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हर्षोल्लास के साथ बहनें मना रही है लोक आस्था का पर्व सामा-चकेवा

अनुमंडल मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में लोक आस्था का पर्व सामा चकेवा हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है.

पुपरी. अनुमंडल मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में लोक आस्था का पर्व सामा चकेवा हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है. छठ पर्व के समापन के साथ हीं शाम होते हीं शारदा सिन्हा के गाये गए सामा चकेवा एवं चुगला- चुगली के गीत आसपास का क्षेत्र गुंजायमान होने लगा है. वहीं, इस पर्व को मनाने वाली महिलाएं मिट्टी की प्रतिमा को अंतिम रूप दे दी है. इनमें सामा- चकेवा, चुगला, सतभैया, वृंदावन एवं कुछ खास पक्षियों की प्रतिमा शामिल है. यह पर्व भाई बहन की पवित्र रिश्ते को दर्शाता है. पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण की पुत्री सामा के संबंध में किसी चुगले ने उसके पिता से सामा के किसी से गलत संबंध होने का आरोप लगाया. कृष्ण गुस्से में आकर सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दिया. बहुत दिनों तक सामा इस श्राप के कारण पक्षी बनी रही, किंतु भाई चकेवा ने अपने प्रेम व त्याग के बल पर सामा को अपना रूप दिलवाया. उसके साथ ही चुगले को प्रताड़ित भी करवाया. उसी कथा की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को साल में छठ पर्व समापन के आठ दिनों तक पर्व के रूप में निभाया जाता है. इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाकर उसे जूते से पीटने की भी परंपरा है. परंपरा के अनुसार धान की नई फसल के चूड़ा बनाकर अपने भाईयों को पर्व मनाने वाली बहने चूड़ा, भूसवा, मिठाई आदि से फार भरते है. जानकारों का कहना है कि सामा चकेवा मैथिल समाज के लोगों ने शुरू की थी जो अब तक चल रही है. दूसरे समाज के लोगों ने भी आस्था के साथ इसे अपना लिया. कार्तिक पूर्णिमा की देर रात इस पर्व की समाप्ति की जाएगी. इस पर्व को लेकर क्षेत्र में महिलाओं एवं बच्चों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. बाजारों में कुम्हार समाज के द्वारा बनाई गई मिट्टी के सामा चकेवा सेखारी की खूब बिक्री हो रही है. लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है. पंडित शक्तिनाथ पाठक व अंबिका दत्त झा ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है. चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी. क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया. साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया. यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपने बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया. तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है. ग्यारह दिनों तक बहने भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं. इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं. सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें जोता हुआ खेत में पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन करती है.

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