सीतामढ़ी : कभी सूबे के सबसे शांत जिलों में सुमार सीतामढ़ी की आवो-हवा वक्त के साथ खतरनाक तरीके से बदली है. नक्सलियों के पांव जमाने के साथ ही रंगदारी को लेकर छूटभैये अपराधियों द्वारा खुद का गिरोह खड़ा कर लिये जाने के बाद रंगदारी को लेकर जो खूनी खेल शुरू हुआ है, वह अब तक […]
सीतामढ़ी : कभी सूबे के सबसे शांत जिलों में सुमार सीतामढ़ी की आवो-हवा वक्त के साथ खतरनाक तरीके से बदली है. नक्सलियों के पांव जमाने के साथ ही रंगदारी को लेकर छूटभैये अपराधियों द्वारा खुद का गिरोह खड़ा कर लिये जाने के बाद रंगदारी को लेकर जो खूनी खेल शुरू हुआ है, वह अब तक थमा नहीं है.
हां, इतना जरूर है कि कुछ महीनों की पुलिसिया सख्ती के बाद विधि-व्यवस्था की तस्वीर भी बदली है, लेकिन गिरोह के खतरनाक रूप पर लगाम कसना मुश्किल हुआ है. एक वक्त यह है भी था कि जब शहर के लोग रात्रि बाजार तक के हिस्सेदार होते थे. आज देर शाम तक घर से बाहर रहना परिवार वालों को बेचैन कर दिया है. लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से अब तक आधा दर्जन से अधिक आपराधिक घटनाओं में व्यवसायी समेत तीन की गोली मारकर हत्या की गयी है.
वहीं दो पेट्रोल पंप में लूट के साथ हीं दो व्यवसायी पर फायरिंग कर दहशत फैलाया गया. नौ घंटों के भीतर मनोज एंड ब्रदर्स सर्जिकल सेंटर के साथ हीं शहर के महंथ साह चौक स्थित पूनम श्री के संचालक रजनीश कुमार पर जानलेवा हमला के बाद शहर के लोग एक बार फिर दहशत में है.
पिछले 10 वर्षों के भीतर रंगदारी को लेकर तीन व्यवसायी को अपनी जान गंवानी पड़ी है. पुलिस की सुस्ती की वजह से हीं शहर के बड़े दवा कारोबारी यतींद्र खेतान के साथ-साथ साहू चौक स्थित उमा कम्यूनिकेशन के मालिक मुनींद्र पाठक की गोली मारकर हत्या की गयी थी. वर्ष 2008 में शहर के कोट बाजार निवासी कपड़ा व्यवसायी अनिल कुमार की हत्या की गयी थी.
कभी चिरंजीवी, तो कभी सरोज का था आतंक
वर्ष 2005 के बाद शहर के व्यवसायियों से रंगदारी मांगने की घटना में तेजी आयी. उस वक्त चिरंजीवी भगत के नाम का दहशत फैला था. रंगदारी वसूलने के लिए शहर के व्यवसायियों को निशाने पर लिया था. यहां तक कि कुछ डॉक्टर से रंगदारी की मांग की गयी थी. उक्त अवधि में नवीन मेडिकल हॉल के बाहर देसी बम से विस्फोट कर खौफ पैदा किया गया था.
इसके बाद बड़े कांट्रैक्टर से लेवी वसूलने में खुद को लिप्त करने के बाद चिरंजीवी भगत का संपर्क कुख्यात संतोष झा से हो गया. उसके गिरोह के साथ मिलकर उसने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. चिरंजीवी के शहर छोड़ने के बाद से ही सरोज राय का नाम रंगदारी वसूलने में सामने आया. बड़े दवा कारोबारी यतींद्र खेतान की हत्या के बाद उसके नाम का दहशत कायम हो गया. सरोज के जेल में होने तथा गिरोह के अलग-थलग पड़ने के बाद अब राकेश राय रंगदारी का सिक्का चलाना चाहता है.