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ऑटो में बच्चों का जोखिम भरा सफर

बोकारो : छोटा सा ऑटो में सवारी के लिए बैठने की जगह मात्र तीन. नियमानुसार चालक समेत इसमें चार लोगों को ही बैठना है. लेकिन इसमें सवारी सात आठ बैठायी जाती है. इसपर से तुर्रा यह कि जब यही ऑटो स्कूल के बच्चों को ढोता है तो, इसमें 12 से 15 बच्चों को बैठा लिया […]

बोकारो : छोटा सा ऑटो में सवारी के लिए बैठने की जगह मात्र तीन. नियमानुसार चालक समेत इसमें चार लोगों को ही बैठना है. लेकिन इसमें सवारी सात आठ बैठायी जाती है. इसपर से तुर्रा यह कि जब यही ऑटो स्कूल के बच्चों को ढोता है तो, इसमें 12 से 15 बच्चों को बैठा लिया जाता है. बच्चों की उम्र महज चार से सात साल होती है.

साथ में इनके भारी भरकम बस्ते . एक तरफ लटक रही हैं पानी की बोतल. दो बच्चे चालक के आजू -बाजू. देखकर लगता है चालक को सिर्फ सवारी भरने का लालच है. यह नजारा प्रतिदिन बोकारो की सड़कों पर सुबह व स्कूलों की छुट्टी के वक्त दिखता है. स्कूली बच्चों को ढोने वाले ऑटो यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं. ज्यादा कमाने के चक्कर में बच्चों को भेंड-बकरियों की तरह भर दिया जाता है.

धरे के धरे रह गये हैं डीसी व डीटीओ के आदेश
क्या है नियम : यातायात नियमों के अनुसार ऑटो या वैन में तय सीट से अधिक सवारी नहीं ढोई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने स्कूली बच्चों वाले ऑटो में मात्र तीन ही बच्चों को बैठाने का नियम जारी किया था. ऑटो में जाली आदि भी लगी होनी चाहिए. कुछ ऑटो में बीच में तख्ती में लगी हुई है. जिस पर बच्चों को बैठाया जाता है. लेकिन बोकारो में स्कूली बच्चों को ढोने वाले ऑटो व वैन संचालक के हौसले इसलिए बुलंद हैं, क्योंकि उन्हें सड़कों पर रोकने वाला कोई नहीं होता है.
तीन शिफ्ट की रहती है जल्दबाजी : स्कूली बच्चों को ढोने वाले ऑटो लगभग तीन शिफ्ट में चलते हैं. नर्सरी की छुट्टी लगभग 12.30 बजे हो जाती है. उसके बाद 1.30 बजे व उसके बाद तीसरा शिफ्ट लगभग 2.00 बजे होता है.
सारे जिम्मेदार मौन : पहली जिम्मेदारी यातायात पुलिस की बनती है. लेकिन यातायात पुलिस ने हाल के दिनों में एक भी स्कूली बच्चों से भरे ऑटो पर फाइन नहीं किया है. दूसरा जिम्मेदार परिवहन विभाग है, जो अभी इस मामले में अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है. पुलिस प्रशासन व शिक्षा महकमा भी इसके लिए जिम्मेदार है. लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. केवल बैठकों में इसकी बातें होती हैं.
अभिभावकों को भी करनी होगी पहल : निजी ऑटो से स्कूली बच्चे किस हाल में स्कूल आ जा रहें है. इससे स्कूल प्रबंधन को कोई लेना देना नहीं है. अभिभावक भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए है. अभिभावकों को यह डर रहता है कि कम बच्चे भरने को कहा तो कहीं ऑटो संचालक मासिक शुल्क मत बढ़ा दें. उन्हें भी अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए पहल करनी होगी.
ऑटो वालों को कुछ बोलो तो उखड़ जाता है. तुरंत जवाब देता है कि बच्चे को किसी दूसरे ऑटो से भेजिये. कोई फर्क नहीं पड़ता है. जान जोखिम में डाल कर बच्चे जाते हैं.
संतोष कुमार, सिटी सेंटर, सेक्टर चार
ऑटो वालों का तमाशा सुबह से ही शुरू हो जाता है. जब तक बच्चा सही सलामत घर वापस नहीं लौटता है. पूरा दिन तनाव बना रहता है. कुछ बोलेने पर रिएक्ट करते हैं.
लाभेश कुमार सिंह, सेक्टर चार जी
इस मामले में विभाग अभियान चलायेगा. जल्द ही सख्त कार्रवाई की जायेगी.
संतोष गर्ग, डीटीओ, बोकारो
पूर्व में ही इस संबंध में निर्देश दिया गया है. लेकिन अनुपालन सही ढंग से नहीं हो रहा है. संबंधित पदाधिकारियों को कार्रवाई का निर्देश दिया जायेगा.
राय महिमापत रे, डीसी, बोकारो

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