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कोसी में आज भी मुद्दों की है भरमार, लेकिन, नहीं बन पाता चुनावी मुद्दा

अमरेंद्र, सुपौल : लोकसभा चुनाव की बिसात जिले में बिछ चुकी है. चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार भी जोर पकड़ने लगा है. मतदाताओं को फिर एक बार वादों की घुट्टी पिलाने की कवायद शुरू हो गयी है. तकरीबन सभी उम्मीदवार जनता को विकास के सपने दिखाने लगे हैं. कोसी का कायाकल्प करने के […]

अमरेंद्र, सुपौल : लोकसभा चुनाव की बिसात जिले में बिछ चुकी है. चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार भी जोर पकड़ने लगा है. मतदाताओं को फिर एक बार वादों की घुट्टी पिलाने की कवायद शुरू हो गयी है. तकरीबन सभी उम्मीदवार जनता को विकास के सपने दिखाने लगे हैं. कोसी का कायाकल्प करने के साथ लोगों की जिंदगानी बेहतर बनाने के दावे भी किये जा रहे हैं.

पिछले चुनावों की तरह इस बार भी सभी दलों का प्राथमिक मुद्दा विकास ही है. जबकि गौर करें तो कोसी कछार पर बसे इस जिले में आज भी समस्याओं व मुद्दों की भरमार है. जिले में कोसी नदी में हर वर्ष आने वाली बाढ़ और उससे मचने वाली तबाही का मुद्दा आज भी विकराल बना हुआ है.
कोसी के दोनों तटबंधों के बीच जिले की करीब ढाई लाख की आबादी बसी हुई है. जिन्हें हर साल बाढ़ विभीषिका का दंश झेलना पड़ता है. वर्ष 2008 में हुई भीषण कुसहा त्रासदी के जख्म आज भी मौजूद हैं. सियासतदानों ने तब बेहतर कोसी निर्माण का भरोसा दिया था. लेकिन प्रभावित क्षेत्र में टूटे पड़े सड़क, पुल-पुलिया व तबाही के मंजर आज भी उन वादों को मुंह चिढ़ाते प्रतीत होते हैं.
सुपौल-फारबिसगंज रेलखंड में वर्षों से ठप है रेल परिचालन : दूसरा प्रमुख मुद्दा रेल की समस्या है. सुपौल-फारबिसगंज रेलखंड में वर्षों से ट्रेनों का परिचालन ठप है. कुसहा त्रासदी ने राघोपुर से फारबिसगंज के बीच रेल व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया था. करीब 11 वर्षों से इस इलाके के लोग रेलगाड़ी के दर्शन को तरस गये हैं. राघोपुर-सुपौल के बीच भी अमान परिवर्तन के नाम पर रेल यातायात बंद है. वर्ष 2003 में इस रेलखंड में अमान परिवर्तन के शिलान्यास के 16 साल बाद भी बड़ी रेल लाइन सेवा नहीं शुरू हो पायी है.
चुनाव से पूर्व इस रेलखंड में अमान परिवर्तन कर बड़ी लाइन की ट्रेन चलाने का दावा धरा रह गया. बड़ी मशक्कत के बाद एक माह पूर्व जिले के दक्षिणी हिस्से में अवस्थित एक मात्र रेलवे स्टेशन गढ़ बरूआरी तक ट्रेन सेवा शुरू हुई. लेकिन जिला मुख्यालय व जिले के शेष हिस्सों में ट्रेन सेवा आज भी बाधित है.
बेहतर स्वास्थ्य सेवा का मुद्दा : कोसी का इलाका शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिये जूझ रहा है. एसएच, एनएच व फोरलेन सड़कों का जिले में जाल बिछ चुका है. आये दिन सड़क दुर्घटनाएं होती रहती है. जिसमें हर साल सैकड़ों लोग काल के गाल में समा जाते हैं.
जिले में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं है. नतीजा है कि स्थानीय अस्पताल विकट परिस्थिति में महज रेफर सेंटर की भूमिका निभाते हैं. गंभीर मरीजों को दरभंगा, पटना व अन्य हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है. यह दीगर बात है कि इन बड़े हेल्थ सेंटरों तक पहुंच पाने का भाग्य हर मरीजों को नसीब नहीं हो पाता.
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मुद्दा : शिक्षा व्यवस्था भी यहां सवालों के घेरे में है. भवनहीन व भूमिहीन विद्यालयों की अब भी फेहरिस्त लंबी है. जहां भवन है तो शिक्षक की कमी और शिक्षक हैं तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव.
नतीजा है कि जिले में कोचिंग व ट‍्यूशन सेंटर का कारोबार चकाचक चल रहा है. मुद्दे कई और भी हैं, कोसी में मुद्दों की भरमार है. लेकिन दुखद है कि ये मुद्दे आज भी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाते. चुनाव का समय आने के बाद राजनीति की धारा अंतिम समय में जात-पात, धर्म-समुदाय की गोलबंदी में सिमट कर रह जाती है. इन सब के बीच सारे जरूरी मुद्दे गौन हो जाते हैं और इसका खामियाजा कोसी वासियों को फिर अगले पांच वर्षों तक उठाना पड़ता है.
रोजगार की कमी से पलायन का मुद्दा
जिले में उद्योग धंधों का घोर अभाव है. नतीजा है कि रोजगार के अभाव में हर साल यहां के लाखों मजदूर कामकाज की तलाश में अन्य प्रदेशों की ओर पलायन करने को विवश हैं. जबकि जिले की भूमि उर्वर है. पानी का भी यहां अकूत भंडार है. कृषि आधारित उद्योग की अपार संभावनाएं यहां मौजूद हैं. लेकिन कमी है तो बस सियासतदानों के ठोस पहल की, जिसकी आज भी कमी दिख रही, लिहाजा यह भी एक मुद्दा है.

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