बेरमो, बेरमो कोयलांचल की कोयला खदानों में मां काली की पूजा करने की परंपरा रही है. खदानों के मुहाने पर मां काली का मंदिर स्थापित किया जाता रहा है. प्राइवेट खान मालिकों के समय भी खान मालिक, मजदूर और अधिकारी मंदिर में सिर झुकाने के बाद ही खदान में प्रवेश करते थे. कई कोयला खदानों में काली पूजा के आयोजन सौ साल से भी ज्यादा समय से हो रहा है. 60-70 के दशक के बाद कई कोयला खदानों में हुए भयानक हादसों के बाद खदानों में काली पूजा करने का प्रचलन ज्यादा बढ़ा. मान्यता है कि कोयला मजदूर प्रकृति के खिलाफ काम करते हैं और खदानों में काम करने के दौरान मां काली उनकी रक्षा करती हैं.
बेरमो में सीसीएल के बीएंडके, ढोरी व कथारा एरिया की लगभग एक दर्जन भूमिगत खदानें (इंकलाइन) हुआ करती थी. बीएंडके एरिया में केएसपी फेज दो, बेरमो सीम इंकलाइन, कारो सीम इंकलाइन, करगली 70 फीट सीम इंकलाइन, खासमहल इंकलाइन, कथारा एरिया में स्वांग यूजी माइंस, जारंगडीह यूजी माइंस, गोविंदपुर फेज दो यूजी माइंस और ढोरी एरिया में ढोरी खास इंकलाइन के तहत 4, 5, 6 तथा 7, 8, 9 नंबर इंकलाइन के अलावा न्यू सलेक्टेड ढोरी (एनएसडी) आदि शामिल थीं. अब तीनों एरिया में मात्र दो इंकलाइन कथारा एरिया की गोविंदपुर यूजी माइंस तथा ढोरी एरिया की ढोरी खास इंकलाइन चल रही हैं. यहां हर साल धूमधाम से मां काली की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती थी. बकरों की बलि दी जाती थी.चर्चित थी बोकारो कोलियरी की पूजा
सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र में सौ साल से ज्यादा पुरानी बोकारो कोलियरी की माइंसों में होने वाली काली पूजा चर्चित थी. बोकारो कोलियरी की दो, तीन व पांच नंबर खदान के अलावा पावर हाउस के निकट भव्य रूप से हर साल प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती थी. करगली कोलियरी की एक नंबर व तीन नंबर खदान के अलावा 70 फीट सीम इंकलाइन व करगली सीम इंकलाइन में भी पूजा का आयोजन होता था. बाद में बेरमो सीम इंकलाइन तथा कारो सीम इंकलाइन में भी पूजा शुरू हुई. हर साल करगली इंकलाइन के मुहाने पर मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती थी. कई जगहों पर काली पूजा के दिन कई तरह की प्रदर्शनी भी लगायी जाती थी. इसमें कोयला खदान में किस तरह काम होता है, उसे दर्शाया जाता था. रात में इंकलाइन में काम करने वाले पीआर (पीस रेटेड) मजदूर बकरे की बलि दिया करते थे. करगली कोलियरी में अंग्रेज मैनेजर एमजी फेल तथा बोकारो कोलियरी में अंग्रेज मैनेजर बीडी टूली भी माइंस आकर मां काली का दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते थे. कथारा प्रक्षेत्र की जारंगडीह, स्वांग व गोविंदपुर इंकलाइन में हर साल धूमधाम से काली पूजा होती थी. अब सिर्फ गोविंदपुर इंकलाइन में काली पूजा का आयोजन होता है. यहां वर्ष 1983 से काली पूजा की जा रही है. खदान के मुहाने पर मां काली का मंदिर है. ढोरी एरिया की एसडीओसीएम व कारीपानी के अलावा तीन नंबर इंकलाइन में भी काली पूजा की जाती थी. फिलहाल ढोरी खास इंकलाइन में काली पूजा की जाती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

