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परंपरा, श्रद्धा व प्रकृति से जुड़ा वट सावित्री पर्व 26 को

वट सावित्री व्रत, दुर्लभ सोमवती अमावस्या का संयोग

– वट सावित्री व्रत, दुर्लभ सोमवती अमावस्या का संयोग – पति की दीर्घायु और सौभाग्य की कामना को ले सुहागिनें करेंगी व्रत सुपौल. ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत 26 मई को दुर्लभ सोमवती अमावस्या के संयोग में मनाया जाएगा. यह व्रत भारतीय सनातन संस्कृति में स्त्रियों के सौभाग्य, पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना से जुड़ा महत्वपूर्ण पर्व है. पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि यह पर्व वैदिक परंपराओं से समृद्ध है और इसका मूल उद्देश्य स्त्री की पतिव्रता धर्म, निष्ठा और तप की भावना को प्रतिष्ठित करना है. भारतवर्ष में सुहागिनें इस दिन विधिवत उपवास, व्रत, कथा व पूजन कर अपने दांपत्य जीवन को अक्षुण्ण बनाए रखने की कामना करती हैं. कहा कि यह पर्व भारतीय संस्कृति में पतिव्रता नारीत्व, सतीत्व और वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक है. उन्होंने बताया कि मिथिलांचल क्षेत्र में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और विधि-विधान से मनाया जाता है. वट वृक्ष (बरगद) की पूजा को केंद्र में रखकर किया जाने वाला यह व्रत प्रकृति, अध्यात्म और पारिवारिक मूल्यों का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है. व्रत की पूजा सामग्री व विधि वट सावित्री पूजा के लिए बांस का पंखा, खरबूजा, लाल कलावा, कच्चा सूत, मिट्टी का दीपक, घी, धूप-अगरबत्ती, आम व लीची जैसे मौसमी फल, फूल, रोली, 14 गेहूं की पूड़ियां, 14 गेहूं के गुलगुले, सोलह शृंगार की वस्तुएं, पान, सुपारी, नारियल, भीगे चने, जल का लोटा, बरगद की कोपल, पूजा थाली, सवा मीटर कपड़ा, मिठाई, चावल, हल्दी, हल्दी का पानी और गाय का गोबर आवश्यक होते हैं. पूजा के दौरान महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और रक्षा-डोर बांधती हैं, जो दांपत्य प्रेम और अटूट बंधन का प्रतीक होता है. नई दुल्हनों के लिए विशेष आयोजन पहली बार व्रत करने वाली नवविवाहिता महिलाएं सोलह शृंगार कर पूजा स्थल पर पहुंचती हैं और थाली में पूजा सामग्री सजाकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं. कपड़े या मिट्टी से बने दूल्हा-दुल्हन के जोड़े से पूजा की जाती है और कच्चे धागे से वट वृक्ष की 05 से 07 बार परिक्रमा की जाती है. इसके बाद महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं और चने का प्रसाद बांटती हैं. पूजन का वैज्ञानिक पक्ष पंडित धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि वट वृक्ष को भारतीय धर्मग्रंथों व आयुर्वेद में ज्ञान, निर्वाण और दीर्घायु का प्रतीक माना गया है. यह पूजा केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी एक रूप है. वट वृक्ष की आराधना के माध्यम से हम प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं और उससे सह-अस्तित्व का पाठ सीखते हैं. इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई को मनाया जाएगा. पूजन के लिए विशेष शुभ मुहूर्त 8: 40 मिनट से लेकर 3:22 मिनट तक अति विशिष्ट मुहूर्त है. सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व इस वर्ष यह व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जो इसे और भी विशेष बनाता है क्योंकि सोमवती अमावस्या का योग दुर्लभ होता है. इस दिन सोमवारी व्रत भी रखा जाएगा, जिससे व्रत का पुण्य फल कई गुना अधिक माना जाता है.

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