वर्ष 2025 में भी बेरमो कोयला क्षेत्र में प्रस्तावित कई बंद माइंस नहीं खाेली जा सकी. कई माइंस का विस्तार भी बाधित रहा. सीसीएल ढोरी प्रक्षेत्र अंतर्गत बंद पिछरी माइंस को चालू करने के लिए प्रबंधन का हर प्रयास इस साल भी विफल रहा. प्रबंधन के अनुसार इस माइंस में 19 मिलियन टन कोयला है. मालूम हो कि विस्थापित रैयतों और प्रबंधन के बीच चल रहा विवाद इस माइंस के खुलने में बाधक बना हुआ है. रैयतों की जमीन के सत्यापन के लिए डेढ़ दर्जन से ज्यादा बार गांव में कैंप लगाया गया. पिछरी में प्रशासन द्वारा ग्राम सभा भी की गयी. जमीन सत्यापन के लिए कागजात की तलाश के लिए प्रबंधन ने पटना के गुलजारबाग तथा हजारीबाग भी अपने अधिकारी को भेजा. वर्षों से बंद ढोरी एरिया की अंगवाली माइंस भी चालू नहीं हो सकी. इस माइंस में 18 लाख टन कोयला तथा करीब 30 लाख घन मीटर टन ओबी है. प्रबंधन के अनुसार ऐसे जियोलॉजिकल रिपोर्ट के अनुसार माइंस में कुल कोल रिजर्व 15 मिलियन टन से ज्यादा है, जो 85 हेक्टेयर में है. पिछरी माइंस के तर्ज पर इसका भी माइन प्लान बनाया जा रहा है. यहां की रैयती जमीन के लिए वर्षों पहले प्रबंधन 75 नौकरी देने का दावा किया है. फिलहाल यहां की जिस जमीन पर कोयला खनन किया जाना है, उस पर विस्थापन समस्या नहीं है. इसे भी आउटसोर्स मोड में चलाने की बात प्रबंधन द्वारा कही जाती रही है.डीवीसी बेरमो माइंस से आठ साल से कोयला उत्पादन व ओबी रिमूवल का काम ठप है. एक मई 2018 को इस माइंस को सीसीएल में मर्ज करने पर अंतिम मुहर लगी थी. लेकिन छह माह के बाद तत्कालीन उर्जा मंत्री आरके सिंह ने इस माइंस को डीवीसी द्वारा चलाये जाने की बात कही. बाद में सीसीएल ने इस माइंस को चलाने के लिए उद्घाटन भी किया, लेकिन उत्पादन कार्य शुरू नहीं हुआ. अब इसे फिर से डीवीसी द्वारा चलाने की बात कही जा रही है.
हाइवाल माइनिंग से नहीं शुरू हो सका उत्पादन
सीसीएल के ढोरी एरिया की अमलो परियोजना में इस वर्ष हाइवाल माइनिंग से कोयला उत्पादन शुरू किया जाना था, लेकिन नहीं हो सका. यहां से तीन साल में 13 लाख टन कोयले का उत्पादन करना है. इस विधि से उत्पादन किये जाने वाले कोयले का साइज माइनस 100 एमएम से भी कम होगा और क्रश होकर फ्रेश कोयला निकलेगा.बरवाबेड़ा व कारो बस्ती को शिफ्ट करने में नहीं मिली सफलता
सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र अंतर्गत बरवाबेड़ा व कारो बस्ती की शिफ्टिंग भी इस वर्ष भी नहीं हो सकी. कारो बस्ती के शिफ्ट हो जाने के बाद यहां से लगभग 40 मिलियन टन कोयला मिलेगा. यहां के रैयत ग्रामीणों के लिए करगली गेट में नया आरआर साइट करीब छह करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है, लेकिन अभी तक ग्रामीणों को शिफ्ट कराने में प्रबंधन को सफलता नहीं मिली है. मेगा एकेके प्रोजेक्ट से सटे बरवाबेड़ा गांव काे भी इस वर्ष शिफ्ट नहीं कराया जा सका. शिफ्टिंग के बाद यहां के भू-गर्भ से करीब 40 मिलियन टन कोयला मिलेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

