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दुनिया के पहले गणतंत्र की स्मृतियां !

-ध्रुव गुप्त- भारत के एक गणतांत्रिक राष्ट्र बनने का उत्सव है गणतंत्र दिवस. राष्ट्रीय गौरव के इस मौके पर आइए आज हम याद करते हैं दुनिया के उस पहले गणतंत्र को जिसने मानवता को लोकशाही की राह दिखाई थी. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब सारी दुनिया में वंश पर आधारित राजतंत्र अपने चरमोत्कर्ष पर […]

-ध्रुव गुप्त-

भारत के एक गणतांत्रिक राष्ट्र बनने का उत्सव है गणतंत्र दिवस. राष्ट्रीय गौरव के इस मौके पर आइए आज हम याद करते हैं दुनिया के उस पहले गणतंत्र को जिसने मानवता को लोकशाही की राह दिखाई थी. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब सारी दुनिया में वंश पर आधारित राजतंत्र अपने चरमोत्कर्ष पर था, वर्तमान बिहार का वैशाली वह एकमात्र राज्य था जहां का शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि करते थे. वैसे वैशाली की चर्चा पुराणों और महाभारत में भी है. इसका नामकरण महाभारत काल के इक्ष्वाकु-वंशीय राजा विशाल के नाम पर हुआ था. विष्णु पुराण में इस क्षेत्र पर राज करने वाले चौंतीस राजाओं के उल्लेख हैं.

ईसा पूर्व सातवीं सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान महत्त्वपूर्ण था. लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्‍छवियों के संघ अष्टकुल द्वारा यहां गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गयी थी. यहां का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा. आज दुनिया भर में जिस गणतंत्र को अपनाया जा रहा है, वह वैशाली के लिच्छवी शासकों की देन है.

वैशाली बिहार की राजधानी पटना से करीब पचास किमी दूर वैशाली जिले का ऐतिहासिक स्थल है जिसे भगवान महावीर की जन्मभूमि और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है. बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्पूर्ण था. प्राचीन वैशाली अति समृद्ध एवं सुरक्षित नगर था जिसे शत्रुओं से बचाव के लिए तीन तरफ से दीवारों से घेरा गया था. चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार पूरे वैशाली नगर का घेरा चौदह मील के लगभग था. मौर्य और गुप्‍त राजवंश में जब पाटलीपुत्र राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र के व्‍यापार और उद्योग का प्रमुख केंद्र हुआ करता था.

भगवान बुद्ध ने संभवतः तीन बार वैशाली में लंबा प्रवास किया था. वैशाली के कोल्‍हुआ में उन्होंने अपना अंतिम संबोधन दिया था. उनकी याद में सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सिंह स्‍तम्भ का निर्माण करवाया था. बुद्ध के महापरिनिर्वाण के सौ साल बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था. इस आयोजन की याद में वहां दो बौद्ध स्‍तूप बनवाये गये. प्रसिद्ध राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली यहीं की थी जिसने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में तथागत से बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी. बौद्ध साहित्य, जातकों, प्राचीन ग्रन्थों और चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृत्तांत में वैशाली की समृद्धि, सुरक्षा-व्यवस्था, वैभव और गणिका आम्रपाली के विशाल प्रासाद तथा उद्यान का विशद वर्णन मिलता है ! वैशाली जैन धर्मावलंबियों के लिए भी एक पवित्र स्थल है. तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वज्जिकुल में वैशाली के कुंडलपुर या कुंडग्राम में हुआ था जहां वे बाईस साल की उम्र तक रहे थे.

वैशाली आज विश्व भर के पर्यटकों के लिए लोकप्रिय पर्यटन-स्थल है. वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं. तथागत को वैशाली तथा उसके निवासियों से आत्मीय लगाव रहा था. उन्होंने यहां के गणप्रमुखों को देवों की उपमा दी थी. अंतिम समय में वैशाली से कुशीनारा आते समय उदास बुद्ध ने कहा था – ‘आनन्द, तथागत अब शायद इस सुंदर नगरी का दर्शन न कर सकेंगे,लेकिन जबतक यहां शासन में जनता की भागीदारी बनी रहेगी इसकी समृद्धि को किसी की नजर नहीं लगेगी !’

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