पुपरी. शारदीय नवरात्र को लेकर नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. सभी पूजा समिति के सदस्य तन-मन-धन से जुटे हुए हैं. पूर्वजों द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को आज भी नगर के प्रबुद्धजन व युवा वर्ग बड़े उत्साह के साथ आगे बढ़ा रहे है. दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि शक्ति व विजय का प्रतीक भी माना जाता है. नगर व गांवों में जगह-जगह भव्य पंडालों का निर्माण कार्य तेजी से जारी है. मूर्तिकार देवी मां की आकर्षक प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे हैं, वहीं मजदूर कारीगर पंडालों को भव्य बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. नगर स्थित हनुमान बाग कुटी परिसर में श्री नव दुर्गा पूजा समिति द्वारा इस बार करीब 115 फीट लंबा, 40 फीट चौड़ा व 50 फीट उंचा भव्य पंडाल का निर्माण करवाया जा रहा है. जिसमें करीब 15 फीट उंची मां दुर्गा की सौम्या स्वरूपा महिषासुर मर्दनी रूप की प्रतिमा बनायी जा रही है. वहीं ब्राह्मी, महेश्वरी, ऐंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुंडा, बाराही, नारसिंही, लक्ष्मी, गणेश, कार्तिक व शिवसमेत अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को तैयार किया जा रहा है. पंडाल का निर्माण कृष्ण पूजा टेन्ट हाउस के संचालक दिग्विजय प्रसाद के देखरेख में कोलकाता के कारीगर समलेनदू की टीम कर रहा है. प्रतिमा का निर्माण सीतामढ़ी के मूर्तिकार मनोज दास की टीम कर रहा है. पूजा समिति के अध्यक्ष सुरेश दास व सचिव रविंद्र साह ने बताया कि यहां 1989 से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना भक्ति भाव से की जा रही है. सर्वप्रथम पुपरी पंचायत के पूर्व मुखिया किशोरी साह ने वर्ष 1989 में प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू की थी. तबसे आज तक दुर्गा पूजा हो रही है. सप्तमी तिथि से नवमी तिथि के बीच दरभंगा व मधुबनी समेत आसपास के कई जिलो समेत दूसरे राज्यों से भी लोग यहां के दुर्गा पूजा देखने तथा चढ़ावा चढ़ाने आते हैं. महज 25000 रुपये की लागत से पुजा शुरू हुई थी. जिसका लागत मंहगाई होने के कारण इस वर्ष करीब 15 लाख रुपये तक पहुंचने की संभावना हैं. यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र बेलन्यौती के दिन कुवांरी कन्या के द्वारा निकाले जाने वाली भव्य कलश शोभायात्रा व विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है. पूजा कमिटी के कोषाध्यक्ष कृष्ण मुरारी गिरि उर्फ जय जय गिरि , उपाध्यक्ष मनिष कुमार गौरव, उप सचिव मुकुंद कुमार पाण्डेय, उप कोषाध्यक्ष राकेश कुमार दास, सोशल मिडिया प्रभारी सोनू कुमार पाण्डेय समेत अन्य पदाधिकारी व सदस्य सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. बताया दस दिनों तक चलने वाले इस पूजा की शुरुआत आश्वनी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम दिन) को कलश स्थापना से होकर विजयादशमी के साथ इसका समापन होता है . इन दिनों में षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी विशेष महत्व रखते हैं. कहां पूजा के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी परंपरा रही है. एक दशक पूर्व तक विभिन्न स्थानों पर सप्तमी, अष्टमी व नवमी की रातों में नाटक, आर्केस्ट्रा और भक्ति जागरण का आयोजन होता था, जिनमें वृंदावन, अयोध्या, मुजफ्फरपुर, बंगाल और अन्य जगहों से आए कलाकार अपनी प्रस्तुति देते थे. उक्त लोगों ने बताया कि इस वर्ष चुनाव आचार संहिता लागू नहीं होगी तो एक-दो स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने की संभावना है. जिसका इंतजार श्रद्धालु और कलाकार दोनों को ही हैं.
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