Sardar Patel in Bihar: दिसंबर की ठंडी सुबहों में जब बिहार में सरदार वल्लभभाई पटेल के आने की खबर फैली, तो जमींदारों के जुल्म, परंपराओं की बेड़ियों और गुलामी के साये में जी रहे किसान, महिलाएं और युवा सभी उनकी एक झलक और एक आवाज सुनने के लिए उमड़ पड़े. उस दौर में पटेल की गर्जना सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि समाज की जड़ता को हिला देने वाली चेतावनी थी.
किसानों से बोले पटेल — “तुम न जमींदारों से डरो, न सरकार से”
10 दिसंबर 1929 को कर्नाटक दौरे के बाद वल्लभभाई पटेल ने करीब पखवाड़े भर के लिए बिहार का भ्रमण किया. सीतामढ़ी, मुंगेर, चंपारण और गया में आयोजित जिला एवं प्रांतीय सम्मेलनों में उनका स्वागत विशाल जनसमूहों ने किया. बिहार के किसान, जो उस समय जमींदारों के अत्याचार और सरकारी उपेक्षा से त्रस्त थे, पटेल के आगमन की खबर सुनते ही सड़कों पर उमड़ पड़े.
स्वयं एक किसान पुत्र होने के नाते वल्लभभाई किसानों की व्यथा को गहराई से समझते थे. उन्होंने साफ शब्दों में कहा— “तुम न जमींदारों से डरो, न सरकार से. किसान सबका अन्नदाता है, इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ है.”
बिहार के किसानों की दुर्दशा देखकर पटेल भावुक हो उठे. उनके शब्दों ने निराश किसानों में नई आशा, साहस और आत्मसम्मान का संचार कर दिया. यह केवल एक राजनीतिक यात्रा नहीं थी . यह उस समय के समाज में आवाजहीनों की आवाज उठाने वाला आंदोलन बन चुकी थी.
बिहार में महिलाओं की परदा प्रथा पर जमकर बरसे थे सरदार पटेल
वल्लभभाई पटेल ने अपने बिहार दौरे के दौरान सिर्फ किसानों की व्यथा ही नहीं सुनी, बल्कि महिलाओं की स्थिति पर भी खुलकर बोले. उनके भाषणों में बार-बार यह सवाल गूंजा “आप अपनी माताओं, बहनों और पत्नियों को इस तरह घर की चारदीवारी या परदे की कैद में क्यों रखते हैं?”
पटेल का तर्क साफ था—जो महिलाएं समाज और परिवार की आधी ताकत हैं, उन्हें निष्क्रिय बनाकर कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता. उन्होंने कहा, “उन्हें स्वतंत्र रूप से अपना कर्तव्य निभाने दें, तभी असली आजादी संभव है.”
एक सभा में तो उन्होंने तीखे शब्दों में लोगों को झकझोरते हुए कहा—
“गांधीजी आपको आशीर्वाद देते हैं, पर मैं आपको गालियां देने आया हूं. आपको शर्म नहीं आती कि अपनी स्त्रियों को पर्दे में रखकर आप खुद अर्धांगवात से ग्रसित हैं? मां, बहन और पत्नी को कैद कर आप क्या उनके शील की रक्षा कर लेंगे? आपने उन्हें पशुओं की तरह रखा है, इसी कारण उनकी संतान होकर आप गुलामों की तरह जी रहे हैं.”
पटेल के इन शब्दों से सभा में सन्नाटा छा गया. यह पहली बार था जब किसी राष्ट्रीय नेता ने इस तरह खुलकर महिलाओं की स्वतंत्रता और पुरुष मानसिकता पर चोट की थी.
असल में, बारदोली सत्याग्रह के दौरान पटेल ने देखा था कि कैसे महिला स्वयंसेवक गांव-गांव जाकर ग्रामीण स्त्रियों में संघर्ष की चेतना जगाती हैं. उसी अनुभव को वह बिहार में दोहराना चाहते थे. उन्होंने महिलाओं से कहा कि वे राष्ट्र निर्माण में पुरुषों के बराबर भागीदारी निभाएं, और पुरुषों से कहा कि वे अपने घर की स्त्रियों से संवाद करें, उन्हें निर्णय लेने का अधिकार दें.
उनका संदेश बिल्कुल सीधा था—
“अगर आप अपनी स्त्रियों को गुलाम पशु बनाकर रखेंगे, तो उनकी संतान भी गुलाम जैसी होगी। डरपोक और नामर्द बने रहना अब स्वीकार्य नहीं है.”
इस तरह पटेल ने बिहार की धरती से सामाजिक सुधार और लैंगिक समानता की ऐसी मशाल जलाई, जो उनके राजनीतिक आंदोलन से कहीं अधिक गहरी थी.
युवाओं से बोले पटेल — “नारे नहीं, अपने जीवन में लाओ असली क्रांति”
किसानों और स्त्रियों में चेतना जगाने के साथ-साथ वल्लभभाई पटेल का ध्यान युवाओं पर भी केंद्रित था. उनमें छिपी ऊर्जा और संभावनाओं को वे भलीभांति पहचानते थे. पटेल को नारेबाजी से अधिक कर्म में विश्वास था. उन्होंने युवाओं से साफ कहा—
“क्रांति के नारे लगाना बंद करो, अपने जीवन में क्रांति लाने का प्रयत्न करो यही सच्ची देशभक्ति है.”
भागलपुर के टी.एन.जे. कॉलेज में छात्रों के बीच उनका यह संदेश गूंज उठा. इस मौके पर महबूब भाई देसाई और अनुग्रह नारायण सिंह भी मौजूद थे. पटेल ने अपने भाषण में छात्रों से कहा कि वे किसान आंदोलन से जुड़ें और गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं.
उन्होंने युवाओं से कहा कि क्रांति केवल भाषणों या नारों से नहीं आती. “अपने भीतर बदलाव लाओ, परंपराओं और कुप्रथाओं को चुनौती दो, यही असली क्रांति है.”
पटेल की यह बात सीधे युवाओं के दिल में उतर गई. उनकी वाणी में दृढ़ता थी, लेकिन उसमें करुणा और विश्वास भी झलकता था. बिहार की जनता, किसान, स्त्रियां और युवा सभी ने उन्हें अपना नेता, मार्गदर्शक और ‘सिरमौर’ मान लिया.
उनकी बिहार यात्रा केवल एक राजनीतिक दौरा नहीं थी; यह एक सामाजिक जागरण और चेतना का आंदोलन बन चुकी थी. सरदार पटेल के शब्दों ने बिहार की धरती पर वह बीज बोया, जिससे आत्मसम्मान, समानता और बदलाव की भावना पनपने लगी और जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है.
संदर्भ
मुकुट बिहारी वर्मा, लौह पुरुष सरदार पटेल
सत्येन्द्र पटेल प्रखर, राष्ट्र निर्माता सरदार पटेल
सुशीर कुमार, लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल
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