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कबाड़ बन गये हैं करोड़ों के वाहन

सरकारी राजस्व को पहुंच रही क्षति छपरा(सारण) : न ही मरम्मती करा कर उपयोग में लाया जा रहा है और न ही नीलामी की जा रही है. इस वजह से करोड़ों रुपये के सरकारी वाहन बरबाद हो रहें हैं. प्रमंडलीय मुख्यालय के अधिकांश विभागों में वर्षों से सैकड़ों वाहन बेकार पड़े हैं. सबसे अधिक स्वास्थ्य […]

सरकारी राजस्व को पहुंच रही क्षति
छपरा(सारण) : न ही मरम्मती करा कर उपयोग में लाया जा रहा है और न ही नीलामी की जा रही है. इस वजह से करोड़ों रुपये के सरकारी वाहन बरबाद हो रहें हैं. प्रमंडलीय मुख्यालय के अधिकांश विभागों में वर्षों से सैकड़ों वाहन बेकार पड़े हैं. सबसे अधिक स्वास्थ्य विभाग और पुलिस महकमे में बेकार वाहन पड़े हैं. थानों में जब्त लावारिस वाहनों की संख्या सबसे अधिक है.
समाहरणालय, नगर निगम, सदर अस्पताल, समेत सभी विभागों के कार्यालयों के बाहर, परिसर में तथा गैरेज में वर्षों से खड़े वाहनों की स्थिति कबाड़ी जैसी हो गयी है और अब मरम्मती कराकर भी उपयोग करने लायक नहीं बची है. कुछ विभागों में वाहन उपयोग लायक तो है, लेकिन आउट सोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से वाहन उपलब्ध कराने का प्रावधान किये जाने के बाद पुराने वाहनों का उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसके लिए ईंधन और चालक नहीं हैं. इस वजहसे करोड़ों रुपये के सरकारी वाहन बरबाद हो रहें हैं.
15 वर्षों तक चलाने का प्रावधान
सरकार की ओर से अधिकारियों के उपयोग तथा विभागीय कार्य के लिए उपलब्ध कराये गये वाहनों को अधिकतम 15 वर्ष तक चलाये जाने का प्रावधान है, लेकिन यहां 30- 40 वर्ष पहले उपलब्ध कराये गये वाहनों को भी रखा गया है, जिसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है, लेकिन नीलामी भी नहीं किया जा रहा है. सरकारी प्रावधानों के तहत 15 वर्ष पुराने वाहनों को मोटरयान निरीक्षक से मूल्यांकन करा कर नीलाम करने का प्रावधान है और नीलामी में मिली राशि को सरकारी खजाने में जमा कराया जाना है. पुराने वाहनों की नीलामी नहीं होने के कारण प्रतिदिन उसकी कीमत कम हो रही है और सरकारी राजस्व को क्षति पहुंच रही है.
क्या है मामला
पहले सरकार की ओर से सभी विभागों के अधिकारियों को वाहन खरीद कर दिया जाता था और इसके लिए ईंधन, चालक तथा मरम्मती का खर्च दिया जाता था, लेकिन अब आउट सोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से वाहन भाड़े पर लेकर उपलब्ध कराया जा रहा है और चालक भी आउट सोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से ही उपलब्ध कराया जा रहा है. ईंधन भी एजेंसी ही दे रही है. इस वजह से पुराने वाहनों की कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है.
कबाड़खाना बन गये हैं सरकारी परिसर
पुराने वाहनों की नीलामी नहीं होने के कारण सरकारी कार्यालयों के परिसर कबाड़खाना बने हुए हैं और इस वजह से परिसर गंदा रहता है. पुराने वाहनों की नीलामी नहीं होने के कारण सरकारी राजस्व को क्षति पहुंच रही है. सबसे बड़ी परेशानी तब होती है, जब अधिकारियों का तबादला होता है और प्रभार सौंपने तथा प्रभार ग्रहण करने की बारी आती है.
पुराने वाहनों के कंकाल देख कर ही प्रभार का लेन- देन किया जाता है. थानों में सबसे अधिक वाहन सड़ रहे हैं, जिसमें सबसे अधिक दोपहिया वाहन है. लावारिस हालत में जब्त किये गये वाहनों का कोई दावेदार नहीं आ रहा है और पुलिस वैसे मामलों की फाइल को भी बंद कर चुकी है. फिर भी नीलामी नहीं हो रही है. इसमें सबसे बड़ी बाधा सरकारी नीति है. थानों में जब्त लावारिस वाहनों की नीलामी के सात वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है तब तक जब्त वाहन सड़ गल कर कबाड़ी के लायक हो जाते हैं.नीलामी की जटिल प्रक्रिया तथा नीलामी के बाद ऑडिट की कठिन प्रक्रिया के कारण कोई थानाध्यक्ष इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं.

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