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बिहार में सॉफ्टवेयर इंजीनियर चला रहे अनोखा सत्याग्रह, पुल निर्माण के लिए दो साल से नहीं बनायी दाढ़ी

अमिताभ कुमारजुटा रहे हस्ताक्षर सीतामढ़ी : शिवहर जिले के अदौरी और खोरीपाकर गांवों के बीच पुल निर्माण की मांग को लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर संजय सिंह सत्याग्रह अभियान चला रहे हैं.दो साल से वह लोगों के बीच हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं. जब से उनका अभियान चल रहा है, तब से उन्होंने अपनी दाढ़ी नहीं कटवायी […]

अमिताभ कुमारजुटा रहे हस्ताक्षर
सीतामढ़ी : शिवहर जिले के अदौरी और खोरीपाकर गांवों के बीच पुल निर्माण की मांग को लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर संजय सिंह सत्याग्रह अभियान चला रहे हैं.दो साल से वह लोगों के बीच हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं. जब से उनका अभियान चल रहा है, तब से उन्होंने अपनी दाढ़ी नहीं कटवायी है. उनका संकल्प है कि जब तक पुल निर्माण नहीं होता, तब तक वह अपनी दाढ़ी नहीं कटवायेंगे.
शिवहर जिले के अदौरी और पूर्वी चंपारण जिले के खोरीपाकर गांव के बीच से दो नदियां गुजरती हैं- बागमती और लाल बकेया. दोनों गांवों के बीच की दूरी करीब ढाई किमी है.
संजय का कहना है कि पुल के बन जाने से सीतामढ़ी के मां जानकी धाम से अयोध्या का संपर्क सीधा जुड़ जायेगा. साथ ही जानकी स्थान से बापूधाम मोतिहारी की दूरी भी काफी कम हो जायेगी. इसके अलावा करीब 40 हजार किसान सीधे तौर पर लाभान्वित होंगे.संजय बताते हैं कि पुल निर्माण की मांग को लेकर उनकी तीन पीढ़ियां स्वर्गवासी हो चुकी हैं.
पूर्वजों का सपना व तीन जिलों के लोगों का कष्ट देखकर वह नौकरी और व्यवसाय छोड़कर पुल के लिए अभियान चला रहे हैं. वह पुल निर्माण को लेकर चार बार सीएम नीतीश कुमार से भी मिल चुके हैं. उनका मानना है कि पुल बन जाने से सीतामढ़ी, शिवहर और मोतिहारी के लोगों का आवागमन सुलभ व आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो जायेगी. 2015 में यह मुद्दा लोकसभा में उठाया गया था. 12 बार विधानसभा में भी मुद्दा उठ चुका है.
यह पुल बना तो सीतामढ़ी से मोतिहारी की दूरी मात्र 65 किमी रह जायेगी
पुल नहीं होने के कारण मोतिहारी के किसानों का गन्ना रीगा शुगर मिल तक भी नहीं पहुंच पाता है. एक जिले से दूसरे जिले में आने के लिए उन्हें करीब 160 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. अगर यह पुल बन जाता है तो सीतामढ़ी से मोतिहारी की दूरी मात्र 65 किमी होगी. गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अच्छे अस्पतालों में भर्ती कराने से पहले उनकी जान चली जाती है. सबसे दुखद बात तो यह है कि दोनों गांव में बेटी की शादी करना लोग नदी में धकेलने के बराबर समझते हैं.

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