Bihar News: साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तरियानी छपरा गांव में अंग्रेज़ी हुकूमत ने सभा कर रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दी थीं. यह दर्दनाक घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद दिलाती है. इस दिन की स्मृति में आज भी स्थानीय लोग और जिला प्रशासन देशभक्ति और बलिदान की भावना को याद करते हैं. यह घटना हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता की कीमत कितने संघर्ष और त्याग से हासिल हुई है. शिवहर जिले का 30 अगस्त इतिहास में एक काले दिन के रूप में देखा जाता है.
ये लोग हुए थे शहिद
अंग्रेजों की गोलियों की चपेट में आकर मौके पर ही बलदेव साह, सुखन लोहार, बंसी ततमा, परसत साह, सुंदर महरा, छठु साह, जयमंगल सिंह, सुखदेव सिंह, भूपन सिंह और नवजात सिंह शहीद हो गए. इन वीरों की शहादत ने, न केवल उनके गांव और जिले बल्कि अंग्रेजी शासन की नींव को भी हिला दिया.
अंग्रेजों की कोठी पर हमला कर लूट लीं थी बंदूकें
30 अगस्त 1942 को आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों की कोठी पर हमला कर बंदूकें लूट लीं और बेलसंड–तरियानी के बीच बागमती नदी पर बने माडर पुल को उड़ा दिया. इसके बाद आंदोलनकारी तरियानी छपरा गांव में अगली रणनीति बना रहे थे, तभी अंग्रेज़ी सिपाहियों ने हमला किया और 10 वीरों को शहीद कर दिया. उस समय शिवहर, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिले का हिस्सा था. बेलसंड में अंग्रेजों का थाना और कोठी मौजूद था. भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान के बाद इस इलाके में आंदोलन तेज़ था.
गांव में मौजूद हैं शहीदों के स्मारक
तरियानी छपरा गांव में आज भी उन शहीदों के स्मारक मौजूद हैं, जो नई पीढ़ी को आजादी के लिए किए गए बलिदान की याद दिलाते हैं. अगस्त 1942 में सीतामढ़ी–शिवहर क्षेत्र देशभर के लिए सुर्खियों में रहा.इस दौरान 213 आंदोलनकारी गिरफ्तार हुए, जिनमें से 180 को जेल भेजा गया. चार अंग्रेज मारे गए और 12 स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. यह घटना शिवहर की धरती पर देश की आज़ादी के लिए किए गए महान बलिदान की जीवंत गवाही है.

