प्रभात पड़ताल दीपक कुमार, त्रिवेणीगंज त्रिवेणीगंज अनुमंडल में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है, लेकिन वर्तमान हालात अब आम नागरिकों की जान के लिए प्रत्यक्ष खतरा बन चुका है. अनुमंडलीय अस्पताल से लेकर नगर परिषद क्षेत्र और प्रखंड के गांवों तक फर्जी नर्सिंग होम, व बिचौलियों का ऐसा संगठित नेटवर्क खड़ा हो गया है. जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र को खोखला कर दिया है. इससे भी चिंताजनक बात यह है कि यह पूरा खेल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे वर्षों से चल रहा है. फिर भी सुधार की दिशा में कोई ठोस पहल नजर नहीं आती. अनुमंडलीय अस्पताल में रोज़ाना इलाज की उम्मीद लेकर आने वाले मरीज बिचौलियों के जाल में फंस जाते हैं. डॉक्टरों के आने से पहले ही बिचौलियों की नजर गंभीर मरीजों, जख्मी लोगों और प्रसव पीड़िताओं पर गिद्ध की तरह टिकी रहती है. जैसे ही कोई मरीज अस्पताल पहुंचता है. दलाल बेहतर इलाज और सस्ती सुविधा का लालच देकर उसे अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. पहले भरोसा दिलाकर मरीजों को अस्पताल से बाहर निजी क्लिनिक, अवैध नर्सिंग होम या फर्जी जांच केंद्रों में पहुंचा दिया जाता है. जहां इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूले जाते है. दवा दुकान के पास नहीं है ड्रग लाइसेंस सूत्र बताते हैं कि इस अवैध धंधे में कई आशा कार्यकर्ताओं की भी मिलीभगत रहती है. जिन्हें दुकानदारों और दलालों द्वारा 40 से 50 प्रतिशत कमीशन दिया जाता है. अस्पताल चौक की दवा दुकानों में से कई के पास ड्रग लाइसेंस तक नहीं है. यही दुकानें दलाली नेटवर्क की रीढ़ साबित होती है. हर दुकान में 2–3 कर्मचारी रखे जाते हैं, जो अस्पताल में घुसकर मरीजों को फुसलाकर दुकान और उसके बाद नर्सिंग होम तक ले जाते हैं. कई दुकानों में बिना रजिस्ट्रेशन वाले लोग इंजेक्शन तक लगा देते हैं. जो सीधे स्वास्थ्य नियमों का घोर उल्लंघन है. फर्जी नर्सिंग होम और पैथोलॉजी सेंटरों का है साम्राज्य नगर परिषद क्षेत्र और आसपास के इलाकों में फर्जी नर्सिंग होम और पैथोलॉजी सेंटरों का जाल तेजी से फैला है. इनमें से अधिकांश बिना पंजीकरण, बिना डॉक्टर, बिना प्रशिक्षित स्टाफ और बिना बुनियादी सुविधाओं के धड़ल्ले से चल रहे है. इन केंद्रों में प्रशिक्षित नर्स या डॉक्टर मौजूद नहीं हैं. संक्रमण नियंत्रण की व्यवस्था एवं उपकरणों का भारी अभाव रहता है. यही कारण है कि ग्रामीण चिकित्सक जटिल ऑपरेशन तक कर रहे हैं. कई बार मरीजों की मौत भी हो जाती है. वहीं अवैध केंद्रों के बाहर टंगे बड़े-बड़े होर्डिंग पर प्रसिद्ध डॉक्टरों के नाम और तस्वीरें लगी होती है. लेकिन वास्तविकता यह है कि न तो वे डॉक्टर वहां मौजूद होते हैं और न ही उनका क्लिनिक से कोई वास्ता रहता है. इलाज कोई और करता है. इसका खामियाजा मरीजों को अपनी जान जोखिम में डालकर भुगतना पड़ता है. गंभीर मरीज दलालों की है पहली पसंद जैसे ही अस्पताल में कोई गंभीर मरीज पहुंचता है. बिचौलिया उसे जल्द से जल्द रेफर करवाने की कोशिश में जुट जाते हैं. रेफर करवाते ही उनका कमीशन शुरू हो जाता है. मरीजों को सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, नेपाल या निजी अस्पतालों में सस्ते इलाज का झांसा देकर भेजा जाता है. बाद में वहां इलाज के नाम पर भारी बिल थमा दिया जाता है. जिसमें 40–50 प्रतिशत दलालों को वापस कमीशन के रूप में दिया जाता है. हालांकि अस्पताल कैंपस में दलालों से सावधान रहने का फ्लेक्स बोर्ड लगा है. लेकिन इसका जमीन पर कोई असर दिखाई नहीं देता. अस्पताल प्रशासन द्वारा एक शिफ्ट में आधा दर्जन से अधिक गार्ड की तैनाती के बावजूद दलालों का साम्राज्य जस का तस है. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन ने भी इस अवैध तंत्र के सामने हथियार डाल दिए हैं. पहले हुई कार्रवाई भी बेअसर वर्ष 2017 में लोक शिकायत निवारण कार्यालय के निर्देश पर 17 अवैध संस्थानों पर केस दर्ज किया गया था. जबकि शिकायतकर्ता ने 63 संस्थानों की सूची दी थी. 20 मई 2023 को जदिया में 3 फर्जी जांच केंद्र सील किए गए थे. लेकिन कुछ दिनों में फिर वही स्थिति बहाल हो गई. इससे साफ है कि कार्रवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है. हजारों लोग हर साल इन अवैध जगहों में गलत इलाज और बिचौलियों के जाल का खामियाजा भुगत रहे हैं. कहते हैं सीएस सिविल सर्जन ललन ठाकुर कहते हैं कि बिचौलियों के रोकथाम के लिए अस्पताल में सुरक्षा गार्ड भी प्रतिनियुक्त है. अगर ऐसी बात है तो लिखित शिकायत देंगे तो उन दलालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
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