प्रतिनिधि, महाराजगंज. अनुमंडल के छह थानों में करीब 1230 बड़ी-छोटी गाड़ियां जब्त हैं, जो अब कबाड़ में बिकने लायक भी नहीं रह गयी हैं. आंकड़ा अधिकारिक नहीं, बल्कि अनुमानित है. कई गाड़ियों के कल-पूर्जे तक गायब तक हो गये हैं. लेकिन कभी इन गाड़ियों की नीलामी के लिए थानेदार से लेकर पुलिस कप्तान तक रुचि नहीं लेते हैं. अगर इन गाड़ियों की समय पर नीलामी हो जाती, तो करीब 4 करोड़ रुपये मिल जाते. पुलिस विभाग के पास यह भी आंकड़ा नहीं है कि पिछले 20 वर्षों में किस थाने में कितनी गाड़ियां जब्त कर रखी हुई हैं. एक आकलन के मुताबिक, अगर कम से कम एक थाने में 200 गाड़ियां रखी हैं, तो छह थानों में 1200 गाड़ियां सड़ रही हैं. इनमें 20 प्रतिशत बड़ी गाड़ियां और 80 प्रतिशत छोटी गाड़ियां हैं. दुर्घटनाग्रस्त वाहन ही सर्वाधिक थानों में जब्त अधिकांश वाहनों में दुर्घटना करने वाले होते हैं. सामान्य दुर्घटनाओं में तो वाहन मालिक उन वाहनों की जमानत करा लेते हैं लेकिन,जब किसी वाहन से बड़ी दुर्घटना हो जाती है, तो उनमें जमानत प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है.कई वाहनों के पूर्ण दस्तावेज नहीं होने पर भी मालिक उन्हें छुड़ा नहीं पाते हैं. वहीं, जिन वाहनों से बड़ी दुर्घटनाएं हुई या जिनमें परिवार के कई लोगों को मौत हो जाती है. ऐसे वाहनों को भी पीड़ितों के परिवार लेकर ही नहीं जाते हैं. उन वाहनों को भी पुलिस को दुर्घटनास्थल से उठाकर थाना में लाना पड़ता है. ऐसे वाहनों में कार, ऑटो व बाइक व ट्रक इत्यादि शामिल है. मालखाना प्रभार की प्रक्रिया जटिल, सालों लग जाते हैं: मालखाना का प्रभार लेने वा देने की प्रक्रिया काफी जटिल है. इसे पूरे होने में वर्षों लग जाते हैं और थानेदार बदल कर चले भी जाते हैं. मालखाना की जटिल प्रक्रिया की वजह से कोई इसका प्रभार लेना नहीं चाहता है. इसके कारण कई दारोगा, थानेदार मालखाना का प्रभार लेने और देने में सस्पेंड भी हो चुके हैं. कोर्ट के आदेश के बाद शुरू होती है नीलामी की प्रक्रिया जब्त वाहनों को धारा 102 के तहत पुलिस रिकॉर्ड में रखती है. नीलामी योग्य वाहनों की सूची केस नंबर के साथ लिखकर थाने की ओर से कोर्ट में आवेदन दिया जाता है, फिर कोर्ट आदेश देता है. तब एसडीओ के नेतृत्व में कमेटी बनती है, जो नीलामी की प्रक्रिया शुरू करती है. ज्यादातर गाड़ियां दुर्घटना के मामले में जब्त हैं. कुछ गाड़ियां हत्या, लूट, डकैती और अन्य कारणों से जब्त है. केस में महीनों बाद जारी होता है रिलीज ऑर्डर आपराधिक या दुर्घटना के मामले में जब्त गाड़ियों के केस को सुलझाने में महीना और साल भी लग जाता है. जब तक केस सुलझ नहीं जाता है, तब तक उससे संबंधित गाड़ी को सबूत के तौर पर रखा जाता है. जांच पूरी होने के बाद ही गाड़ियां रिलीज होती है. नीलामी करने में रुचि नहीं लेते हैं अफसर शराब मामलों को छोड़ अन्य मामलों मे जब्त गाड़ियों की नीलामी में थानेदार से लेकर एसपी तक रुचि नहीं लेते हैं. खास कर लावारिस, दुर्घटना, चोरी, डकैती, छिनतई तथा प्रतिबंधित वस्तु में जब्त वाहनों के मामले में उदासीनता साफ दिखाई पड़ती है.अनुमंडल के विभिन्न थानों में पिछले कई वर्षों से थानों में जब्त शराब मामलों को छोड़ अन्य मामले में जप्त गाड़ियों की नीलामी नहीं हुई है. प्र क्या कहते हैं अधिकारी न्यायालय के आदेश आने के बाद ही नीलामी अथवा अन्य आवश्यक कार्रवाई पुलिस द्वारा की जाती है..थाना परिसर में रखे जब्त वाहनों को नीलाम करने की एक कानूनी प्रक्रिया है. जब्त वाहन केस से संबंधित रहते हैं. न्यायालय में केस खुलने पर जब्त वाहनों को प्रदर्शन किया जाता है. केस फाइनल होने के बाद ही जब्त वाहनों को हटाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है. राकेश कुमार रंजन, एसडीपीओ, महाराजगंज
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