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उद्धारक की बाट जोह रहा विमलकृति सरोवर

वैशाली : वैशाली का ऐतिहासिक विमलकृति सरोवर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यह सरोवर महात्मा बुद्ध के शिष्य विमलकृति के जन्मस्थल वर्तमान बनिया गांव में स्थित है. बताया जाता है कि इसका पुराना नाम रुकसुइया पोखर था. स्थानीय लोगों में यह रुकसुइया पोखर के नाम से भी प्रचलित है. इस पोखर के […]

वैशाली : वैशाली का ऐतिहासिक विमलकृति सरोवर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यह सरोवर महात्मा बुद्ध के शिष्य विमलकृति के जन्मस्थल वर्तमान बनिया गांव में स्थित है. बताया जाता है कि इसका पुराना नाम रुकसुइया पोखर था. स्थानीय लोगों में यह रुकसुइया पोखर के नाम से भी प्रचलित है.

इस पोखर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह व शिक्षक पशुपतिनाथ सिंह के प्रयास से सर्वप्रथम 1960 के आसपास यहां बिहार में बौद्ध महासंघ की शुरुआत की गयी थी. श्रीलंका के श्रद्धालुओं ने भगवान बुद्ध की दो प्रतिमाए स्थापित कर बौद्ध विहार का निर्माण कराया था.
मिली जानकारी के अनुसार आज भी दस डिसमिल जमीन बौद्ध संघ बिहार के नाम पर दर्ज है, परंतु तत्कालीन विमलकृति सरोवर की चमक या पहचान अब लगभग विलुप्त सी हो गयी है. साथ ही यहां पूर्व में स्थित बौद्ध विहार का भी नामोनिशान मिट गया है.
इस स्थल पर प्रत्येक वर्ष बौद्ध महोत्सव का आयोजन किया जाता जो खासकर 1972 के बाद जिला विभाजन के उपरांत बौद्ध महोत्सव लगने की परंपरा समाप्त हो गयी. ऐतिहासिक तथ्यों को जीवंत रखने के लिए स्मृति व स्मारक व यहां बनाया गया था.
खादीग्रामोद्योग भंडार भी था. अब ये सभी लगभग विलुप्त हो चुके हैं. आज हालात यह है इस सरोवर का पानी सूख रहा है. इसमें जंगल झार उग गये है. इसके चारों ओर फैले कचरे का अंबार इसकी उपेक्षा की गवाही दे रहा है. आज इस विमलकृति सरोवर और इससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा से यह स्थल गुमनामी के अंधेरे में छिप गया है.
अपने पुराने समृद्ध इतिहास की चमक एक बार फिर से बिखेरने के लिए यह किसी उद्धारक के इंतजार में है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस स्थल को अगर वाटर पार्क में तब्दील कर दिया जाये तो पर्यटकों के लिए यह स्थल आकर्षण का केंद्र बन जायेगा.

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