उत्तरकाशी सुरंग हादसे में बिहार के भी 5 श्रमिक फंसे थे. सुरंग से मंगलवार को बाहर आये दीपक स्वस्थ हैं, फिर भी एंबुलेंस से उनकी स्वास्थ्य जांच के लिये अस्पताल ले जाया गया. दीपक ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि 12 नवंबर को सुबह साढ़े चार बजे हमलोगों का शिफ्ट खत्म हो गया था. जब हमलोग बाहर निकलने लगे तो पता चला कि हमलोग फंस गये हैं. उसके बाद से हमलोगों को समझ में नहीं आया कि क्या करें. बाहर से फोन आया कि घबरायें नहीं, सब कुछ ठीक किया जा रहा है, आप लोगों को निकाल लिया जायेगा.
दीपक ने कहा कि पहले दिन तो हमलोगों को विश्वास था कि बाहर से निकालने की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन दूसरे दिन से कुछ पता नहीं चल रहा था कि क्या होगा. इस बीच हमलोगों तक खाना और पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गयी. तीन-चार दिनों के बाद हमलोगों का भरोसा कमजोर पड़ने लगा और हर पल यह महसूस होने लगा कि मौत सामने खड़ी है. पता नहीं जिंदगी बचेगी या नहीं. हमलोग डरे हुये थे फिर भी एक दूसरे को विश्वास दिलाते थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा. हमलोगों के मोबाइल का चार्ज खत्म होने लगा तो बाहर से हमलोगों ने चार्जर मंगवाया. घर से फोन भी आता था तो ज्यादा बात नहीं करते थे. उन्हें बताते थे कि सब कुछ ठीक है, जल्दी हम घर आ जायेंगे. मामा निर्भय सिंह घटना के दूसरे दिन यहां पहुंच गये थे.उनसे अधिक बात होती थी. कभी-कभी लगता था कि अब शायद माता-पिता से भेंट नहीं हो पायेगी. बाहर आया हूं तो लगता है कि नयी जिंदगी मिली है. ईश्वर ने सबके परिवारों की प्रार्थना सुन ली है.
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जिन परिवारों के बेटे सुरंग में फंसे हुये थे, उनके घर दीपावली और छठ नहीं हुई. दीपक ने बताया कि उनके घर में खाना-पीना भी नहीं बन रहा था. छठ के दिन पिता से बात हुई. सब लोग मायूस थे और मुझे यहां रोना आ रहा था. अब जब घर जायेंगे तो सबके साथ दीपावली मनायेंगे.