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खेत में लगे पानी से धान की कटनी बनी चुनौती, रबी फसल पर भी संकट

प्रखंड क्षेत्र में हर वर्ष दिसंबर के प्रथम सप्ताह से गेहूं की बुवाई शुरू होती थी.

पुपरी. प्रखंड क्षेत्र में हर वर्ष दिसंबर के प्रथम सप्ताह से गेहूं की बुवाई शुरू होती थी. कई किसान धान कटते ही नमी वाले खेतों में मटर, मसूर, अरहर और खेसारी जैसी दालों के बीज छिड़क देते थे, जिससे कम लागत में अच्छी पैदावार मिल जाती थी. लेकिन इस बार धान की खेती में जल जमाव के कारण पूरी प्रक्रिया ठप है. खेतों में भरा पानी न केवल खरीफ धान की कटनी रोक रहा है बल्कि रबी फसलों की संभावनाएं भी खत्म होती दिख रही है. इससे किसानों के साथ-साथ पशुपालक भी संकट में हैं. क्योंकि गेहूं का भूसा यहां पशुओं के चारे का मुख्य स्रोत है. समय पर गेहूं की खेती नहीं होने पर गंभीर चारा संकट उत्पन्न हो सकता है.

बेमौसम बरसात ने उम्मीद पर फेरा पानी

मालूम हो कि अक्तूबर माह के प्रथम सप्ताह में आए चक्रवाती तूफान और बेमौसम बारिश ने प्रखंड क्षेत्र के किसानों पर कहर बनकर दस्तक दी है. क्षेत्र के अधिकांश पंचायतों में खरीफ धान की फसलें भारी बारिश और तेज हवाओं की वजह से बर्बाद हो गई है. किसानों का कहना है कि लागत पूंजी से लेकर उपज की उम्मीद तक पर पानी फिर गया है, जिससे पूरे इलाके में हताशा का माहौल छाया हुआ है. सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र प्रखंड क्षेत्र के उतरी व पूर्वी हिस्से में हैं, जहां भिट्ठा धरमपुर , हरिहरपुर, बौरा बाजितपुर, रामनगर बेदौल समेत अन्य पंचायतों की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि में खड़ी धान की फसलें खेत में लगे पानी के कारण नष्ट हो रही है. धरमपुर निवासी व किसान मनोज कुमार चौधरी और दरोगा चौधरी, बहिलवारा गांव के रजनीश चौधरी, सुशील चौधरी, डुम्हारपट्टी के रणजीत कुमार, नवीन कुमार समेत अन्य ने बताया कि शुरुआती मौसम में बारिश कम होने के कारण उन्होंने पंपसेट से पटवन कर रोपनी कराई थी. प्रति एकड़ औसतन 12 हजार रुपये का खर्च आया था. फसल अच्छी दिख रही थी, पर अचानक आए तूफान और बारिश ने किसानों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. किसानों के अनुसार, इस वर्ष कटनी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. अब इस क्षेत्र में भी अधिकांश किसान मशीन से धान कटवाने लगे हैं. लेकिन मशीन तभी चल सकती है जब खेत सूखे हों और पौधे खड़े हों. फिलहाल ज्यादातर धान खेतों में पानी है. पके हुए धान के पौधों के नीचे भी जल जमाव है, जिससे मशीन द्वारा कटनी असंभव हो गई है. मजदूरों से कटनी कराना भी बेहद कठिन हो गया है क्योंकि कीचड़ से भरे खेतों में धान काटना लगभग नामुमकिन है. किसानों का कहना है कि “कटे हुए धान की बाली को रखने तक की जगह नहीं बची है. ऐसे में उपज बचाना कैसे संभव होगा? खरीफ धान के साथ – साथ रबी की खेती पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

कर्ज चुकाना हुआ मुश्किल

खेती में बढ़ते खर्च और असमय बारिश के कारण नुकसान होने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है. कई किसान महाजन से कर्ज लेकर खेती करते हैं. लेकिन फसल चौपट होने से कर्ज चुकाना भी मुश्किल हो गया है. बढ़ती महंगाई और कृषि लागत ने उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया है. वहीं गेहूं व रबी के फसल पर भी संकट की बादल मंडरा रही है.

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