेकिन मासूम छोटी सी उम्र में जेल का मुंह देखेगी. जेल की आंगन में खेलेगी. साल, दो साल, तीन साल वहीं जेल में पलेगी, बढ़ेगी. जब उसे समझ आयेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. क्योंकि जेल में वह अपराध में लिप्त महिलाओं के बीच ही रहेगी. उनके कारनामे सीखेगी. जब बाहर निकलेगी तो शायद वह भी अपनी मां की तरह अपराध की दुनियां में कदम रख दे. छोटे-मोटे अपराध के बाद बड़े अपराध को अंजाम देगी और अंत में उसकी भी किसी से शादी होगी, वह भी मां बनेगी और उसके अपराध की सजा साथ में उसका बच्चा भुगतेगा. अपराध के सहारे पेट पालने वाली मां को अपना नहीं तो कम से कम अपने बच्चों का ख्याल तो अवश्य करना चाहिए. देश की आधी आबादी में सिर्फ वह ही गरीब व लाचार नहीं है. पेट पालने के लिए क्राइम ही जरूरी नहीं है.

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